विकास चाहिए, तो कुछ तो सहना होगा

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के फैसले इन दिनों पूरे प्रदेश में चर्चा का केंद्र बिंदु हैं। इन फैसलों का हम पर त्वरित और दूरगामी क्या असर है। प्रबुद्ध जनता इन फैसलों पर क्या सोचती है। इन्हीं सवालोें के जवाब जानने के लिए प्रदेश के अग्रणी मीडिया गु्रप ‘दिव्य हिमाचल’ ने लोगों की राय जानी। किसने क्या, कहा बता रहे है

एनजीटी का फैसला समझ से परे

सामाजिक कार्यकर्ता अरुण चंदेल कहते हैं कि जहां विकास होगा, वहां पेड़ तो कटेंगे ही। बिना किसी के बलिदान के विकास की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। हालांकि आज की तारीख में जहां पेड़ों का कटान हो रहा है वहां सामाजिक संस्थाओं और विभिन्न विभागों द्वारा पेड़ लगाए भी जा रहे हैं। ऐसे में हिमाचल के लिए एनजीटी का यह फैसला समझ से परे है।

विकास की रफ्तार भी रोकेगा

कम्प्यूटर शिक्षण संस्थान के प्रभारी अंकुश ठाकुर का कहना है कि एनजीटी का यह फैसला पर्यावरण की दृष्टि से सही हो सकता है, लेकिन विकास कार्यों के मामले में यह निर्णय हिमाचल में विकास की रफ्तार भी रोकेगा। इसलिए एनजीटी को अपने इस निर्णय पर पुनः विचार करना चाहिए।

लकडि़यों से ही खाना पकता है

युवा राहुल पटियाल ने कहा कि एनजीटी के इस फैसले का असर सिर्फ प्रदेश के निम्न तबके और गरीब जनता को ही भुगतना होगा। बड़े व्यापारियों और करोड़ों का कारोबार करने वालों पर इसका कोई असर नहीं है। प्रदेश में अभी भी ऐसे गरीब हैं, जिनके घरों में आज भी जंगल से काटी गई सूखी लकडि़यों को जलाकर ही खाना पकता है।

परियोजनाओं पर भी रोक लगेगी

ठेकेदारी का कार्य करने वाले सूरज प्रताप सिंह चंदेल कहते हैं कि एनजीटी ने प्रदेश की हरियाली को बचाने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि फोरलेन बन रहा है तो कटान तो होगा ही। कई बड़ी परियोजनाएं आ रही हैं और कई और भी आएंगी। तो क्या प्रदेश के विकास में अहम भूमिका निभाने वाली इन परियोजनाओं पर भी रोक लगा दी जाएगी।