अब तैरते सोलर पैनलों से ऊर्जा बनाने की तैयारी

शिमला— हिमाचल में वैकल्पिक ऊर्जा साधनों के तौर पर अब तैरते सोलर पैनलों के जरिए ऊर्जा उत्पादित करने की तैयारी है। ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा ने उच्चाधिकारियों से इस बारे में चर्चा की है। केंद्र सरकार ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए वित्तीय सहायता जुटाती है। लिहाजा प्रदेश सरकार का भी यह प्रयास है कि हिमाचल में जहां बड़े स्तर पर जलाशय मौजूद हैं, उनका दोहन इस बाबत किया जाए। प्रोजेक्ट बनाकर जल्द इसे केंद्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। इस कड़ी में बिलासपुर के गोबिंदसागर व कांगड़ा के पौंग में प्रायोगिक तौर पर इसे शुरू किया जा सकता है। अभी तक जापान, चीन, कोरिया समेत ब्रिटेन में फ्लोटिंग सोलर पैनलों या फ्लोटिंग सोलर के जरिए हजारों मेगावाट ऊर्जा उत्पादित की जा रही है। हिमाचल में यदि यह प्रयोग सफल रहता है तो वैकल्पिक ऊर्जा साधनों के लिए यह एक बड़ी सफलत साबित हो सकता है। अभी तक सौर ऊर्जा का दोहन बड़े-बड़े सोलर पैनलों द्वारा प्रदेश के कबायली हिस्सों के साथ-साथ सरकारी इमारतों में ही हो रहा है। किन्नौर व लाहुल स्पीति में भी कई बड़े प्रयोग सफल रहे हैं। अब यदि ताजा प्रयोग सफल होता है तो हिमाचल इस दिशा में एक नया कदम रख सकता है। इस प्रोजेक्ट के जरिए ऊर्जा ही उत्पादित नहीं होती, बल्कि संबंधित जलाशय में खरपतवार या फिर गंदगी का सफाया करने में भी ऐसे सोलर पैनल कारगर साबित होते हैं। यूं कह लें कि इनके स्थापन से संबंधित जलाशय में खरपतवार पनप नहीं पाते। इससे संबंधित जलाशय में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सरल बन जाती है, जिससे उस क्षेत्र के जलजीव चक्र को भी मजबूती मिलती है। प्रदेश में गोबिंदसागर जलाशय 75.01 लाख एकड़ फुट में स्थित है। इसका पूरा क्षेत्र 168.35 वर्ग किलोमीटर है, जबकि पौंग 24.529 हेक्टेयर और इसका सरफेस एरिया (तल) 240 वर्ग किलोमीटर के लगभग है। हिमाचल में ये दो सबसे बड़े जलाशय हैं। फ्लोटिंग पैनल सोलर का प्रयोग यहां सफल हो सकता है। इन जलाश्यों के अतिरिक्त प्रदेश में चमेरा, नाथपा झाकड़ी, पंडोह के साथ-साथ सुंदरनगर व अन्य कई स्थानों पर मझोले जलाशय भी हैं।

ये भी हैं लाभ

हिमाचल में हाइडल प्रोजेक्ट्स के जरिए ऊर्जा उत्पादन के दौरान बड़े स्तर पर पानी को पीछे ही स्टोर करके रखा जाता है, जिससे प्रदेश के कई हिस्सों में सिंचाई व पेयजल की दिक्कतें सामने आती है। मगर फ्लोटिंग सोलर पैनल तकनीक में ऐसी कोई परेशानी नहीं। जलाशय में तैरते हुए ही यह पूरा स्ट्रक्चर सौर ऊर्जा उत्पादित करने में सक्षम है, उल्टे जल प्रबंधन को ही यह प्रक्रिया मजबूती प्रदान करती है।