अलग पहचान के आलोक सागर

प्रोफेसर आलोक सागर का जन्म 20 जनवरी, 1950 को दिल्ली में संभ्रांत परिवार में हुआ। मूलतः नई दिल्ली के निवासी आलोक सागर ने आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया, फिर 1973 में यहीं से मास्टर डिग्री हासिल की। आईआईटी दिल्ली की स्थापना सन् 1961 में हुई। इसके बाद वह पीएचडी करने के लिए टेक्सास की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी चले गए। भारत लौटने से पहले उन्होंने दो साल तक यूएस में जॉब भी की। फिर 1980-81 में वापस भारत आकर दिल्ली आईआईटी में एक साल पढ़ाया भी।

कभी आईआईटी दिल्ली का छात्र रहा और फिर वहीं प्रोफेसर के तौर पर काम कर चुका यह शख्स चाहता तो ऐशो-आराम और लग्जरी लाइफ जी सकता था, मगर उसने आदिवासियों के लिए संघर्ष करना ज्यादा बेहतर समझा। रघुराम राजन को पढ़ा चुके यह प्रोफेसरअब आदिवासियों की सेवा कर रहे हैं।

कैसे सुर्खियों में आए

उनके बारे में किसी को जानकारी भी नहीं होती अगर घोंड़ाडोंगरी उपचुनावों में उनके खिलाफ कुछ लोगों द्वारा बाहरी व्यक्ति के तौर पर  उनकी शिकायत नहीं की गई होती। पुलिस से शिकायत के बाद जांच- पड़ताल के  लिए उन्हें थाने बुलाया गया था। तब पता चला कि यह व्यक्ति कोई सामान्य आदिवासी नहीं बल्कि एक पूर्व प्रोफेसर है। आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर के तौर पर काम कर चुके आलोक ने अनेकों छात्रों को पढ़ाया। पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन भी उनमें से एक हैं। वहां से इस्तीफा देने के बाद आलोक ने मध्य प्रदेश के बेतूल और होशंगाबाद जिले में रहने वाले आदिवासियों के लिए काम करना शुरू किया।

पिछले 28 सालों से आलोक आदिवासी बहुल गांव कोचामू में रह रहे हैं। करीब 750 की आबादी वाले इस गांव में बस एक प्राइमरी स्कूल है, इसके अलावा यहां न तो बिजली है और न ही सड़कें। आलोक ने इस इलाके में 50 हजार से ज्यादा पौधे लगाए। उनका मानना है कि देश की सेवा करने के लिए हमें जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। आलोक ने कहा, भारत में लोग कई तरह की दिक्कतों का सामना कर रहे हैं, मगर हर कोई डिग्री दिखाकर अपनी योग्यता साबित करने में लगा है, न कि लोगों की सेवा करने में। आदिवासी बच्चों को पढ़ाना और पौधों की देखरेख करना ही उनकी दिनचर्या में शामिल है। पैरों में रबड़ की चप्पलें, हाथ में झोला, उलझे हुए बाल, कोई कह ही नहीं सकता कि यह वही व्यक्ति है, जिसे अंग्रेजी सहित कई विदेशी भाषाएं आती हैं।

कभी देश के लिए आईआईटियन तैयार करने वाले आलोक के पास आज जमा पूंजी के नाम पर 3 जोड़ी कुर्ते और एक साइकिल है। वो जिस घर में रह रहे हैं, उसमें दरवाजे तक नहीं हैं। सादगी को ही अपना जीवन मानने वाले आलोक सच में अलग शख्सियत हैं।