अहंकार की राजनीति

राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा

‘भारत की लाचार संसदीय प्रणाली’ लेख में पीके खुराना ने संसद में सत्तासीन पार्टी की नीतियों का विरोध विपक्ष द्वारा किए जाने को अनुचित नहीं ठहराया। सबसे पहले तो यह कहना उचित होगा कि लाचार संसदीय प्रणाली के लिए स्वार्थ और अहंकार की राजनीति जिम्मेदार है। जो भी पार्टी सत्ता में होती है, वह मनमानी करती है। मोदी ने जब नोटबंदी का फैसला लिया था, तब तो वह कितने दिन संसद ही नहीं गए थे। शायद उनके पास इस फैसले से संबंधित विपक्ष के प्रश्नों  के जवाब नहीं थे। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। नहीं तो संसद में सत्ताधारी पार्टी कोई भी मनमाना कानून पास कर दे। लेकिन अकसर देखा जाता है कि संसद में जब भी किसी मुद्दे को लेकर हो-हल्ला होता है, तो उसका ठीकरा हमेशा विपक्ष के सिर ही फोड़ा जाता है। यह भी हो सकता है कि संसद में विपक्ष जिस विधेयक को लेकर हो-हल्ला कर रहा होता है, उस विधेयक में सचमुच कुछ खामियां हों। देश में कुछ मुद्दे तो ऐसे भी हैं, जिन पर सरकारों को गंभीरता दिखानी चाहिए, जबकि उन पर तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है। भारत की लाचार संसदीय प्रणाली में सुधार तभी संभव है, जब सत्ता पक्ष या विपक्ष के सांसद अपनी स्वार्थ और वोट बैंक की संकीर्ण मानसिकता संसद की दहलीज के बाहर रख कर आएं।