कुंजर महादेव की महिमा

भगवान शिव ने कहा कि यह स्थान कलियुग में बहुत प्रसिद्ध होगा। जो भी यहां आकर स्नान करेगा, उसके सब पाप कट जाएंगे। इस जगह पर मैंने त्रिशूल से डल का निर्माण किया है, इसलिए यहां मेरे चरण रहेंगे और मेरा वास कैलाश पर्वत पर होगा, जिसे मणिमहेश कहा जाएगा। तब से यह स्थान भी भगवान शिव के चरणों के कारण पवित्र हुआ और लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बना…

हिमाचल को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां के लोगों में शिव के प्रति गहन आस्था का परिणाम है कि यहां का हर स्थान शिव की किसी न किसी कथा से जुड़ा हुआ है। आज आपको ले चलते हैं शिव के एक ऐसे ही धाम, जो कि जिला चंबा के भट्टियात में कुंजरोटी स्थान पर है, जिसे कुंजर महादेव कहा जाता है। इस स्थान के बारे में बहुत सी दंत कथाएं प्रचलित हैं। कहते हैं कि यदि कुदरत चाहती तो मणिमहेश यहीं पर स्थापित होता।

हाथी धार का नामकरण- जब एक बार शिव और पार्वती हिमालय की और जा रहे थे, तो माता पार्वती को एहसास हुआ कि उस मां को भी कितना कष्ट हुआ होगा, जिसके पुत्र का सिर काट कर गणेश को लगाया गया है। माता पार्वती ने शिव से आग्रह किया कि उस सिर कटे हाथी का उद्धार करें। उस समय शिव ने उस हाथी को इसी जगह लाकर स्थापित किया और उसको मोक्ष प्रदान किया। इस जगह पर ‘हाथी का उद्धार’ हुआ इसलिए इसे ‘हाथी धार’ के नाम से जाना गया। आज भी उस पहाड़ की शक्ल हू- ब- हू किसी हाथी की तरह नजर आती है।

कुंजर महादेव नाम का रहस्य-

कुंजर महादेव का नाम शिव को हाथियों ने दिया है। कुंजर का अर्थ होता है हाथी। कहते हैं जब हाथी का सिर काट कर गण ले गए, तो हाथियों ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। तब देव ऋषि नारद ने हाथियों को बताया कि आपका सिर स्वयं देवों के देव भगवान शिव के पुत्र गणेश को लगाया गया है। यह जान कर हाथी खुश हो गए और इसी जगह पर आ कर उन्होंने भगवान शिव की जय जयकार की और भगवान शिव को हाथियों के देव यानी कुंजर महादेव के नाम से संबोधित किया इसलिए इस स्थान को कुंजर महादेव कहा जाने लगा और इस स्थान का नाम कुंजरोटी हो गया।

शिव के चरण हैं यहां- कहते हैं कि एक बार राक्षसों और देवताओं का युद्ध हो रहा था और एक मायावी राक्षस जितनी बार मारा जाता उतनी बार जीवित हो जाता था। भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया। भगवान शिव ने कहा कि यह स्थान कलियुग में बहुत प्रसिद्ध होगा। जो भी यहां आकर स्नान करेगा, उसके सब पाप कट जाएंगे। इस जगह पर मैंने त्रिशूल से डल का निर्माण किया है इसलिए यहां मेरे चरण रहेंगे और मेरा वास कैलाश पर्वत पर होगा, जिसे मणिमहेश कहा जाएगा। तब से यह स्थान भी भगवान शिव के चरणों के कारण पवित्र हुआ और लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बना।

गडरिए को हुए कलियुग में प्रथम दर्शन-

एक अन्य कथा के अनुसार इस रास्ते एक गडरिया  भेड़, बकरियां लेकर जाता था। इस जगह पर वो अपनी दराती को तेज करने के लिए पत्थर ढूंढने लगा। तब उसने एक पत्थर पर दराती की धार बनाई और वो धार 6 महीने तक बनी रही। गड़रिए ने सोचा अगली बार वापस जाते हुए मैं उस पत्थर को साथ ही ले जाऊंगा। जब वो वापस आया, तो उसने उसी पत्थर को फिर से ढूंढा और उस पर प्रहार किया जिससे उसमें एक दरार आ गई, वो पत्थर आज भी वैसे ही स्थापित है। तभी आकाशवाणी हुई, हे मूर्ख तूने यह क्या किया। इसका पुण्य और पाप तुझे दोनों भुगतने होंगे। तब वो गडरिया क्षमा मांगने लगा और शिव को देख कर प्रसन्न भी हुआ। उसने कहा कि मुझे पाप से मुक्त कर मोक्ष प्रदान कीजिए। तब भगवान ने उसे रहस्य बताया कि इस कुंड में स्नान करके तुम इस पाप से मुक्त हो सकते हो और मोक्ष की प्राप्त करोगे, पर तुम्हें और तुम्हारी भेड़ बकरियों को यहीं पर पत्थर बनना होगा। कलियुग में कोई भी प्राणी इस कुंड में स्नान कर के पाप से मुक्ति पा सकता है। आज भी कुछ पत्थर उन भेड़, बकरियों के आकार के वहां देखे जा सकते हैं।

सब पापों की मुक्ति- कलियुग में मात्र ये ऐसा धाम माना जाता है जो किसी भी प्रकार के पाप से मुक्ति का मार्ग दिखाता है। इसीलिए हर साल लाखों भक्त यहां आकर कुंड में डुबकी लगाते हैं। इस बार 28 अगस्त को प्रसिद्ध मणिमहेश मेले के साथ ही यहां भी लाखों भक्त नतमस्तक होंगे और भगवान शिव के जयकारे लगेंगे।

कैसे पहुंचें- यहां पहुंचने का मार्ग बहुत सरल है।  चुवाड़ी मुख्यालय से लगभग 20 किमी. दूर सिहुंता, द्रमन मार्ग पर पातका गांव से लगभग डेढ़  किमी. की दूरी पर यह स्थान है। पठानकोट से 70 किमी. दूर और गगल एयरपोर्ट से लगभग 50 किमी. की दूरी पर यह जगह चंबा और कांगड़ा को बांटने वाली हाथी धार पर है। इस धार के एक तरफ  जिला चंबा और एक तरफ  जिला कांगड़ा है।   

-आशीष बहल, चंबा