क्या बहिरा हुआ खुदाय!

उत्तर प्रदेश में गोरखनाथ परंपरा में योगी आदित्यनाथ के गुरु थे-अवैद्यनाथ। उनके गुरु महंत दिग्विजयनाथ थे। गोरखपुर में गोरक्षनाथ मठ के सामने एक मस्जिद थी। हर रोज सुबह और शाम  लाउडस्पीकर के जरिए अजान होती थी, जिससे दिग्विजयनाथ परेशान थे। उन्होंने मुल्ला-मौलवियों को समझाने की कोशिश की थी, लेकिन सब कुछ फिजूल साबित होता रहा। एक रात में दिग्विजयनाथ ने मठ के भीतर करीब 5000 शिष्यों और भक्तों की बैठक बुलाई। उसी रात हथियारों, उपकरणों से ऐसा आपरेशन किया गया कि सुबह तक मस्जिद का सफाया कर दिया गया। जमीन को भी समतल कर दिया गया। शिकायत पुलिस तक गई, तो उसी ने सवाल शुरू कर दिए कि मस्जिद को जमीन खा गई क्या? नतीजतन मठ वालों ने एक खास तरह की राहत महसूस की। इसी संदर्भ में संत कवि कबीर दास का पुराना दोहा भी याद आता है-‘कंकर पाथर जोरि के, मस्जिद लियो बनाय। ता चढि़ मुल्ला बांग दे, बहिरा हुआ खुदाय।’ बुनियादी सवाल यही है कि क्या भगवान, ईश्वर, अल्लाह या खुदा बहरा है, जो लाउडस्पीकर पर अजान करनी पड़ती है या आरती, कीर्तन करने पड़ते हैं? उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक आदेश पारित कर मंदिरों, मस्जिदों और सभी धर्मस्थलों पर लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगा दी है। राज्य के सभी पुलिस कप्तानों को सर्कुलर भेज दिया गया है। इस फैसले की तल्ख धार्मिक प्रतिक्रिया भी हुई है और धर्मस्थलों पर से लाउडस्पीकर उतारे जाने लगे हैं। शोर भी एक खास तरह का नुकसानदायक प्रदूषण है, जिसके कारण बूढ़ों और छोटे बच्चों की मौतें भी हुई हैं। इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी फैसला दिया था कि रात दस बजे से सुबह छह बजे तक लाउडस्पीकर न बजाए जाएं। हालांकि सार्वजनिक तौर पर कई समारोहों और आयोजनों में अब भी इस कानूनी व्यवस्था का उल्लंघन किया जाता है। अलबत्ता ऑडिटोरियम और कान्फ्रेंस रूम सरीखी बंद जगहों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है। दरअसल इन पंक्तियों के लेखक ने भी सुबह नींद से जागते हुए मस्जिद से की गई अजान से खलल महसूस की है। मंदिरों में भी घंटे बजाए जाते हैं, आरती-कीर्तन गाए जाते हैं। सवाल है कि भीतर की आस्था और श्रद्धा की अभिव्यक्ति के लिए लाउडस्पीकर पर भोंपू बनना क्यों जरूरी है? इसकी व्यवस्था किसी भी धर्म या मजहब के क्रिया-कर्म में नहीं है और न ही कोई पौराणिक निर्देश दिए गए हैं। सवाल यह भी है कि क्या यह कोई धर्मयुद्ध है, जो लाउडस्पीकर पर लड़ा जा रहा है? क्या अल्लाह-हो-अकबर और आरती, भजन में कोई प्रतिद्वंद्विता है? क्या भगवान या खुदा तभी इनसान की अरदास सुनेगा, जब लाउडस्पीकर के जरिए चीखा जाएगा? सामाजिक और धार्मिक सुधार की दृष्टि से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फैसला प्रशंसनीय है। प्रभु तो इनसान के भीतर ही बसे हैं, कुरान को मन में ही पढ़कर शांति हासिल की जा सकती है, अल्लाह का नाम या नमाज पढ़ने के लिए लाउडस्पीकर की जरूरत क्या है? लेकिन कुछ धार्मिक पंडे और मुल्ले इस फैसले को भी ‘थोपा हुआ’ करार दे रहे हैं। फैसला किसी एक वर्ग, समुदाय, संप्रदाय के लिए नहीं है। उसकी परिधि में सभी धर्मस्थल रखे गए हैं। यह प्रदूषण कम करने की भी कवायद है। धर्म या मजहब नितांत निजी मामला है। पुरोहित या मौलवी लाउडस्पीकर पर चीख-चीख कर किसे संबोधित करना चाहते हैं? क्या ऐसा कर लोगों को मंदिर या मस्जिद तक बुलाया जाता रहा है? यह भी गलत परंपरा है। धर्म या मजहब का पालन किसी पर थोपा नहीं जा सकता। बहरहाल योगी ने एक अच्छा काम किया है, बेशक कोई भी नाराज होता रहे।