प्रदेश हित में जयराम को तपना पड़़ेगा

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

प्रदेश को विकास की अपनी प्राथमिकताएं जल्द तय करनी चाहिएं। चिन्हित लक्ष्यों पर एक समय सीमा के भीतर काम होना चाहिए। पहली प्राथमिकता पर्यटन है, लेकिन इसका विकास सड़कों, रेल व उड्डयन पर निर्भर करता है। दुखद यह है कि इन तीनों मामलों में हम अभी तक पिछड़े हुए हैं। नए मुख्यमंत्री को पर्यटन के लिए आधारभूत ढांचा बनाने तथा इसे उद्योग के रूप में विकसित करने के लिए कठिन मेहनत करनी होगी…

इस बात के कई संकेत मिल रहे हैं कि हिमाचल के नए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, जो एक पुण्य आत्मा माने जाते हैं, बाबुओं व अपने साथियों का बोझ नेकदिली से उठाना चाहेंगे। कुछ मसखरे अकसर बाजार में कहते रहते हैं कि सबका साथ और सबका विकास की अवधारणा नहीं चलेगी। निस्संदेह अब तक के फैसलों के संकेत अच्छे व्यवहार के हैं, लेकिन अब प्रदेश के मुखिया होने के नाते उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह कठिन परिश्रम करें तथा भाजपा ने चुनावों के वक्त लोगों से जो वादे किए थे, उन्हें हर हालत में पूरा करें। पार्टी के कार्यकर्ता व बड़ी संख्या में लोग यह जानते हैं कि हिमाचल प्रदेश ने लंबे समय तक अकुशल प्रशासन का सामना किया है, जिसका प्रदेश के विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा है। सड़कों की खस्ता हालत, केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसी बड़ी परियोजनाओं में अनिर्णय की स्थिति तथा कोटखाई के बलात्कार व हत्या मामले से उपजी कानून-व्यवस्था की दुरावस्था ऐसे मसले हैं, जो प्रदेश की पूर्व सरकार की विफलता को दर्शाते हैं। ऐसी स्थिति में जबकि इस तरह के जघन्य अपराध में बड़े पुलिस अधिकारी तक संलिप्त रहे हों, कैसे यह विश्वास किया जा सकता है कि कानून-व्यवस्था बनी रहेगी। जो कानून के रखवाले थे, वही जब कानून का गला घोंट रहे हों, तो ऐसी आशा नहीं की जा सकती। राज्य की बैलेंस शीट वित्तीय अनुशासनहीनता की ओर इशारा करती है। प्रदेश पर कर्ज बढ़ गया है, जो दिवालियापन को दर्शाता है। प्रशासकीय सुधारों की घोषणाएं कई हुईं, लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं किया गया। ऐसी स्थिति में, जबकि लोगों की अपेक्षाएं ज्यादा हों, प्रशासन के दायित्व अधिक हो जाएं, सरकार का संचालन एक कठिन कार्य है तथा प्रशासकीय ढांचे के शीघ्र व निर्णायक पग की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक मॉडल के रूप में उभरे हैं, लेकिन हिमाचल उस प्रदेश से भिन्न है। यह एक छोटा व देश का उपेक्षित राज्य है। इसी के अनुरूप इसके लिए रणनीति चाहिए।

प्रदेश को विकास की अपनी प्राथमिकताएं जल्द तय करनी चाहिएं। चिन्हित लक्ष्यों पर एक समय सीमा के भीतर काम होना चाहिए। उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की मिसाल लें, तो यह दोनों राज्य रेल व हवाई सेवाओं के हिसाब से देश से जुड़े हुए हैं, जबकि हिमाचल में मात्र दिल्ली से दो रेल सेवाएं हैं जो कि इसकी सीमा को छूती हैं। पहाड़ी राज्यों की ही तुलना करें, तो उत्तराखंड के लिए दर्जनों रेल सेवाएं हैं। प्रदेश की दोनों पार्टियां एयर कनेक्टिविटी की बात जोर-शोर से करती रही हैं, लेकिन अब तक इस दिशा में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं हुआ है। इस नजरिए से प्रदेश अभी अर्धविकसित है। एक अंतरराष्ट्रीय उड्डयन विशेषज्ञ होने के नाते मुझे इस बात का दुख है कि सरकार आधारभूत ढांचा बनाने व प्रदेश को जोड़ने के लिए संसाधन जुटाने में विफल रही है। हमारी सड़कें पड़ोसी पंजाब से खराब हैं। हिमाचल की आर्थिक भलाई इसी में है कि पर्यावरण में रासायनिक जहर घोलने वाले कारखानों को अब ‘न’ कहा जाए। हमारे पास तीन प्राथमिकताएं मौजूद हैं। पहली प्राथमिकता पर्यटन है, लेकिन इसका विकास सड़कों, रेल व उड्डयन पर निर्भर करता है। दुखद यह है कि इन तीनों मामलों में हम अभी तक पिछड़े हुए हैं। इसके कारण बड़ी मात्रा में रोजगार पैदा करने वाले पर्यटन क्षेत्र का विकास नहीं हो पा रहा है। नए मुख्यमंत्री को पर्यटन के लिए आधारभूत ढांचा बनाने तथा इसे उद्योग के रूप में विकसित करने के लिए कठिन मेहनत करनी होगी। प्रदेश को कृषि पर धन व प्रयास लुटाना बंद कर देना चाहिए। इसकी जगह बागबानी व वन संवर्द्धन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सेब व प्लम का उत्पादन प्रदेश में पहले से ही हो रहा है। प्रदेश में फलोत्पादन मुख्य कृषि उत्पाद होना चाहिए।

प्रदेश में बड़ी मात्रा में अखरोट के पेड़ लगाए जाने चाहिएं। यह महंगे भी बिकते हैं तथा बंदरों व जंगली जानवरों से भी इनके लिए कोई खतरा नहीं रहता है। जंगली जानवरों से किसानों को जो हानि हो रही है, उसे रोक पाने में सरकार की नाकामी भी एक चिंताजनक मसला है। हम पंजाब से चावल व गेहूं खरीद सकते हैं तथा फल बेच सकते हैं। कृषि के विकास के लिए सिंचाई की जरूरत भी है, लेकिन इस क्षेत्र में कई समस्याएं हैं और यह अब तक उपेक्षित रहा है। ड्रिप सिंचाई योजना पर प्रदेश में अधिक काम किया जा सकता है। तीसरा कदम हमें जो उठाना चाहिए, वह यह है कि जल विद्युत उत्पादन बंद कर देना चाहिए तथा इसकी जगह सौर व पवन ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए। जीव-जंतुओं व पेड़-पौधों को हो रहे नुकसान के कारण हमें जल विद्युत उत्पादन को विस्तार नहीं देना चाहिए। इसके कारण सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता। पानी का बंटवारा न्यायोचित ढंग से नहीं हो पा रहा है। सौर और पवन ऊर्जा ईको फे्रंडली भी हैं तथा समय अंतराल में यह साधन सस्ते भी हैं। इन सबसे ऊपर मुख्यमंत्री को सरकारी मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त रखना चाहिए और यह एक्शन मोड में होनी चाहिए। नौकरशाही की ढीली चाल को सक्रिय किया जाना चाहिए।

बहुत पहले प्रशासनिक सुधारों के लिए एक आयोग का गठन किया गया था, लेकिन इस दिशा में कोई भी उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ। सरकार को अब प्रशासनिक सुधारों की दिशा में संजीदा होना पड़ेगा। यह दीगर है कि जब भी आम जनता को अपना रोजमर्रा का कार्यालयी काम करना होता है, तो उसका पाला प्रशासन से ही पड़ता है। इस स्तर पर यदि सरकार आवश्यक सुधार कर लेती है, तो जनता के लिए यह एक बहुत बड़ी राहत होगी। मुख्यमंत्री को घोषित करना चाहिए कि चलता है, अब नहीं चलेगा। प्रशासकीय मशीनरी पर पड़ी धूल हमें हटानी होगी तथा सभी को यह बता दिया जाना चाहिए कि या तो बेहतर प्रदर्शन करो अथवा चलते बनो। अब किसी भी राजनेता को सत्ता में बैठे बेईमान, भ्रष्ट व अक्षम लोगों को संरक्षण नहीं देना चाहिए। ऐश्वर्य छोड़ देना चाहिए, नेताओं की बड़ी-बड़ी गाडि़यां व उन पर लाल लाइट्स बंद होनी चाहिएं। मुख्यमंत्री को लोगों से मिलने के लिए समय तय करना चाहिए तथा जनता की पहुंच उन तक सीधी होनी चाहिए। मेरा विश्वास है कि इस एजेंडे पर काम करने से प्रशासन में कुशलता आएगी तथा कार्य-संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा।

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