लकीरों से बाहर सरकार-2

जिस लकीर पर हिमाचल की सरकारी कार्य संस्कृति खड़ी है, वहां स्थानांतरण एक जबरदस्त जुगत है। बेशक किसी भी सरकार का उत्सव सर्वप्रथम सचिवालय में सजता है, लेकिन कभी-कभी तो यह स्थानांतरण के महल की तरह लगता है। प्रदेश तो डोडराक्वार, पांगी, किन्नौर, लाहुल-स्पीति, काजा, शिलाई व बड़ा भंगाल से आगे सिराज-चौहार घाटियों तक अपने मस्तक पर भाग्य की लकीरें ढूंढता है, लेकिन कहीं कार्य संस्कृति किसी स्थानांतरण की कैद में बिना पंखों की चिडि़या की तरह फड़फड़ा रही होती है। हमारी कर्त्तव्य परायणता स्थानांतरण से भरे भांग के कटोरे में फंसी है और इसीलिए कोहलू के बैल की तरह उम्मीदें घूमती रहती हैं, मगर कार्य संस्कृति के कपाट नहीं खुलते। लीक से हटने की लक्ष्मण रेखा पर खड़ी स्थानांतरण की बेबसी को हटाकर ही आमूल चूल परिवर्तन होगा। आश्चर्य यह कि राज्य स्तरीय काडर भी स्थानीय स्तर के हो गए हैं। विभागीय कर्मठता किसी कर्मचारी के रूप में मतदाता का विशेषाधिकार है, इसलिए राजनीति की इच्छाशक्ति अभी तक स्थानांतरण नियम व नीति बनाने से परहेज करती रही है। यह दीगर है कि हिमाचल में सियासी विद्वेष में काले पानी की सजा के तौर पर पांगी, काजा, लाहुल-स्पीति या शिमला-सिरमौर के दुरूह क्षेत्रों की तरफ कुछ कर्मचारी चढ़ा दिए जाते हैं। होना तो यह चाहिए कि आईपीएच के फिटर या विद्युत बोर्ड के लाइनमैन तक को अपने गांव या विधानसभा क्षेत्र के बाहर ही नियुक्ति मिले। कर्मचारी सुविधाएं व वित्तीय लाभ केवल गृह जिला के बाहर और पचास, सौ, डेढ़ सौ या दो सौ किलोमीटर की दूरी के हिसाब से तय हों। कबायली इलाकों में सेवा व सेवाकाल सुनिश्चित करते हुए, इसके बदले कर्मचारी व अधिकारियों को सम्मानित स्थान पर पोस्टिंग मिले। कबायली या दुरूह इलाकों में केवल चंद फोकल प्वाइंट पर ही सरकारी कामकाज की व्यवस्था हो और इसी के अनुरूप कर्मचारी आवासीय सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। जयराम सरकार पिछली सरकार के आखिरी महीनों के कामकाज का रिव्यू करने के साथ-साथ यह सर्वेक्षण भी करे कि आज तक विभिन्न विभागों के कर्मचारी-अधिकारी, घर से कितनी दूर व एक ही स्थान पर कब तक नियुक्त रहे हैं। इसी के साथ सरकारी नौकरी के लिए आयु सीमा के वर्तमान पैंतालीस वर्ष को घटाकर तीस करे, तो युवा ऊर्जा, क्षमता व प्रतिभा को स्वरोजगार की तरफ बढ़ने की अनिवार्यता हो जाएगी। सरकारी स्कूल, कालेज व अस्पतालों के बेहतर प्रबंधन के लिए अलग काडर स्थापित करते हुए एमबीए प्रोफेशनल को लक्ष्य आधारित सेवा का मौका मिले, तो सार्वजनिक संस्थान भी व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में अव्वल साबित होंगे। प्रदेश के स्कूल शिक्षा बोर्ड को प्रोफेशनल कालेजों यानी आईआईटी, मेडिकल व अन्य राष्ट्रीय संस्थानों में प्रवेश परीक्षाओं के लिए एक अकादमी स्थापित करनी होगी। प्रदेश में हर साल करीब पांच हजार स्कूली छात्र मैरिट में आते हैं और अगर इन्हें कोचिंग मिले, तो मानव संसाधन की दिशा तय होगी। इसी तरह हमीरपुर के सुजानपुर में सैन्य सेवाओं में प्रवेश के लिए अकादमी स्थापित की जा सकती है। प्रदेश की पुलिस बटालियनों के सान्निध्य में पुलिस व सैन्य सेवाओं की भर्ती के लिए विशेष प्रशिक्षण शिविर चलाए जा सकते हैं। पूर्ववर्ती वीरभद्र सरकार ने दर्जनों नए कालेज खोले हैं, लेकिन विश्वविद्यालय ने पाठ्यक्रम में रोजगार की आवश्यकताओं को नहीं समझा। प्रदेश के कई कालेजों को विषय विशेष का विशिष्ट दर्जा देकर राज्य स्तरीय परिसर बनाया जा सकता है। आरंभ में राज्य के बड़े कालेजों को विज्ञान, डिफेंस स्टडीज, बिजनेस, वाणिज्यिक, खेल व कला परिसरों के रूप में प्रतिष्ठित किया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के शिमला, धर्मशाला अध्ययन केंद्रों के अलावा मंडी व ऊना में अध्ययन केंद्र स्थापित करते हुए इन्हें विषयों के आधार पर अध्ययन-अध्यापन की उच्च परिपाटी का स्वरूप दिया जाए। बिलासपुर व धर्मशाला में भारतीय खेल छात्रावासों के साथ तालमेल बिठाते हुए स्थानीय शैक्षणिक संस्थानों में खेल विंग स्थापित किए जाएं। बच्चों में खेल, गीत-संगीत व लोक कलाओं के प्रति रुचि पैदा करने के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी। स्कूल शिक्षा बोर्ड तथा विभाग के सहयोग से हिमाचली स्कूली छात्रों को आठवीं कक्षा तक राज्य भ्रमण तथा जमा दो तक देश भ्रमण के जरिए ज्ञान अर्जित करने का पाठ्यक्रम जोड़ा जा सकता है। स्कूलों की असफल हो रही इमारतों खास तौर पर शहरी विद्यालयों का संचालन सीबीएसई तथा आईसीएसई के तहत किया जाए या इन्हें राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित शिक्षण शृंखलाओं के साथ जोड़कर उपयोग में लाया जा सकता है।

-क्रमशः