श्री विश्वकर्मा पुराण

ब्रह्मा- विष्णु तथा महेश्वर वगैरह के स्वरूप को धारण करके अनेक प्रकार से सुप्रसिद्ध हुई महान शक्ति की उत्पत्ति के मूल में भी वह प्रभु रहे हैं। जिनके एक हाथ में गज है दूसरे में सूत्र धारण किए हुए हैं, तीसरे हाथ में जल पात्र तथा चौथे में पुस्तक है। ऐसे जो हंस के ऊपर विराजमान हैं तथा तीन नेत्र से युक्त ऐसे मुखारबिंद वाले जिन प्रभु ने मस्तक के ऊपर सुंदर मुकुट धारण किया हुआ है…

एक समय में अनेक प्रकार की समृद्धि मिलाने की इच्छा करने वाले ऐसे देवताओं ने श्री विष्णु के पास जाकर प्रार्थना की तथा वह बोले, हे देवादिदेव! हे विष्णु! आप हमारे कल्याण के लिए प्रसन्न हों।  सर्व प्रकार के कल्याण तथा समृद्धि की जिससे प्राप्ति होती है, ऐसी लिंग पूजा का महात्म्य हमें बताएं जिससे हम मनोरथ को प्राप्त करें। देवताओं के ऐसे वचन सुनकर विष्णु बोले, हे देवताओ! लिंग पूजा का माहात्म्य मैं भी जानता हूं और हमेशा मैं लिंग पूजा करता हूं परंतु लिंग की प्राप्ति के लिए तुम सब इलाचल के ऊपर जाओ तथा वहां विराजे हुए ऐसे पांच ऋषियों से सेवित प्रभु विश्वकर्मा की आराधना करके उनकी प्रसन्नता प्राप्त किए बिना लिंग प्राप्ति नहीं हो सकती। इस प्रकार विष्णु के वचन सुनकर सभी देवता इलाचल के ऊपर आए तथा प्रभु ने आगमन का कारण जानकर उन सबको संतुष्ट किया तथा इंद्र को माणिक का लिंग दिया कुबेर को सोने का लिंग दिया तथा उसी प्रकार सभी देवताओं को अधिकार के अनुसार प्रभु ने योग वस्तुओं में से बनाए हुए उत्तम लिंग देकर उनके मनोरथ पूर्ण किए। हे ऋषियो! अब अनेक पुराणों के आधार से प्रभु विश्वकर्मा के स्वरूप का मैं तुमको वर्णन बताता हूं। यह विश्वकर्मा देवस्वरूप होकर समस्त विश्व का सर्जन करने वाले हैं और अपनी ही विभूति से सूर्य स्वरूप से प्रकाशमान होकर समस्त जगत को तेज ताप तथा पोषण देते हैं। ये देव ही इस समस्त सृष्टि तथा उसमें रहते सब भुवनों की रचना करते हैं। यह एक ही देव अपने अमर्यादित सामर्थ्य द्वारा इस समस्त भूमंडल सहित के सारे सुरासुर सहित ब्रह्मांड के कर्ता-धर्ता तथा हर्ता हैं। ब्रह्मा- विष्णु तथा महेश्वर वगैरह के स्वरूप को धारण करके अनेक प्रकार से सुप्रसिद्ध हुई महान शक्ति की उत्पत्ति के मूल में भी वह प्रभु रहे हैं। जिनके एक हाथ में गज है दूसरे में सूत्र धारण किए हुए हैं, तीसरे हाथ में जल पात्र तथा चौथे में पुस्तक है। ऐसे जो हंस के ऊपर विराजमान हैं तथा तीन नेत्र से युक्त ऐसे मुखारबिंद वाले जिन प्रभु ने मस्तक के ऊपर सुंदर मुकुट धारण किया हुआ है तथा जिनका शरीर प्रत्येक जगह से सुगठित और योग्य वृद्धि को पाए हुए है। जिसने लोकों तथा समस्त विश्व का सर्जन किया है और तमाम प्रकार के देव मंदिर राजकीय आवास तथा अनेक प्रकार के छोटे-बड़े निवास स्थानों की रचना की है। वह देव विश्वकर्मा हैं। इन पुराण पुरुष विश्वकर्मा का स्वरूप अति उज्ज्वल है। आदि तथा अनादि ऐसे ये प्रभु बेजोड़ अरूप जय तथा अजय के द्वंद्वों से परे होते हुए भी लोकमय और जगत के नाथ हैं। हजार मस्तक वाले हजार नेत्रों वाले, हजारों चरणों वाले, जिन महापुरुष का वेदों में उल्लेख है वह विराट पुरुष के मस्तक से भी बारह अंगुल ऊंचा ऐसे प्रभु विराट विश्वकर्मा गंभीर और उज्ज्वल है। वह सब वेदों के पिता तथा सर्वलोकों के पितामह एवं गुरु हैं। वह परम विश्व स्वरूप अर्थात परम कल्याण की मूर्ति के समान होकर समस्त जगत का कल्याण करते हैं।