इसरो की उड़ान
दूसरी ओर, इसरो ने सफलता के नए-नए अध्याय जोड़े हैं और आज उसकी गिनती दुनिया की सबसे पारंगत अंतरिक्ष एजेंसियों में होती है। यही नहीं, इसरो ने प्रक्षेपण की अपेक्षा सस्ती तकनीक विकसित कर अपने प्रति दुनिया भर में व्यावसायिक आकर्षण भी पैदा किया है। यही कारण है कि आज विकसित देश भी इसरो की सेवाएं लेने लगे हैं। पीएसएलवी-40 के जरिए प्रक्षेपित किए गए उपग्रहों में अमरीका, फ्रांस, कनाडा, ब्रिटेन के भी उपग्रह शामिल हैं। इसरो की कारोबारी क्षमता पर इससे पक्की मुहर और क्या होगी! बहरहाल, कार्टोसेट-2 भारत के लिए बहु-उपयोगी है। तटवर्ती क्षेत्रों, राजमार्गों, जल वितरण और जमीन के नक्शे को बेतहर बनाने और शहरी योजनाएं बनाने में यह मददगार साबित होगा। साथ ही, सरहदी इलाकों की निगरानी में भी सहायक सिद्ध होगा। सीमा पर पड़ोसी देशों की सैन्य गतिविधियां बढ़ने का आभास कार्टोसेट-2 से मिलने वाली तस्वीरों से हो सकता है। यानी कार्टोसेट-2 सुरक्षा के लिहाज से भी अहम है। इससे आपदा से निपटने में भी मदद मिलेगी, क्योंकि समुद्रतटीय इलाकों में होने वाले बदलाव पर नजर रखी जा सकेगी। दो अन्य उपग्रह यानी माइक्रोसेट और नैनो सेटेलाइट इसरो ने प्रायोगिक तौर पर छोड़े हैं। जाहिर है कि इनके सफलतापूर्वक प्रक्षेपण ने भी इसरो के वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाया होगा और अब वे इस तरह की अन्य योजनाओं को कहीं ज्यादा विश्वास के साथ अंजाम दे सकेंगे। इसरो ने उपग्रह प्रक्षेपण में शतक लगा कर एक ऐतिहासिक मुकाम हासिल किया है और 2018 की शुरुआत एक शानदार उपलब्धि के साथ की है।