सियासी मंडी में सत्ता

छोटी काशी का सियासी कद कितना बड़ा है, इसका एहसास मंडी ने हिमाचल प्रदेश के गठन के बाद पहली विधानसभा में ही करवा दिया था, लेकिन मंडी जिला के सियासी कद को उसका असली मुकाम अब मिला है। लगभग सात दशक पहले स्वर्गीय पंडित गौरी प्रसाद से शुरू हुई कहानी कर्म सिंह ठाकुर, पंडित सुखराम और कौल सिंह से होते हुए अब जयराम ठाकुर की ताजपोशी से अब परवान चढ़ी है….             अमन अग्निहोत्री

छोटी काशी का सियासी कद कितना बड़ा है, इसका एहसास मंडी ने हिमाचल प्रदेश के गठन के बाद पहली विधानसभा में ही करवा दिया था, लेकिन मंडी जिला के सियासी कद को उसका असली मुकाम अब मिला है।  इससे पहले दो बार तो प्रत्यक्ष रूप से और कई बार अप्रत्यक्ष रूप से मंडी के नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी दूसरे जिलों के नेताओं को थाली में सजा कर देते आए हैं। 1967 में कर्म सिंह और 1993 में पंडित सुखराम के साथ यही खेल हुआ था और मंडी को मुख्यमंत्री नहीं मिल सका।  इतिहास पर नजर डालें तो प्रदेश के गठन के बाद बनी पहली टेरीटोरियल काउंसिल मंडी से ही चली थी। इस काउंसिल के पहले अध्यक्ष मंडी के चच्योट विस के कर्म सिंह ठाकुर बने थे। यूं भी कहा जा सकता है कि एक तरह से उस समय कर्म सिंह ठाकुर ही प्रदेश के पहले मुखिया थे, लेकिन यह दीगर है कि 1952 में जब  विधानसभा चुनाव हुए तो कर्म सिंह ठाकुर विधायक तो चुने गए पर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच सके, लेकिन आज उसी चच्चोट व आज सराज विस क्षेत्र के नाम से पहचाने जाने वाले क्षेत्र से प्रदेश का 13वां मुख्यमंत्री और मंडी को पहला मुख्यमंत्री मिला है। छोटी काशी ने प्रदेश व देश को कई नेता दिए हैं। प्रदेश के दो मुख्यमंत्रियों स्वर्गीय वाईएस परमार और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की कर्म भूमि पर मंडी जिला रह चुका है। प्रदेश गठन के बाद पहली विधानसभा में ही मंडी से एक मंत्री के साथ आठ अन्य विधायक भी विधानसभा में पहुंचे थे। पहली विधानसभा में मंडी से गौरी प्रसाद ऐसे मंत्री थे, जिनके पास एक नहीं बल्कि 6 विभागों का जिम्मा था। उनके बाद ठाकुर कर्म सिंह मंडी जिला से बडे़ नेता के रूप में उभर कर सामने आए, लेकिन 1967 में मुख्यमंत्री बनने का अवसर उनके हाथों से भी निकल गया। उनके बाद मंडी जिला में पंडित सुखराम का एक बडे़ नेता के रूप में आगमन हुआ। 1977 के बाद पंडित सुखराम धीरे-धीरे मंडी जिला की राजनीति पर हावी होते गए और 1993 में मुख्यमंत्री की कुर्सी के करीब पहुंच गए। पंडित सुखराम मंडी से लोकसभा में भी गए और कई केंद्रीय विभागों का जिम्मा उन्हें मिला। संचार मंत्रालय की बागडोर ने उन्हें संचार क्रांति का मसीहा बना दिया, लेकिन 1993 में चाहकर भी पंडित सुखराम सीएम नहीं बन सके। बीते इन सात दशकों में मंडी जिला ने कौल सिंह ठाकुर, गुलाब सिंह, जयराम ठाकुर, महेंद्र सिंह ठाकुर, रूप सिंह और अनिल शर्मा जैसे नेता भी राजनीति को दिए हैं, जिन्होंने राजनीति में अहम स्थान प्राप्त किए हैं। इनमें कौल सिह ठाकुर दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, लेकिन मंडी से मुख्यमंत्री के नारे को प्रबल करवा कर भी कुर्सी तक नहीं पहुंच सके।  मंडी की राजनीति में घरानों का भी बड़ा योगदान रहा है। इसमें राजा जोगिंद्र सेन, राजा ललित सेन,   महेश्वर सिंह और वीरभद्र सिंह,  प्रतिभा सिंह और राजकुमारी अमृत कौर राजघरानों के ऐसे सदस्य हैं, जिन्होंने देश की संसद का प्रतिनिधित्त्व किया है। मंडी ने ही भाजपा व कांग्रेस को दो प्रदेशाध्यक्ष भी कई बार दिए हैं। कांग्रेस से लगातार दो बार अध्यक्ष बनने वाले कौल सिंह ठाकुर, भाजपा से गंगा सिंह ठाकुर और भाजपा से ही जयराम ठाकुर शामिल हैं। इसी तरह से अब तक अनगिनत विधायकों के साथ मंडी से अब 18 मंत्री भी बन चुके हैं, जबकि अब पहली बार मंडी जिला को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली है।

पहली गठबंधन सरकार भी मंडी की देन

1998 में पैदा हुई हिमाचल विकास कांग्रेस को मंडी की जनता ने चार विधायक दिए थे और हिमाचल विकास कांग्रेस ने प्रदेश में पहली गठबंधन सरकार बना डाली। यही नहीं,उस समय जब भाजपा कांग्रेस के एक-एक विधायक को लेकर जोड़-तोड़ चली हुई थी तो मंडी जिला से ही कांग्रेस विधायक गुलाब सिंह ठाकुर को भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष बना तुरुप की चाल चली थी, जबकि पिछले विधानसभा चुनावों में जिला में भाजपा और कांग्रेस को पांच-पांच सीटें मिली थी, जबकि अब तो पूरा जिला ही भाजपा के साथ चला है।

धीरे धीरे सी‌ढ़ियां चढ़ते गए जयराम

6 जनवरी, 1965 को जन्मे प्रदेश के 13वें मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर न-न करते हुए पहले छात्र राजनीति में आए और फिर परिवार वालों की इच्छा के खिलाफ विस चुनाव भी लड़ लिया। तब किसी ने सोचा नहीं होगा कि कभी जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री भी बनेंगे। एक समय था जब मंडी जिला में भाजपा की पूरी राजनीति पूर्व मंत्री एवं सुंदरनगर से विधायक रूप सिंह ठाकुर के ईद-गिर्द ही घूमती थी, लेकिन 2003 में रूप सिंह जब चुनाव हारे और जयराम ठाकुर अपना दूसरा चुनाव जीत गए तो फिर भाजपा की राजनीति का ध्रुवीकरण चच्योट-सराज के हाथों में आना शुरू हो गया। जयराम ठाकुर मंडी जिला से ही नहीं बल्कि प्रदेश से इस समय भाजपा के एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष के बल पर राजनीति की एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए मुख्यमंत्री के पद को प्राप्त किया है। 1989 से 1993 तक जम्मू-कश्मीर में इकाई संगठन सचिव रहते हुए जयराम ठाकुर के राजनीतिक जीवन की असली कहानी लिखी गई थी। उस समय जयराम ठाकुर प्रदेश के सबसे बड़े भाजपा दिग्गज शांता कुमार के संपर्क में आए और फिर शांता कुमार ने 1993 में उन्हें चुनाव में उतार दिया था। हालांकि जयराम ठाकुर यह चुनाव जरूर हार गए, लेकिन उनके सक्रिय राजनीतिक जीवन की शुरुआत इस चुनाव से हो गई थी। मंडी के वरिष्ठ पत्रकार बीरबल शर्मा व वरिष्ठ साहित्कार मुरारी शर्मा कहते हैं कि 2003 में रूप सिंह की हार के बाद जयराम ठाकुर की छवि जिला के नेता के रूप में बनना शुरू हो गई थी और 2006 में भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद जयराम मंडी के सबसे बड़े और प्रदेश स्तरीय नेता बन कर उभरे थे। उस समय लोगों को इस बात का एहसास हुआ था कि एक दिन जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचेंगे। 2007 के चुनाव में पार्टी को सत्ता में लाना और अपना तीसरा चुनाव जीत कर जयराम ठाकुर ने मंडी जिला भाजपा को अपनी पकड़ में कर लिया था। लोकसभा उपचुनाव में भी जब अन्य नेता लड़ने को तैयार नहीं थे, तो जयराम ठाकुर ही कांग्रेस के सामने लोहा लेने को खडे़ हुए थे।

अपनों की दगाबाजी से सीएम की जंग हारता रहा मंडी

1993 में कौल-रंगीला राव ने रोके सुखराम के कदम

छोटी काशी ने राजनीति में कई पड़ाव देखे हैं। कई बार मौके आए, लेकिन अपने ही दगा कर गए। तो कई बार किस्मत ने मंडी का साथ नहीं दिया, लेकिन अब आजादी के बाद पहली बार जिला से मुख्यमंत्री बनने पर छोटी काशी की हसरतें पूरी हुई हैं। यह भी खास है कि इससे पहले सीएम की कुर्सी मिलने का मौका दो बार कांग्रेस नेताओं के हाथ में आया, लेकिन कांग्रेस के नेताओं की हसरतें उनके ही साथियों ने तोड़ दी, जबकि पहली बार भाजपा को यह मौका मिला और भाजपा नेता इसमें सफल भी हो गए। हालांकि इससे पहले कई बार कांग्रेस तो कई बार भाजपा और पहली बाद प्रदेश की गठबंधन सरकार बनाने का श्रेय भी मंडी जिला को ही जाता है, लेकिन मंडी जिला इससे पहले सीएम की कुर्सी की जंग में हर बार अपनों के कारण ही हारता आया है। छोटी काशी दूसरे जिलों की सरकार बना कर भी कभी मंडी की सरकार नहीं बना सकी थी। टेरिटोरियल काउंसिल के भंग होने के बाद मंडी की राजनीति ने करवट ली और कर्म सिंह ठाकु र  के मुख्यमंत्री बनने के आसार थे,तो उनके हाथ से मौका चला गया। तब भी अपनों का ही साथ नहीं मिल सका। इसके बाद 1993 में पंडित सुखराम का मुख्यमंत्री बनना लगभग तय हो गया था, लेकिन अंत में अपने ही जिला के दो नेताओं ने मुख्यमंत्री को छोड़ मंत्री पद को चुन लिया था। कहते हैं उस समय कौल सिंह ठाकु र और रंगीला राम राव वीरभद्र सिंह की तरफ हो गए और फिर से मंडी से सीएम कुर्सी दूर चली गई। पंडित सुखराम के बाद कौल सिंह ठाकुर मंडी से सीएम की रेस में शामिल हुए। उनकी वीरभद्र सिंह से दूरियां बढ़ीं और 2012 के चुनावों से पहले उनके समर्थकों व खुद कौल सिंह ने मंडी से सीएम का नारा दिया। कौल सिंह ठाकुर की दावेदारी इससे पहले कि पूरी तरह से मजबूत हो पाती, वीरभद्र सिंह ने दौड़ से ही बाहर कर दिया। उस समय भी चुनाव से पहले मंडी से कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता कौल सिंह ठाकुर के साथ नहीं खड़ा हुआ था। जबकि अब भाजपा ने इस मिथक को तोड़ा है।

शृंगार के इंतजार में सराज

मंडी जिला में सराज वैली एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे ईश्वर ने चुन-चुन कर खूबसूरती दी है। ऊंचे पहाड़, खूबसूरत ढलानें, बर्फ से भरे मैदान व चोटियां, कल कल करते बहते झरने, देवी-देवताओं के सदियों पुराने प्राचीन मंदिर और ऐसी प्राकृतिक सुंदरता कुदरत ने दी है कि एक बार आने वाला फिर से यही आने की तमन्ना करता है। इतना सब कुछ होने के बाद भी सराज के हाथ पर्यटन की दृष्टि से खाली हैं। कुल्लू -मनाली जाने वाले पर्यटकों की कुल संख्या में 2 फीसदी भी सराज वैली नहीं पहुंचता है, जबकि सराज वैली का जंजैहली विंटर गेम व विंटर फेयर का नया और बड़ा केंद्र बन सकता है। यही वजह है कि अब इसी सराज की धरती पर जन्में जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद न सिर्फ मंडी जिला बल्कि सबसे अधिक सराज वैली के पर्यटन को उम्मीदें लगी हैं। सराज के जंजैहली, भुलाह, शिकारी देवी, बूढ़ा केदार, कमरूघाटी, छत्तरी, कई ऐसे स्थल हैं, जिन्हें नए मुख्यमंत्री से ढेरों उम्मीदें हैं।  जानकारों की मानें तो गर्मियों में समर वीकेशन व कैंपिंग वैली और सर्दियों में स्केटिंग संग एडवेंचर्स गतिविधियां जंजैहली वैली व सराज की अन्य जगहों पर करवा कर पर्यटन को चार चांद लगाए जा सकते हैं। यही नहीं,भुलाह में विशाल मैदान पर्यटकों को यू हीं अपनी ओर खींचता है। इस मैदान के साथ ही कुछ थोड़ी दूरी पर कृत्रिम झील बनाने की भी अपार संभावनाएं हैं। अगर यह झील बने तो वाटर स्पोर्ट्स, वोटिंग के साथ ही कई अन्य टूरिज्म एक्टिविटी की जा सकती हैं। भुलाह मैदान में पर्यटकों के लिए कई तरह की अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा सकती हैं। वहीं सोलंग वैली और रोहतांग में एनजीटी के प्रतिबंध के बाद मंडी की जंजैहली वैली को पर्यटन के लिए एक नए हब के रूप में विकसित किया जा सकता है, लेकिन यह दुखद है कि अभी तक जंजैहली घाटी के लिए कोई प्रयास नहीं हो सके हैं। यहां पर सैलानियों के लिए सबसे बड़ी समस्या खराब सड़कें और रात्रि ठहराव की है। सर्दियों में सड़कें बर्फबारी से बंद हो जाती हैं तो ठहरने के लिए चंद होटल या गेस्ट हाउस हैं, लेकिन अगर बडे़ स्तर पर पर्यटन के लिए प्रयास हों तो ये सुविधाएं सरकार को पहले उपलब्ध करवानी होंगी। जंजैहली वैली में इस समय एक दर्जन के लगभग टै्रक रूट्स हैं। बाहरी राज्यों से हर वर्ष सैंकड़ों की तादाद में मनाली जाने वाले स्कूल व कालेज ट्रूप्स को जंजैहली में कैंपिंग व एडवेंचर्स के लिए आमंत्रित किया जा सकता है।

शूटिंग की अपार संभावनाएं

जंजैहली वैली में शूटिंग के लिए ढेरों स्थान हैं। यहां वर्ष भर शूटिंग भी होती रहती है, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के लिए यहां सबसे बड़ी समस्या कम वोल्टेज और ठहरने की ही है।

कभी प्रचारित नहीं हुई वैली

जंजैहली वैली मनाली के कंकरीट से कोसों दूर और प्रकृति की खोद में ज्यादा करीब बसी है, लेकिन कभी भी प्रदेश सरकारों ने जंजैहली वैली को मनाली, धर्मशाला और शिमला की तर्ज पर पर्यटन के लिए प्रचारित ही नहीं किया है।

बड़ा ओहदा, बड़ी उम्मीदें

मंडी जिला को पहली बार मुख्यमंत्री मिलने के बाद जहां लोगों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। वहीं अब जनता की उम्मीदों का अंबार भी नए मुख्यमंत्री के सामने खड़ा है। लोगों को अब न सिर्फ जिला के विकास से जुड़ी योजनाओं के मिलने की उम्मीद है, बल्कि जनता की निजी उम्मीदें भी नए मुख्यमंत्री के सामने खड़ी होने को तैयार हैं। पर्यटन, धार्मिक पर्यटन, बागबानी, ऊर्जा, जड़ी-बूटी, फल-फूल व कृषि आधारित उद्योग, आयुर्वेद, और मत्स्य पालन जैसे ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां आज तक संभावनाएं तलाशी ही नहीं गई हैं। इन सभी क्षेत्रों में कोई खास व नया करने की उम्मीदें वर्तमान सरकार से अब मंडी जिला की जनता को लगी हैं। इसके अलावा भी मंडी जिला में कई ऐसे अधूरे व लटके हुए भी प्रोजेक्ट पडे़ हैं, जिन्हें पूरा करवाना जिला के नए मुख्यमंत्री के लिए चुनौती भरा है।  भूमि अधिग्रहण व कई अन्य समस्याओं  के कारण मनाली-कीरतपुर फोरलेन का काम लटका पड़ा है। तो वहीं हजारों की तादाद में विस्थापित अपने हकों व मुआवजे के लिए लड़ रहे हैं।  नेरचौक मेडिकल कालेज को पूरी तरह से चलाने की समस्या भी सामने खड़ी है, तो मेडिकल यूनिवर्सिटी, क्लस्टर यूनिवर्सिटी, मंडी में हवाई अड्डा, ब्यास में   कृत्रिम झील, बीबीएमबी के प्रभावितों को हक दिलाना, गुम्मा की नमक खान सहित अन्य कई लटके हुए प्रोजेक्ट हैं, जिन्हें शुरू करने की उम्मीद नई सरकार से जनता को है। इसके साथ जिला के बडे़ शहरों में बढ़ती पार्किंग की दिक्कत और ग्रामीण क्षेत्रों में अवारा पशुओं, जंगली जानवरों व बंदरों से किसानों को यह सरकार निजात दिलाएगी, इसकी उम्मीद भी जनता को नए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से हैं।

पहली बार कांग्रेस का सफाया

मंडी जिला राजनीतिक दृष्टि से पूरे प्रदेश में इसलिए सबसे अहम है क्योंकि हर चुनाव में मंडी की जनता हैरान करने वाले ही परिणाम देती है। इस चुनाव में भी किसी ने यह कल्पना नहीं की थी कि जनता छोटी काशी से कांग्रेस का सफाया ही कर देगी। जिला में कांग्रेस के सभी बडे़-बडे़ दिग्गज जनता ने उखाड़ फेंके। यूं तो इससे पहले भी मंडी जिला हर सरकार में अपनी अलग छाप छोड़ता आया है।

1998 में भी बनाई थी सरकार

प्रदेश को पहली गठबंधन और भाजपा की पांच साल चलने वाली सरकार भी इसी जिला ने दी थी। जब-जब जिला की जनता और नेताओं का मूड बदला है, तब-तब प्रदेश  की सत्ता में उलटफेर हुआ है। बहुमत न होने के बाद भी 1998 में भाजपा की सरकार मंडी ने ही बनवाई थी। उस समय कांग्रेस छोड़ कर हिमाचल विकास कांग्रेस  के जनक और राजनीति के चाणक्य पंडित  सुखराम की एक चाल ने वीरभद्र के हाथों से सत्ता को छीन लिया था।