19 घंटे पैदल चलकर भारतीय सेना ने नाकाम की चीन की चाल

तूतिंग इलाके में ड्रैगन की घुसपैठ की खबर मिलते ही खदेड़ने निकल पड़े थे जवान 

गुवाहाटी— अरुणाचल प्रदेश के तूतिंग इलाके में चीनी सेना की रोड बनाने वाली टुकड़ी की घुसपैठ की खबर मिलते ही भारतीय सैनिक रवाना हो गए थे और 19 घंटे पैदल चलकर मौके पर पहुंचे थे। भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी के पहुंचने के बाद चीनी सेना की सड़क बनाने वाली टुकड़ी के जवान वापस लौट गए। यह शायद डोकलाम में देरी से प्रतिक्रिया के चलते चीनी सैनिकों के साथ 70 दिनों तक चले गतिरोध की सीख थी कि 28 दिसंबर को एक कुली से सूचना मिलते ही टुकड़ी रवाना कर दी है। चीनी सेना के सड़क निर्माण की सूचना एक कुली ने दी थी, जिसके बाद तुरंत सैनिकों को मैकमोहन लाइन के लिए रवाना किया गया। अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सियांग जिला में सड़क नहीं होने की वजह से भारतीय सैनिकों को पैदल घुसपैठ स्थल तक पहुंचना पड़ा और इसमें 19 घंटे लग गए। भले ही सेना ने इस मामले में जीवट दिखाया, लेकिन सीमावर्ती क्षेत्रों के इंफ्रास्ट्रक्चर की समस्या भी इससे उजागर होती है कि सैनिकों को पैदल इतना लंबा सफर तय करना पड़ा। भारतीय सेना के 120 जवान राशन के साथ सीमा पर भेजे गए, ताकि वे वहां पर करीब एक महीने तक आसानी से रह सकें। सीमा पर सड़क नहीं होने और खच्चर आदि की सुविधा न होने की वजह से भारतीय सेना को अपने 300 पोर्टर लगाने पड़े, जिससे सैनिकों के लिए राशन वहां पहुंचाया जा सके। एक रक्षा सूत्र ने कहा कि शुरू में ऐसा लगा कि चीनी सेना डोकलाम के बाद विवाद का एक और मोर्चा खोलना चाहती है। हमें यह विश्वास था कि वहां पर लंबे समय तक रुकना पड़ सकता है। डोकलाम विवाद से सबक लेते हुए हमने 28 दिसंबर को ही घुसपैठ स्थल के लिए सैनिकों को रवाना कर दिया।

बार्डर तक बनाई सड़क

उन्होंने बताया कि दूसरी तरफ छह जनवरी को फ्लैग मीटिंग के लिए आए चीनी सैनिक सीमा तक अपने वाहन से आए थे। मामला तत्काल सुलझ गया और चीन के सैनिक सड़क बनाने वाली अपनी मशीनों के साथ वापस लौट गए। हालांकि उनके उपकरणों को स्थानीय लोगों ने नुकसान पहुंचा दिया था। सूत्र ने बताया कि स्थानीय लोगों के विरोध के बाद चीन के सिविलियन वर्कर अपने उपकरण छोड़कर भाग गए। उन्होंने कहा कि लेकिन अगर वे बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों के साथ वापस आते तो क्या होता। इसी आशंका को देखते हुए हमने सबसे पहले रक्षात्मक उपाय किए, लेकिन हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने संसाधनों को जमा करना था। हालांकि इसमें भी चुनौतियां और कठिनाइयां थीं।

सैनिकों के लिए नहीं था पीने का पानी

पोर्टर के आने से पहले सेना ने हेलिकाप्टर से 100 पैकेट भोजन और 30 हजार पैकेट चॉकलेट गिराया। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भीषण ठंड और पथरीली जमीन को देखते हुए चॉकलेट जिंदा रहने के लिए ऊर्जा के स्रोत के रूप में काम करता है। सूत्र ने कहा कि शुरू में पानी का कोई स्रोत नहीं था और पानी की केन को हेलिकाप्टर से गिराना पड़ा। कुलियों का काम काफी कठिन था। प्रत्येक आदमी को 10 से 15 किलो राशन ले जाना था। साथ ही उन्हें वापस नीचे आने और दूसरी यात्रा से पहले आराम करना भी जरूरी था। हमने 120 जवानों के लिए 30 दिन का राशन भेजा। प्रत्येक सैनिक को करीब डेढ़ किलो राशन की जरूरत होती है जिसमें पानी और मिट्टी का तेल शामिल है।

भारतीय क्षेत्र में भूस्खलन का खतरा

उन्होंने बताया कि दूसरी तरफ चीनी सेना को भौगोलिक लाभ है। सूत्र ने कहा कि चीन की तरफ की मिट्टी कठोर और हमेशा जमी रहती है। हमसे उलट वे आसानी से सड़क बना सकते हैं। भारतीय क्षेत्र में मिट्टी भुरभुरी है और भू-स्खलन का खतरा बना रहता है। इससे जो भी सड़कें बनेंगी वे नष्ट हो जाएंगी। उन्होंने बताया कि जिस जगह पर घुसपैठ हुई है, वहां शुक्रवार को तीन फुट बर्फ पड़ी थी। उन्होंने कहा कि हमने अपने सैनिकों को नजदीक के नीचले इलाकों में वापस बुला लिया है। इस जगह पर एक निश्चित समय पर ही गश्त लगाई जाती है।