मुझे गति पकड़ने में पच्चीस साल लगे
मैं जब अपनी जिंदगी की ओर मुड़कर देखता हूं तो मुझे लगभग ढाई या तीन महीने की उम्र से अपनी जिंदगी का हर दिन याद है। उसी समय से हर चीज मुझे बताती थी कि मुझे क्या करना चाहिए, लेकिन मैं इतना स्मार्ट था कि सुनता ही नहीं था। मेरे विचार और तर्क खुद को इतना स्मार्ट समझते थे कि ये किसी की सुनना ही नहीं चाहते थे। इसलिए चीजें पच्चीस सालों तक टलती गईं। इस दौरान मेरे साथ जो भी घटित हुआ, उसे मैंने अपने तर्कों और दलीलों के खांचे में बैठाने की कोशिश की और जो चीजें मेरे खांचे में नहीं बैठीं, उन्हें मैंने खारिज कर दिया। उस समय मेरे साथ कई चीजें घटित हुईं। आज जब मैं मुड़कर उनकी तरफ देखता हूं तो मुझे समझ में आता है कि तब हर चीज मुझे एक ही दिशा में ढकेलती थी, लेकिन मैं उन्हें अपने तर्कों की कसौटी पर जांचने की कोशिश करता था। जब वे उन कसौटियों पर खरी नहीं उतरती थीं तो मैं उन्हें ‘यह अच्छी नहीं, वह अच्छी नहीं’ कह कर खारिज कर दिया करता था। पच्चीस साल लग गए मेरे भीतर कुछ गति आने में, एक संवेग हासिल करने में।
आश्रम की गतिविधियों का उद्देश्य
आश्रम में कुछ लोग ऐसे होंगे जो बिल्कुल गुलामों के मालिक जैसे लगेंगे। वे आपको लगातार बताते रहते होंगे कि आपको क्या करना चाहिए। अगर आप उन्हें देखेंगे तो ऐसा लगेगा कि उन्हें खुद ही नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं, फिर भी वे हरदम आपको हिदायत देते रहेंगे। जब ये लोग आपसे कुछ कहते हैं तो आप सहज रूप से उस पर अमल करते हैं। ऐसा क्यों? क्या वे सही हैं या आप गलत हैं? नहीं, आप सही हैं, फिर भी वे अपनी जगह हैं। यही सबसे बड़ा फर्क है। आपको जो दिया जाता है, उसे आप करते हैं। आज आप आश्रम की रसोई में कुछ कर रहे हैं, कल वे आपको अभिलेखागार (आर्काइव्स) में लगा देंगे। अभिलेखागार में आप बेहतरीन काम कर रहे होंगे, लेकिन वे आपको वहां से निकाल कर टॉयलेट की सफाई में लगा देंगे। ऐसा लगता है कि वह आपके साथ बदले की भावना से काम करवा रहे हैं। हालांकि वे यह सब किसी बदले की भावना से नहीं करवा रहे, बल्कि आश्रम की रचना ही इस मकसद से हुई है कि आपको कहीं एक जगह बसने या टिकने न दिया जाए। तो मैं चाहता हूं कि आप आश्रम की व्यवस्था के पीछे छिपे मतलब को समझें और इस जगह का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाएं।
आग को भड़कने दें
जानने की आग में जलना अच्छा है, क्योंकि अगर आपमें जानने की आग नहीं होगी तो आप आगे नहीं बढ़ेंगे। तो आप जान लें कि एक रॉकेट की तरह जब यह जले तो इसे ठंडा न होने दें। इसे और जलने दें। इसे आपको उस सीमा तक जलाना होगा, जहां वह बल पैदा हो सके, जो आपके पुराने बोझों से ज्यादा हो और तभी उसमें गति आएगी। और जब गति आएगी तो आपके बोझ संवेग पैदा करेंगे। अगर आपमें पर्याप्त संवेग पैदा हो गया तो यह किसी भी बाधा को पार कर जाएगा। इसे रोकिए मत, इसे होने दीजिए। यह उस आग को बुझाने का नहीं, बल्कि इसे और भड़काने और ज्यादा भड़काने का वक्त है। -सद्गुरु जग्गी वासुदेव