अर्थव्यवस्था के ‘चोर-लुटेरे’

भारत ने अर्थव्यवस्था के जिन शिखरों को छुआ है, दुनिया में पांचवें-छठे स्थान की अर्थशक्ति बना है, उसके ‘चोर-लुटेरे’ भी इसी देश में हैं। नीरव मोदी, विजय माल्या, ललित मोदी के उदाहरण तो बेपर्दा हो चुके हैं, लेकिन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि सेबी में सूचीबद्ध कंपनियों की बैलेंस शीट्स की जांच-पड़ताल की जाए, तो कई कालिख-पुते चेहरे बेनकाब हो सकते हैं। मौजूदा बैंकिंग घोटाले के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने जो डाटा संकलित कराया है, उसमें 5200 से अधिक बैंक फ्रॉड के मामले सामने आए हैं। ये फ्रॉड पीएनबी में तो कम हुए हैं, लेकिन अन्य बैंकों में खूब जारी रहे हैं। किसी भी दिन नया विस्फोट हो सकता है कि अमुक बैंक में भी घोटाला किया गया है। 2013-16 के दौरान ही बैंकों में 17,504 फ्रॉड हुए हैं, जिनमें 66,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है। क्या यह कम आर्थिक क्षति है? आखिर इसकी भरपाई कैसे होगी, कौन करेगा? सबसे ज्यादा 1538 फ्रॉड भारत के सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक भारतीय स्टेट बैंक में हुए हैं। उसके बाद इंडियन ओवरसीज बैंक का नंबर है, जिसमें 449 फ्रॉड किए गए। सेंट्रल बैंक में भी 406 फ्रॉड पनपे। यूनियन बैंक में 214, पीएनबी में 184 और सार्वजनिक क्षेत्र के 22 अन्य बैंकों में 2409 फ्रॉड हुए। ये किसी विरोधी पक्ष के आरोप नहीं हैं, बल्कि बैंकों के भीतर ही उनके अफसरों और कर्मचारियों ने ये घोटाले, फ्रॉड किए हैं। इन संदर्भों में भी यूपीए और मोदी सरकार दोनों के चेहरों पर कालिख पुती है। अर्थव्यवस्था का इतना मोटा हिस्सा कुछ ही घरानों की तिजौरियों में कैद है। वे या तो विदेश भाग गए हैं अथवा जेलों की हवा खाने को विवश हैं। असर तो आम आदमी पर पड़ रहा है, जो अपनी गाढ़ी कमाई को बैंकों में जमा करता रहा है। घोटाले और फ्रॉड न हों, इसके मद्देनजर बैंकिंग प्रबंधन ने कोई सबक नहीं सीखा है। अंतरराष्ट्रीय बैंकों ने तो अपनी जोखिम व्यवस्था को मजबूत किया है। केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के भी नियम हैं कि संवेदनशील पदों पर नियुक्त लोगों की पहचान तय करनी चाहिए और दो-तीन सालों में उनका तबादला किया जाना चाहिए। लेकिन पीएनबी घोटाले में ऐसा नहीं किया गया। हालांकि सीवीसी ने पीएनबी के प्रबंध निदेशक सुनील मेहता और वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों को तलब किया है, ताकि घोटाले के बुनियादी छिद्रों की जानकारी ली जा सके। इतना विस्तृत आर्थिक नुकसान होने के बाद केंद्र सरकार की भी नींद खुली है कि सीवीसी के नियमों का पालन करते हुए किसी भी अधिकारी को तीन साल से अधिक एक ही शाखा में, एक ही पद पर, न रखा जाए। उनका तबादला अनिवार्य होना चाहिए। लेकिन जांच में यह यथार्थ भी सामने आना चाहिए कि पीएनबी घोटाला लगातार सात साल तक जारी कैसे रहा? ‘मास्टरमाइंड’ गोकुलनाथ शेट्टी एक ही सीट पर क्यों रहा? किसने उसके तबादलों को रोका? बैंक ने जो लॉग-इन और पासवर्ड उसे मुहैया कराए थे, वे नीरव मोदी और मेहुल चोकसी तक कैसे पहुंचे? और वे उनका दुरुपयोग कर फर्जी गारंटी-पत्र जारी कैसे करते रहे? क्या ‘घोटाले के खलनायकों’ के पीछे शीर्ष अधिकारी भी रहे? क्या घोटाले के तार वित्त मंत्रालय तक से जुड़े हैं? जांच में ये खुलासे होंगे या नहीं, यकीन से नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पहले के घोटालों में भी संसद की संयुक्त जांच समितियां बैठती रही हैं, लेकिन घोटालों की रफ्तार तक नहीं रुकी है। कोई गंभीर कार्रवाई भी सामने नहीं आई है। नीरव का साम्राज्य अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, सिंगापुर, हांगकांग, दुबई, मकाऊ से लेकर बेल्जियम तक फैला है। वह न्यूयार्क के एक होटल में है या बेल्जियम भाग गया है, अभी तक इंटरपोल भी सुराग नहीं लगा पाया है। भारत के शहरों में छापे जारी हैं, संपत्तियां जब्त की जा रही हैं, बैंक खाते सीज किए गए हैं, करीब 6000 करोड़ रुपए के हीरे, जवाहरात, महंगे पत्थर भी जब्त किए गए हैं, लेकिन इनका तब तक कोई मूल्य नहीं है, जब तक इन्हें बेचकर बैंकों का खोया धन वापस न किया जाए। कानून ही ऐसा है। जब तक पूरा केस खत्म नहीं हो जाता, तब तक इन जब्तियों को बेचकर घोटाले की कीमत की भरपाई नहीं की जा सकती। सरकारी एजेंसियां बेहद सक्रिय हैं, यह मोदी सरकार का ‘डंडा’ भी हो सकता है। सवाल मोदी सरकार पर भी आया है, क्योंकि उनके कार्यकाल में बैंक फ्रॉड जारी रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी को ‘दागदार चौकीदार’ के तौर पर चुनाव में जाना पड़ सकता है। लिहाजा इस घोटाले के फलितार्थ बेहद दिलचस्प होने वाले हैं।