आदिकाल से रहस्य बना हुआ है कल्पवृक्ष

ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। यह यूरोप के फ्रांस व इटली में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। यह दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है…

कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से कल्पवृक्ष भी एक था। कल्पवृक्ष को अन्य कई नामों से भी जाना जाता है, जैसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु, देवतरु और कल्पलता।

सुरकानन वन में स्थापना

पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इंद्र को दे दिया गया था और इंद्र ने इसकी स्थापना सुरकानन वन में कर दी थी। कल्पवृक्ष के विषय में यह भी कहा जाता है कि इसका नाश कल्पांत तक नहीं होता। तूबा नाम से ऐसे ही एक वृक्ष का वर्णन इस्लाम के धार्मिक साहित्य में भी मिलता है, जो सदा अदन में फूलता-फलता रहता है।

कितना सच?

लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या सचमुच ऐसा कोई वृक्ष था या है? यदि था तो क्या आज भी वह है? यदि है तो वह

कैसा दिखता है और उसके क्या फायदे हैं?

कहां है चमत्कारिक कल्पवृक्ष

ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। यह यूरोप के फ्रांस व इटली में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। यह दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है। इसको फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने 1775 में अफ्रीका में सेनेगल में सर्वप्रथम देखा था, इसी आधार पर इसका नाम अडनसोनिया टेटा रखा गया। इसे बाओबाब भी कहते हैं।

कैसा है कल्पवृक्ष

वृक्षों और जड़ी-बूटियों के जानकारों के मुताबिक यह एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है जिसकी टहनी लंबी होती है और पत्ते भी लंबे होते हैं। दरअसल, यह वृक्ष पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है और इसके पत्ते कुछ-कुछ आम के पत्तों की तरह होते हैं। इसका फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटका रहता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी-सी गेंद में निकले असंख्य रुओं की तरह होता है। पीपल की तरह ही कम पानी में यह वृक्ष फलता-फूलता है। सदाबहार रहने वाले इस कल्पवृक्ष की पत्तियां बिरले ही गिरती हैं, हालांकि इसे पतझड़ी वृक्ष भी कहा गया है। यह वृक्ष लगभग 70 फुट ऊंचा होता है और इसके तने का व्यास 35 फुट तक हो सकता है। 150 फुट तक इसके तने का घेरा नापा गया है। इस वृक्ष की औसत जीवन अवधि 2500-3000 साल है। कार्बन डेटिंग के जरिए सबसे पुराने फर्स्ट टाइमर की उम्र 6,000 साल आंकी गई है।

कहां है कल्पवृक्ष

औषध गुणों के कारण कल्पवृक्ष की पूजा की जाती है। भारत में रांची, अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा किनारे, कर्नाटक आदि कुछ महत्त्वपूर्ण स्थानों पर ही यह वृक्ष पाया जाता है। पद्मपुराण के अनुसार परिजात ही कल्पवृक्ष है। यह वृक्ष उत्तरप्रदेश के बाराबंकी के बोरोलिया में आज भी विद्यमान है। कार्बन डेटिंग से वैज्ञानिकों ने इसकी उम्र 5,000 वर्ष से भी अधिक की बताई है। ग्वालियर के पास कोलारस में भी एक कल्पवृक्ष है।