नए फलों के परीक्षण को चाहिए विशेष विभाग

डा. चिरंजीत परमार

लेखक, वरिष्ठ फल वैज्ञानिक हैं

हमें ठीक तरीके से नए फलों और नई किस्मों का चुनाव करना चाहिए, जिसकी आज बहुत आवश्यकता है।  इसके लिए प्रदेश में तीन-चार अलग ही अनुसंधान केंद्र स्थापित करने पड़ेंगे, तभी यह काम वैज्ञानिक तरीके से पूर्ण समर्पित रूप से हो सकेगा…

हिमाचल प्रदेश में सेब और अन्य पहाड़ी फलों की खेती की शुरुआत विदेशियों द्वारा कोई 150 वर्ष पूर्व की गई थी। इनमें ज्यादा अंग्रेज थे और एक अमरीकी था। जैसा कि हमेशा होता है, सभी लोग अपने इलाके से ही फलों की किस्में मंगाते हैं। इसलिए दोनों से फलों के पौधे इनके देशों से आए और इन्हीं किस्मों से हिमाचल का फल उद्योग या बागबानी शुरू हुई। सेब की अमरीका से आई किस्में लोगों की पसंद बनीं और बाकी फलों की किस्में इंग्लैंड और अमरीका की लगी। जब हिमाचल बना और उसमें कृषि विभाग की स्थापना हुई, विभिन्न भागों में प्रोजनी ऑर्चर्ड लगाए गए। इनमें विभिन्न फलों की अधिकाधिक किस्में लगाई गईं, क्योंकि जिन स्थानों पर ये बागीचे लगे, वहां की जलवायु सब फलों के अनुकूल नहीं थी। इसलिए उन स्थानों पर केवल वही फल सफल हुए, जहां की जलवायु उनके अनुकूल थी। इन बागीचों के कारण यह पता लग गया कि प्रदेश का कौन सा इलाका किस फल के लिए उपयुक्त है और इसी जानकारी के आधार पर प्रदेश के लिए भविष्य का बागबानी विकास कार्यक्रम बनाया जा सका। इसके साथ ही प्रदेश में कुछ बागबानी अनुसंधान केंद्र भी खोले गए, जिनमें सेब और ठंडे इलाकों में उगाए जाने वाले अन्य फलों के लिए मशोबरा और गर्म इलाकों के फलों के लिए धौलाकुआं प्रमुख थे। इन अनुसंधान केंद्रों में विभिन्न फलों की सैकड़ों किस्में लगाई गईं और उनकी जांच की गई। यह सब साठ साल पहले हुआ था। इसके उपरांत इस दिशा में कोई नया काम नहीं हुआ। परिणामस्वरूप हिमाचल के बागबान अपने बागीचों में केवल उन्हीं किस्मों को लगाते रहे, जिनसे एक सदी पहले फल उद्योग की शुरुआत हुई थी। हालांकि इस दौरान हिमाचल में फल अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए बहुत काम किए। नए फल अनुसंधान केंद्र स्थापित हुए। नए फल वैज्ञानिकों की भर्ती की गई, विश्वविद्यालय शुरू किए गए। नौणी में बागबानी के लिए विशेष विश्वविद्यालय स्थापित किया गया। हालांकि पिछले दस-बारह साल से इस बात की बहुत आवश्यकता महसूस की जा रही थी कि हिमाचल प्रदेश में नए फलों और फलों की नई विकसित किस्मों का परीक्षण किया जाना चाहिए।

बागबानी विश्वविद्यालय नौणी में नई किस्मों पर अनुसंधान के लिए फ्रूट ब्रीडिंग नामक एक विशेष विभाग की भी स्थापना की गई, पर कोई विशेष परिणाम हासिल नहीं हुआ और अंततः यह विभाग बंद कर दिया गया। अंततः हारकर हिमाचल सरकार ने नई किस्मों के पौधे विदेशों से आयात करने का सुगम रास्ता अपनाया और यह सिलसिला पिछले चार-पांच साल से चल रहा है। नई किस्मों का चुनाव किसी विशेष आधार पर नहीं हुआ है, इसलिए इस पर सवाल भी उठने लगे। प्रदेश में फल वैज्ञानिकों की समुचित संख्या और अनुसंधान सुविधाओं के होते हुए भी नए फलों पर शोध कार्य नहीं हुआ। इसके दो कारण हैं। पहला, यह एक ऐसा काम है जिसमें परिणाम प्राप्त करने में बहुत समय लगता है। उसके बावजूद इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि आपको मनचाहे परिणाम मिल पाएंगे। वैज्ञानिकों के काम का मूल्यांकन उनके द्वारा छापे गए शोध पत्रों से किया जाता है यानी यह माना जाता है कि जिसने अपने कार्यकाल में अधिक शोध पत्र छपवाए हैं, उसने ज्यादा काम किया है। फ्रूट ब्रीडिंग या नए फलों के मूल्यांकन के काम में वर्षों लग जाते हैं। तब कहीं शोध पात्र छपने लायक डाटा प्राप्त होता है और वह भी तब जब आपके द्वारा किए गए अनुसंधान के परिणाम सकारात्मक हों। दूसरा कारण यह है अनुसंधानकर्ताओं की बिरादरी में वह काम श्रेष्ठ समझा जाता है, जिसमें आपको नवीनतम वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग का अवसर मिले। नए फलों के मूल्यांकन में आपको केवल उनकी उपज और खरीददार के दृष्टिकोण से उनकी गुणवत्ता जैसे उनका रूप, रंग, स्वाद आदि ही जांचने होते हैं। ये काम वैसे हैं बहुत ही महत्त्वपूर्ण, पर वैज्ञानिकों की दृष्टि में यह निहायत ही साधारण किस्म के काम हैं, जिसे कोई साधारण शिक्षित व्यक्ति भी कर सकता है। इसलिए वैज्ञानिकों की बिरादरी में यह सम्मानजनक नहीं समझा जाता।

इन कारणों से सभी इस विषय पर अनुसंधान करने से बचते हैं। मेरी राय में इस समस्या का एक ही हल है और वह यह है कि फ्रूट ब्रीडिंग, नए फल और स्थापित नए फलों की नई किस्मों के लिए अलग विशेष अनुसंधान केंद्र स्थापित किए जाएं, जहां सारे शोधकर्ता केवल यही काम करें। उनके द्वारा काम की प्रगति का मुकाबला केवल इसी किस्म का काम कर रहे शोधकर्ताओं से हो, न कि सभी विषयों पर काम कर रहे शोधकर्ताओं से। मुझे विदेशों के दो बहुत ही प्रसिद्ध फ्रूट ब्रीडिंग संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। इन स्थानों पर काम करके मैंने अनुभव किया कि फ्रूट ब्रीडिंग के लिए एक्सक्लूसिव संस्थान ही होने चाहिएं, जहां केवल यही काम होता हो। तभी काम में पूरी प्रगति संभव है। मेरा हिमाचल की नई सरकार को सुझाव है कि यदि हमें ठीक तरीके से नए फलों और नई किस्मों का चुनाव करना चाहिए, जिसकी आज के समय में बहुत आवश्यकता है। इसके लिए प्रदेश में तीन चार अलग ही अनुसंधान केंद्र स्थापित करने पड़ेंगे, तभी यह काम वैज्ञानिक तरीके से पूर्ण समर्पित रूप से हो सकेगा। पिछले पांच-छह वर्षों से मंत्री और एक-दो अफसर विदेश जाते हैं और वहां से जो किस्में नर्सरी वालों ने सुझाई जाती हैं, उनके पौधे उठा लाए जाते हैं, बिना यह जाने कि ये किस्में हमारे यहां की भूमि और जलवायु में सफल हो पाएंगी भी या नहीं। इस परंपरा का अब त्याग करना होगा।