पत्थरदिलों पर रहम क्यों

राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा

एक तो नापाक पाकिस्तान भारत के हाथों युद्ध में मिली करारी हार के बाद नहीं सुधरा, न ही यह सबसे बड़े शिमला समझौते की कद्र करता है, न आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली नीतियों से बदल रहा और न ही इसके कट्टरपंथी भारत के प्रति जहर उगलना बंद कर रहे हैं। इस हकीकत को भी सारी दुनिया जानती है कि कश्मीर का माहौल खराब करने में भी शत-प्रतिशत पाक का हाथ है। यह भी सच है कि कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा है, लेकिन पाकिस्तान बेवजह इस पर अपना हक जमाने की कोशिश करते हुए यहां का माहौल खराब किए हुए है। भारतीय सेना कश्मीर के नागरिकों के हर कठिन समय और प्राकृतिक आपदा में भी रक्षक बनती रही है, लेकिन कश्मीर के कुछ लोग, जिनमें युवाओं की भी बड़ी संख्या है। नापाक पाक के कट्टरपंथियों और अलगाववादियों के किसी लालच या बहकावे में आकर भारतीय सैनिक पर पत्थरबाजी करने से भी गुरेज नहीं करते। दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर की महबूबा मुफ्ती सरकार ने उन हजारों पत्थरबाजों के दर्ज केस वापस लेने की मंजूरी दे दी, जिन्होंने भारतीय सेना पर भी पत्थरबाजी की थी। महबूबा मुफ्ती ने ऐसा फैसला आखिर क्यों लिया? इसके पीछे उनकी क्या राजनीतिक चाल है, यह तो वही जानें, लेकिन महबूबा के इस फैसले ने यह तो सिद्ध कर दिया है कि जब तक कश्मीर मुद्दे पर ओछी राजनीति होती रहेगी, तब तक न तो नापाक पाक को कड़ा जवाब दिया जा सकेगा, न पत्थरबाज अपनी हरकतों से बाज आएंगे और न ही धरती के स्वर्ग में अमन-शांति बहाल हो पाएगी।