बेरोजगारी से निपटने को बदलें शिक्षा पद्धति

डा. शिल्पा जैन सुराणा, वारंगल (ई-पेपर के मार्फत)

देश में बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े हमारी शिक्षा पद्धति की दयनीय दशा को उजागर करते हैं। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद के लिए अगर पीएचडी या एमफिल डिग्रीधारी आवेदन करते हैं, तो यह स्थिति समझ में आ जाती है। हमें नए रोजगार सृजन की जरूरत है, पर इससे ज्यादा जरूरी है शिक्षा प्रणाली में सुधार की। जब तक हम समस्या की जड़ तक नहीं पहुंचेंगे, समस्या का समाधान बेमानी है। शिक्षा का स्तर दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है, इसके लिए सभी की जवाबदेही बनती है, चाहे वे शिक्षक हों या सरकार। यह पूरी प्रणाली भ्रष्टाचार से बुरी तरह ग्रस्त है। सरकार योजनाओं को बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती, पर सिर्फ योजना बना लेने से कुछ नहीं होता, योजना का क्रियान्वयन होना जरूरी है। समय आ गया है कि उद्यमिता को बढ़ावा दिया जाए। रोजगार के बजाय व्यक्ति आत्मनिर्भर बने। उसको डिग्रीधारी बनाने की बजाय काबिल बनाया जाए। ऐसा शिक्षा पद्धति में बदलाव से ही संभव है और यह बदलाव तभी होगा, जब तृणमूल स्तर से परिवर्तन होगा। बच्चों में यह योग्यता विकसित की जानी चाहिए कि वे आगे चलकर नौकरियों पर निर्भर रहने की बजाय खुद के बलबूते कुछ कर सकें। आगे की स्थिति और भी गंभीर नजर आ रही है। अगर हमने अभी इस ओर ध्यान नहीं दिया, तो बेरोजगारी का दानव और विकराल रूप लेगा।