राज्य के उद्देश्य और नीतियां कितनी भी प्रभावशाली, आकर्षक और उपयोगी क्यों न हों। उनसे उस समय तक कोई लाभ नहीं हो सकता, जब तक कि उनको प्रशासन के द्वारा कार्य रूप में परिणित नहीं किया जाए। इसलिए प्रशासन के संगठन, व्यवहार और प्रक्रियाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। और यह अध्ययन होता है लोक प्रशासन विषय में…
लोक प्रशासन क्या है
बहुत सरल ढंग से कहें तो इसका अर्थ वह जनसेवा है, जिसे सरकार कहा जाने वाला व्यक्तियों का एक संगठन करता है। जिसके प्रमुख उद्देश्य और अस्तित्व का आधार सेवा है। इस प्रकार की सेवा का वित्तीय बोझ उठाने के लिए सरकार को जनता से करों और महसूलों के रूप में राजस्व वसूल कर संसाधन जुटाने पड़ते हैं। जिनकी कुछ आय है उनसे कुछ लेकर सेवाओं के माध्यम से उसका समतापूर्ण वितरण करना इसका उद्देश्य है।
लोक प्रशासन और राजनीति
हम लोक प्रशासन को राजनीतिक संदर्भ से अलग नहीं कर सकते। प्रशासनिक कार्यपालिका या सिविल सेवा की सहायता से चलने वाली राजनीतिक कार्यपालिका की व्यवस्था ही लोक की इच्छा को क्रियात्मक रूप देती है। कार्यपालिका पर विधायिका की श्रेष्ठता का सर्वोत्तम दृष्टांत वह प्रक्रिया है, जिसमें उसके आगे सार्वजनिक व्यय के आकलन प्रस्तुत किए जाते हैं तथा उन पर मतदान कराया जाता है और उसके बाद ही सरकार का कोई भी व्यय वैध या नियमित माना जाता है। सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि सरकार और उसकी प्रशासनिक एजेंसियां संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के दायरे में ही कार्य कर सकती हैं। कानून से कोई भी व्यक्ति ऊपर नहीं होता तथा लोक प्रशासक समेत हर व्यक्ति कानून के शासन से संचालित होता है। इन कारणों से लोक प्रशासन निजी उद्यम और व्यापार प्रबंध से भिन्न दिखाई देता है
लोक प्रशासन एक व्यावहारिक शास्त्र
व्यवहार में भी लोक प्रशासन एक सर्व समावेशी शास्त्र बन चुका है क्योंकि यह जन्म से लेकर मृत्यु तक, पेंशन, क्षतिपूर्ति, अनुग्रह राशि आदि के रूप में व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है। वास्तव में यह व्यक्ति को उसके जन्म के पहले से भी प्रभावित करता है, जैसे भ्रूण परीक्षण पर प्रतिबंध या महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान जैसी नीतियों के द्वारा। अधिकांश पुस्तकों में इसकी विवेचना की जाती है कि यह एक विज्ञान है या कला है, या यह कि इसमें भरपूर मात्रा में दोनों के तत्त्व पाए जाते हैं। लोक प्रशासन चाहे कला हो या विज्ञान हो, यह एक व्यावहारिक शास्त्र है, जो सर्वव्यापी बन चुके राजनीति और राजकीय कार्यकलापों से गहराई से जुड़ा हुआ है।
संभावनाएं कहां-कहां
लोक प्रशासन में एमए करने के बाद आप स्कूल या कालेज स्तर (कालेज में पढ़ाने के लिए यूजीसी नेट परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी) पर अध्यापन का कार्य कर सकते हैं। राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने वाले संस्थानों जैसे आईडीएसएए सेंटर फॉर पालिटिकल रिसर्च, सामाजिक विज्ञान अनुसंधान के अलावा यूएसआईए गैर सरकारी संगठनों में शोध कार्य कर सकते हैं। लोक प्रशासन सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों (भूगोल और समाजशास्त्र के साथ)के बीच लोकप्रिय है।
शैक्षणिक योग्यता
लोक प्रशासन में आर्ट्स संकाय में दस जमा दो करने के बाद स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी तक की डिग्री हासिल की जा सकती है। सिविल सेवा परीक्षा में लोक प्रशासन विषय मददगार साबित होता है। और भी कई प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने के लिए यह अहम भूमिका निभाता है। लगभग सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में इस से संबद्ध पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है।
वेतनमान
इस क्षेत्र में वेतनमान इस बात पर निर्भर करता है कि आप ने रोजगार किस फील्ड में अपनाया है। यदि आप कालेज स्तर में अध्यापन कर रहे हैं, तो आरंभिक रूप से आप का वेतनमान 40 से 50 हजार के बीच होगा। कई संस्थानों में तो सैलरी पैकेज लाखों तक भी होता है।
लोक प्रशासन की प्रकृति और उसके कार्यभार
कार्र्यों की पारस्परिक निर्भरता और उनका समन्वित संचालन, हाल में ये बातें लोक प्रशासन के कुछ क्षेत्रों की साझी विशेषताएं बन गई हैं तथा व्यक्तियों के काम और उनकी योग्यता के मूल्यांकन में इनका ध्यान रखना आवश्यक है। इस सामूहिक कार्य का समुचित मूल्यांकन कैसे किया जाए, इस पर अध्ययन की आवश्यकता है। कभी-कभी सेवा की आपात आवश्यकता के कारण अतिरिक्त कर्त्तव्य भी निभाने पड़ते हैं। किए जाने वाले कार्य की गुणवत्ता या परिमाण के बारे में कोई सुस्पष्ट मानक या सूचक नहीं होते। इस कारण यह तय करना कठिन हो जाता है कि किसी इकाई में आवश्यकता से अधिक स्टाफ है या कम, या क्या वह दक्षतापूर्ण है। इस तरह हम कह सकते हैं कि उद्देश्यों की स्पष्ट समझ का अभाव लोक प्रशासन में मूल्यांकन या जवाबदेही का काम मुश्किल बना देता है, जिससे काम की संस्कृति में गिरावट आती है। नीतियों और योजनाओं का निर्धारण, कार्यक्रमों का क्रियान्वयन और उनकी निगरानी, कानूनों और नियम-कायदों का निर्धारण तथा उनके क्रियान्वयन के लिए विभागों में संगठनों की स्थापना और उनकी निगरानी जैसे कार्य लोक प्रशासन में शामिल हैं।
लोक प्रशासन के सिद्धांत और मूल तत्त्व
लोक प्रशासन का विषय बहुत व्यापक और विविधतापूर्ण है। भारतीय शिक्षा प्रणाली में इसे सामान्यतः राजनीति या राजनीति विज्ञान नाम के एक बृहत्तर विषय की अनेक शाखाओं में से एक का दर्जा प्राप्त है तथा इसका अध्यापन पाठ्यक्रम के एक या दो प्रश्नपत्रों तक सीमित होता है, लेकिन अब कुछ विश्वविद्यालयों में यह एक अलग शास्त्र के रूप में विकसित हुआ है। इसका सिद्धांत अंतः अनुशासनात्मक है क्योंकि यह अपने दायरे में अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, प्रबंधशास्त्र और समाजशास्त्र जैसे अनेक सामाजिक विज्ञानों को समेटता है। लोक प्रशासन या सुशासन के मूल तत्त्व पूरी दुनिया में एक ही हैं तथा साथ ही दक्षता, मितव्ययिता और समता उसके मूलाधार हैं। शासन के स्वरूपों, आर्थिक विकास के स्तर, राजनीतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों के लिए अतीत के प्रभावों तथा भविष्य संबंधी लक्ष्यों या स्वप्नों के आधार पर विभिन्न देशों की व्यवस्थाओं में अंतर अपरिहार्य हैं। लोकतंत्र में लोक प्रशासन का उद्देश्य ऐसे उचित साधनों द्वारा, जो पारदर्शी तथा सुस्पष्ट हों, अधिकतम जनता का अधिकतम कल्याण है।
प्रमुख शिक्षण संस्थान
* हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी, शिमला
* पीजी कालेज, धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश)
* क्षेत्रीय केंद्र एचपीयू, धर्मशाला
* राजकीय महाविद्यालय, बिलासपुर (हिप्र)
* गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर
* कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, कुरुक्षेत्र
* पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़
* जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू