श्रीकृष्ण ही एकमात्र देव हैं

लोग चैतन्य को भगवान श्रीकृष्ण का अवतार मानते हैं। इसके कुछ संदर्भ प्राचीन हिंदू ग्रंथों में भी मिलते हैं। श्री गौरांग अवतार की श्रेष्ठता के प्रतिपादक अनेक ग्रंथ हैं। इनमें श्री चैतन्य चरितामृत, श्री चैतन्य भागवत, श्री चैतन्य मंगल, अमिय निमाई चरित और चैतन्य शतक आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। गौरांग की स्तुति में अनेक महाकाव्य भी लिखे गए हैं। इनका लिखा कोई ग्रंथ या पाठ उपलब्ध नहीं है। मात्र आठ श्लोक ही उपलब्ध हैं। इसे शिक्षाष्टक कहते हैं। किंतु गौरांग के विचारों को श्रीकृष्णदास ने ‘चैतन्य-चरितामृत’ में संकलित किया है। बाद में भी समय-समय पर रूप जीव और सनातन गोस्वामियों ने अपने-अपने ग्रंथों में चैतन्य-चरित-प्रकाश किया है। इनके विचारों का सार यह है कि श्रीकृष्ण ही एकमात्र देव हैं। वे मूर्तिमान सौंदर्य हैं, प्रेमपरक हैं। उनकी तीन शक्तियां-परम ब्रह्म शक्ति, माया शक्ति और विलास शक्ति हैं। विलास शक्तियां दो प्रकार की हैं-एक है पराभव विलास-जिसके माध्यम से श्रीकृष्ण एक से अनेक होकर गोपियों से क्रीड़ा करते हैं। दूसरी है वैभव-विलास- जिसके द्वारा श्रीकृष्ण चतुर्व्यूह का रूप धारण करते हैं। चैतन्य मत के व्यूह-सिद्धांत का आधार प्रेम और लीला है। गोलोक में श्रीकृष्ण की लीला शाश्वत है। प्रेम उनकी मूल शक्ति है और वही आनंद का कारण है। यही प्रेम भक्त के चित्त में स्थित होकर महाभाव बन जाता है। यह महाभाव ही राधा है। राधा ही कृष्ण के सर्वोच्च प्रेम का आलंबन हैं। वही उनके प्रेम की आदर्श प्रतिमा है। गोपी-कृष्ण लीला प्रेम का प्रतिफल है।