सेना का धर्म

देव गुलेरिया, योल, धर्मशाला

एक बात तो हर किसी को पल्ले बांध लेनी चाहिए कि देश की रक्षा ही सेना का एकमात्र धर्म होता है। देश के राजनेताओं ने आजादी के साथ ही अपनी सियासत के लिए समाज को विभिन्न जातियों, धर्मों, भाषाओं या क्षेत्रों के आधार पर बांटना शुरू कर दिया था। अब तो हद ही हो गई है कि इन नेताओं ने सैनिकों का भी धर्म पूछना शूरू कर दिया है। देश को मानसिक रूप से अपाहिज ऐसे लोगों से भगवान ही बचाए। आज देश कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से घिरा हुआ है। इन हालात में जरूरत तो इस बात की है कि देश का हर नागरिक एक होकर उनका सामना करे। हैरानी यह कि कुछ लोगों को संकट की इन घडि़यों में भी अपनी सियासत की पड़ी है। इन्हें कुछ और न सूझा तो देश के सैनिकों को ही मजहब के आधार पर बांटना शुरू कर दिया। तरस आता है ऐसे लोगों की मानसिकता पर और उन पर भी, जो लोग इन्हें चुनकर विभिन्न लोकतांत्रिक संस्थाओं का सदस्य बनाते हैं।