सोमनाथ को मिली बडगाम हवाई अड्डा बचाने की जिम्मेदारी

27 अक्तूबर, 1947 ई. को सोम की कंपनी को श्रीनगर घाटी में बडगाम गांव को फाइटिंग पैट्रोल का आदेश मिला। वह अपने लक्ष्य पर तीन नवंबर, 1947 को पहुंच गए और बडगाम गांव के दक्षिण में स्थिति ली। 11 बजे अनुमान में 700 की संख्या में दुश्मन सेना ने 3 इंच की भारी तोपों और रायफलों से शांत स्थिति पर हमला किया…

मेजर सोमनाथ शर्मा

इनका जन्म 31 जनवरी, 1923 ई. को जम्मू में हुआ। एक प्रख्यात पिता का प्रख्यात बेटा सेना की वर्दी में सैनिकों और डाक्टरों के वंश से संबंध रखता था। वह मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एएन शर्मा का सबसे बड़ा बेटा और जनरल वीएन शर्मा (पीवीएसएम, एडीसी थल सेना प्रमुख, सेवानिवृत्त) का सबसे बड़ा भाई था। उन्होंने 1932 से 1934 ई. तक शेरवुड कालेज में आरंभिक शिक्षा प्राप्त की और 1934-41 तक ÒPrince of Wales Royal Indian Military College DehradunÓ (अब भारतीय सेना अकादमी) से शिक्षा ली, जहां जनवरी 1942 ई. में 8/19 हैदहराबाद रेजिमेंट (4 कुमाऊं रेजिमेंट) में उन्हें कमीशन के बाद नियुक्ति दी गई। पैदल सैनिक बनने की उनकी इच्छा अपने चाचा कैप्टन कृष्ण दत्त वासुदेव की मृत्यु से और भी गहरा गई, जो 4 कमाऊं रेजिमेंट के साथ मलाया में एक लड़ाई में शहीद हो गए थे। मेजर शर्मा ने दूसरे विश्व युद्ध में बर्मा (अराकान) में जापानी सेना के विरुद्ध और मलाया में (1943-46) लड़ाई में भाग लिया था तथा भारत में 1946-47 में आतंरिक सुरक्षा कार्य, महाराष्ट्र और दिल्ली में दंगों के दौरान हिसार में तथा विभाजन के पहले और बाद के दिनों में भी आतंरिक सुरक्षा कार्य में भाग लिया था। जब 1947 ई. में कश्मीर में विरोध भड़क उठा और भारत ने कश्मीर को बचाने के लिए सेना भेजने का निर्णय लिया, तो मेजर सोमनाथ जितनी जल्दी संभव हो वहां जाने को आतुर थे। यद्यपि उनकी कलाई की हड्डी में पुराने अस्थिभंग के कारण प्लास्टर चढ़ा हुआ था, उसको बडगाम हवाई अड्डे को बचाने के लिए भेजा गया। 27अक्तूबर, 1947 ई. को सोम की कंपनी को श्रीनगर घाटी में बडगाम गांव को Fighting Patrol का आदेश मिला। वह अपने लक्ष्य पर तीन नवंबर, 1947 को पहुंच गए और बडगाम गांव के दक्षिण में स्थिति ली। 11 बजे अनुमान में 700 की संख्या में दुश्मन सेना ने 3 इंच की भारी तोपों और रायफलों से शांत स्थिति पर हमला किया। श्रीनगर और हवाई अड्डे को उस हमले से बचाने के लिए उसने अपनी शांत टुकड़ी को दृढ़संकल्प के साथ शत्रु से लड़ने के लिए प्रेरित किया। शत्रु के बिलकुल सामने अपने आदमियों को प्रेरित करते हुए उसने शत्रु के गोला बारूद के सामने जाकर वायुयान को अपने लक्ष्य का मार्गदर्शन देने के लिए हवाई अड्डे में कपड़ों के टुकड़े बिछा दिए। सैनिकों के जख्मी होने की बात को प्रत्यक्ष देखते हुए, इस अधिकारी ने, जिसके बाएं हाथ में प्लास्टर बंधा हुआ था, स्वयं छोटी मशीनगनों के मैगजीन को भर रहा था और उन्हें एलएमजी गनर्ज को दे रहा था। एक तोप का गोला जो बारूद के बीच में था, फट गया और 3 नवंबर, 1947 को उन्हें मौत के घाट उतार दिया। इस क्षतिकारक उदाहरण  के परिणामस्वरूप शत्रु को आगे बढ़ने में लगभग छह घंटे की देरी हो गई और तब तक ÒHUM HOMEÓ की उस स्थिति पर पीछे से सेना  पहुंच गई और शत्रु के आगे बढ़ने के तूफान का ज्वार-भाटा भी रुक गया।