अब योजनाओं को जमीन पर उतारो

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

योजनाओं के लिए आबंटित धन के सही उपयोग को भी सुनिश्चित बनाने की जरूरत है। मुख्यमंत्री को स्वयं यकीनी बनाना होगा कि सरकार द्वारा वित्तपोषित सभी योजनाएं समय पर धरातल पर साकार नजर आएं तभी उनकी सोच और मेहनत सफल होगी…

आमतौर पर सरकारी तथा निजी अदारों में लगे लोगों को यह सहूलियत रहती है कि तय वक्त में अपनी ड्यूटी दी और घर की तरफ  रुखसत हो लिए, लेकिन राजनीति में भला फुर्सत कहां? ऊपर से सरकार चलाने का दायित्व संभाल रहे राजनीतिज्ञों के लिए दिन-रात बराबर ही होते हैं। आखिरकार इन्हें तो सभी वर्गों को साधने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। आदर्श बजट बने तथा सभी खुश हों और तालियां भी बजाएं। यह कमाल हरेक वित्त मंत्री करके दिखाना चाहता है। आदर्श बजट वह माना जाता है जिसमें किसी का स्वार्थ न हो। आम बजट से आर्थिक विकास दर बढ़े, गरीबी और बेरोजगारी पर अंकुश लगे और आम नागरिकों के जीवन स्तर में गुणात्मक सुधार आए इसकी व्यवस्था तो बजट में होनी चाहिए। अब कुल जमा 2 महीनों के अंदर नए वित्त एवं मुख्यमंत्री ने जहां हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों की सुध ली है, तो वहीं आगामी वित्त वर्ष के लिए नया संतुलित बजट पेशकर कमोबेश अपने इरादों की झलक भी दिखलाई है। 41 हजार 440 करोड़ रुपए के सालाना बजट का बड़ा हिस्सा लगभग 60.44 फीसदी तो वेतन, पेंशन, ऋण और ब्याज की अदायगी की भेंट हो जाएगा, तो 39.56 फीसदी बाकी बचे बजट से विकास कार्यां को सिरे चढ़ाने की कवायद सरकार को करनी होगी।

केंद्र सरकार सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू कर चुकी है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद जिस प्रकार से मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अप्रत्याशित रूप से बिन मांगे प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों को पिछली तारीख से अंतरिम राहत और महंगाई भत्तों को देने की घोषणाएं की हैं, उससे कर्मचारी वर्ग गदगद है। अब बेहतर यही रहेगा कि सरकार नीतिगत फैसला लेते हुए बदलते वक्त की जरूरतों के मुताबिक पंजाब पैट्रन को छोड़कर सीधे सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों को प्रदेश में लागू करे। सीमित कमाई और कम बजट के बावजूद मुख्यमंत्री द्वारा सभी वर्गों तथा विभागों की खबर रखना उनकी जमीनी राजनीतिक पकड़ को दर्शाता है, तो वहीं प्रदेश के सभी वर्गों को दरपेश आने वाली कठिनाइयों के प्रति उनकी संवेदनशीलता की ओर भी इशारा करता है। एक साथ 28 नई योजनाओं की शुरुआत एक अच्छी पहल है, लेकिन इन योजनाओं को जमीन पर उतारना भी महत्त्वपूर्ण होगा। मुख्यमंत्री लोक कल्याण भवन योजना के अंतर्गत प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में तीस लाख रुपए की लागत से एक सामुदायिक भवन का निर्माण और सांसद तथा विधायक द्वारा अतिरिक्त सामुदायिक भवन के लिए 15 लाख रुपए देने पर राज्य सरकार की तरफ  से 15 लाख रुपए की राशि देने की घोषणा स्वागत योग्य कदम है। पहाड़ी राज्य होने के चलते निश्चित रूप से मात्र एक सामुदायिक भवन का निर्माण अपर्याप्त ही माना जाएगा और इनके निर्माण की 2 वर्षों की समयावधि भी अधिक है।

दूसरे इस प्रकार के सामुदायिक भवनों का निर्माण मैरिज-पैलेस की तर्ज पर होना चाहिए और इसके लिए 30 लाख के बजाय 50 लाख रुपए की व्यवस्था सरकार की तरफ  से होनी चाहिए। इन भवनों का निर्माण बड़े गांवों और कस्बों के मध्य रोड कनेक्टिविटी तथा पार्किंग सुविधाओं को ध्यान में रखकर होना चाहिए तथा एक निश्चित रकम उपयोगकर्ताओं से वसूली जाए, ताकि उसी रकम से इन भवनों का मेंटेनेंस और विस्तार किया जाए। क्योंकि आज की तारीख में शादियों आदि के लिए प्राइवेट मैरिज-पैलेस बहुत महंगे पड़ रहे हैं। अधिकारियों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि गरीबी रेखा से नीचे की सूची में केवल जरूरतमंद गरीब परिवारों को ही शामिल किया जाए। निराश्रित पशुओं, गोवंश संरक्षण और 108 एंबुलेंस के खर्चों की पूर्ति हेतु शराब बिक्री पर सैस लगाना अच्छी बात है, बल्कि ऐसी ही तरकीबों से कुछ अत्यावश्यक योजनाओं के लिए जरूरी फंड जुटाया जाना चाहिए। दैनिक ‘दिव्य हिमाचल’ की बजट के उस पार सीरीज में लेखकों के सुझावों का वर्तमान सरकार द्वारा संज्ञान लिया जाना सुखद संकेत है। मेरे द्वारा प्रस्तुत कोचिंग की हो व्यवस्था शीर्षक के अंतर्गत लेख के तहत सरकार ने मेधा प्रोत्साहन योजना को लागू करने के लिए शुरुआती 5 करोड़ रुपए की व्यवस्था की है, लेकिन इस योजना के अंतर्गत 3 लाख तक की वार्षिक आय वाले सभी समूहों को सम्मलित करने की जरूरत है। इसके अलावा प्रदेश में रोजगार के अवसर बढ़ें, इस सुझाव के प्रत्युत्तर में सरकार ने लघु एवं मझोले उद्योगों की जमीन की लीज बढ़ाने और विद्युत दरों में रियायतों की सराहनीय घोषणाएं की हैं। मेगा प्रोजेक्ट्स के हमारे सुझाव के तहत चंबा तथा सिरमौर में 2 सीमेंट सयंत्रों की स्थापना की भी सरकार ने घोषणा की है। मनरेगा में कार्य दिवस बढ़ाए गए हैं, तो इस बार दिहाड़ी भी बड़ी है और साथ में नियमित कर्मचारियों केभत्तों में बढ़ोतरी हुई है। अन्य वर्गों को भी वित्तीय लाभ सरकार द्वारा प्रदान किए हैं। प्रदेश के आलाधिकारियों द्वारा समीक्षा एवं निगरानी होनी चाहिए तथा फील्ड में जाकर परखा जाना चाहिए कि कहीं कुछ कार्य आधे-अधूरे तो नहीं छोड़ दिए गए हैं। योजनाओं के लिए आबंटित धन के सही उपयोग को भी सुनिश्चित बनाने की जरूरत है। मुख्यमंत्री को स्वयं यकीनी बनाना होगा कि सरकार द्वारा वित्तपोषित सभी योजनाएं समय पर धरातल पर साकार नजर आएं तभी उनकी सोच और मेहनत सफल होगी। एक शे’र अर्ज है कि ‘न चादर बड़ी कीजिए न ख्वाहिशें दफन कीजिए, चार दिन की जिंदगी है खुशी-खुशी बसर कीजिए’ ।