ईश्वर उवाच

शतनाम प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्व कमलानने।

यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत सती।। 1।।

ऊँ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी।

आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी।। 2।।

पिनाकधारिणी चित्रा चंद्रघंटा महातपाः।

मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः।। 3।।

सर्वमंत्रमयी सत्ता सत्यानंदस्वरूपिणी।

अनंता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः।। 4।।

शा भवी देवमाता च चिंता रत्नप्रिया सदा।

सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी।। 5।।

अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती।

पट्टा बरपरीधाना कलमंजीररंजिनी।। 6।।

अमेयविक्रमा क्रूरा सुंदरी सुरसुंदरी।

वनदुर्गा च मातंगी मतंगमुनिपूजिता।। 7।।

ब्राह्मी माहेश्वरी चैंद्री कौमारी वैष्णवी तथा।

चामुंडा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकूतिः।। 8।।

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा।

बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना।। 9।।

निशु भशु भहननी महिषासुरमर्दिनी।

मधुकैटभहंत्री च चंडमुंडविनाशिनी।। 10।।

सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी।

सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा।। 11।।

अनेकशस्त्राहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी।

कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ।। 12।।

अप्रौढ़ा चैव प्रौढ़ा च वृद्धमाता बलप्रदा।

महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला।। 13।।

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी।

नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी।। 14।।

शिवदूती कराली च अनंता परमेश्वरी।

कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी।। 15।।

य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम।

नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति।। 16।।

धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च।

चतुर्वर्गं तथा चांते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम।। 17।।

कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम।

पूजयेत परया भक्तया पठेन्नामशताष्टकम।। 18।।

तस्य सिद्धिभवेद देवि सर्वैः सुरवरैरपि।

राजानो दासतां यांति राज्यश्रियमवाप्नुयात।। 19।।

गोरोचनालक्तककुंकुमेन सिंदूरकर्पूरमधुत्रयेण।

विलि य यंत्रं विधिना विधिज्ञो भवेत सदा धारयते पुरारिः ।। 20।।

भौमावास्यानिशामग्रे चंद्रे शतभिषां गते।

विलि य प्रपठेत स्तोत्रं स भवेत स पदां पदम।। 21।।

।। इति श्रीविश्वसारतंत्रे श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं स पूर्णम।।