दिहाड़ीदारों को भी मिलेगी पेंशन

उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल के लिए तय किया फार्मूला, दस साल की स्थायी नौकरी पर मिलेगा लाभ

नई दिल्ली— सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद अब हिमाचल सरकार के दिहाड़ीदार कर्मचारियों को भी पेंशन मिलेगी। शीर्ष अदालत ने फार्मूला दिया है कि पांच साल दिहाड़ी पर नौकरी एक साल की स्थायी नौकरी के बराबर गिनी जाएगी। इस तरह कुल 10 साल स्थायी नौकरी करने वालों को पेंशन देनी होगी। फैसले से सरकार पर 500 से 800 करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा, लेकिन हजारों कर्मचारी लाभान्वित होंगे।  शीर्ष अदालत में जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने गुरुवार को यह अहम फैसला दिया है। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस आर नरीमन पीठ के अन्य दो न्यायाधीश थे। हिमाचल सरकार बनाम सुंदर सिंह तथा अन्य का यह केस मुद्दत से सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन था, लेकिन अंतिम फैसला अब सुनाया गया है। मुद्दा दिहाड़ीदार कर्मचारियों का था। उन्होंने सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य और लोकनिर्माण विभागों में दिहाड़ी पर काम किया था। बेलदार, चपरासी आदि पदों पर काम करने वाले कर्मचारियों ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था कि उन्हें भी पेंशन दी जानी चाहिए। गौरतलब है कि अक्सर सरकार के नियमों के मुताबिक 10 साल नियमित और स्थायी नौकरी वाला कर्मचारी ही पेंशन का पात्र होता है, लेकिन ऐसे कई कर्मचारी हैं, जिन्होंने 15 साल या उससे अधिक सरकारी विभागों में दिहाड़ी पर काम किया था, लेकिन वे पेंशन के हकदार नहीं माने गए। न्यायिक पीठ ने फैसला सुनाया कि ऐसे दिहाड़ीदार कर्मचारियों को भी पेंशन का लाभ मिलना चाहिए। उसके लिए सरकार यह फार्मूला लागू करे कि जिन्होंने पांच साल दिहाड़ीदार के तौर पर काम किया है, उनकी एक साल की नियमित और स्थायी नौकरी गिनी जाए। उसमें वह अवधि भी मिलाई जाए, जिसके दौरान उनकी नौकरी पक्की हो गई है। यह लाभ चतुर्थ श्रेणी वाले हरेक कर्मचारी को मिले, बेशक उसका विभाग कोई भी रहा हो। इस पर हिमाचल सरकार के अतिरिक्त एडवोकेट जनरल अभिनव मुखर्जी और पीएस पटवालिया ने दलील दी कि हिमाचल की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। फिलहाल राष्ट्रीय राजमार्ग को फोरलेन करने और शिमला के सभी इलाकों में पानी उपलब्ध कराने की दो महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम चल रहा है। उनमें  बहुत पैसा खर्च करना पड़ रहा है, ऐसे में दिहाड़ीदारों को भी पेंशन देने के लिए सरकार धन कहां से लाएगी। इस पर जस्टिस आदर्श गोयल की सख्त टिप्पणी थी कि हर बार गरीब ही कष्ट क्यों झेले। उसी का शोषण क्यों किया जाए। सरकार अपने कैबिनेट मंत्रियों और मोटी तनख्वाह लेने वालों के वेतन में कटौती करे और इन मजदूरों को पेंशन दी जाए। हिमाचल सरकार यह तुरंत प्रभाव से करे। इस पर सरकार की तरफ से अतिरिक्त एडवोकेट जनरल को खामोश होना पड़ा। अनुमान है कि इस फैसले को लागू करने से हिमाचल सरकार को कमोबेश 500 से 800 करोड़ रुपए का बोझ झेलना पड़ेगा, लेकिन 50-60 हजार दिहाड़ीदार तुरंत लाभान्वित होंगे। मजदूरों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता  अमित आनंद तिवारी, विनोद शर्मा और अश्विनी गुप्ता ने पैरवी की।

सरकारी वकीलों का तर्क

हिमाचल की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। राष्ट्रीय राजमार्ग को फोरलेन करने और शिमला में पानी उपलब्ध कराने की परियोजनाओं में बहुत पैसा खर्च करना पड़ रहा है, ऐसे में दिहाड़ीदारों को भी पेंशन देने के लिए सरकार धन कहां से लाएगी।

सुप्रीम कोर्ट की फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत टिप्पणी की कि हर बार गरीब ही कष्ट क्यों झेले। उसी का शोषण क्यों किया जाए। सरकार अपने कैबिनेट मंत्रियों और मोटी तनख्वाह लेने वालों के वेतन में कटौती करे और इन मजदूरों को पेंशन दी जाए।