नियमों के पालन से सुधरेगी यातायात व्यवस्था

राजेश शर्मा

लेखक, शिमला से हैं

पहाड़ी रास्तों पर वाहन के चलने की गति निर्देशित होनी आवश्यक है। दूसरा कारण, बसों में ओवरलोडिंग को भी दुर्घटनाओं का मुख्य कारण माना जाता है। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने में हो रहे गोरखधंधे को समाप्त करके ड्राइविंग प्रशिक्षण के क्षेत्र में सरकार को आगे आने की आवश्यकता है। यदि हम नियमों का पालन करना सीखेंगे तो ही व्यवस्था का विकास होगा…

आज हिमाचल प्रदेश की सड़कों पर मौत खतरों का साफा बांध कर सरेआम घूमती है। सड़कों पर बढ़ते गाडि़यों के कोलाहल में तेज रफ्तार कभी भी हमारा दम घोट सकती है। हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग द्वारा जारी सर्वेक्षण के मुताबिक प्रदेश के अंदर प्रतिदिन 12 व्यक्तियों की जान सड़क हादसों के कारण जाती है। अनुमान है कि प्रदेश के अंदर हर वर्ष औसतन 3000 सड़क हादसे होते हैं, जिसमें लगभग 1000 व्यक्ति अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं और करीब 5000 लोग जख्मी हो जाते हैं। वर्ष 2016 में हिमाचल में 2096 सड़क हादसे रिकार्ड किए गए थे, जो अन्य वर्षों की अपेक्षा काफी अधिक थे, जिसमें प्रदेश के करीब 780 लोग मौत की बलि चढ़ गए थे और 3919 लोग जख्मी हो गए थे। हादसों का क्या है, ये तो वक्त के साथ भुला दिए जाते हैं, पर कहानी क्या होगी, उन मासूम व निर्दोष शहादतों की, जो अर्द्धनग्न, अधमरी और खून से लथपथ लाशें हमने सड़कों से उठाईं।

लाशों के ऊपर से आवाम चलकर गई, वह लहू के सैलाब हमने अपनी आंखों से देखे। पर सड़कों पर गड़ी वे लाल पत्तिकाएं हमें आज भी आगाह करती हैं कि हमारी सरकार, प्रशासन, जनता कब यातायात नियमों के प्रति सजग होगी। कब हम बढ़ते इन सड़क हादसों के पांव में नियंत्रण की बेडि़यां डालेंगे। गंभीरता से सोचने का विषय है कि हम और हमारी सरकार कब व्यवस्था के प्रति उदासीन रवैये को भंग करेगी। हमने सड़कों की लंबाइयां तो बढ़ा लीं, लेकिन आज भी हमारी सड़कें हमारे लिए सड़क हादसों का मुख्य कारण रही हैं। प्रदेश के अंदर अधिकतर सड़कें कच्ची हैं और जो सड़कें बजट या सरकारी दस्तावेजों में पक्की बताई गई हैं, उन सड़कों के हालात कच्ची सड़कों से भी बदतर हैं। जिन मापदंडों पर इनकी मैटलिंग व टायरिंग सरकारी दस्तावेजों में दिखाई गई है, वे सड़कें, पंजाब व हरियाणा की सड़कों पर हुई मैटलिंग के मुकाबले आधी भी नहीं हैं। लोक निर्माण विभाग का काम इतना रह गया है कि वह केवल ठेके आबंटित करने वाला विभाग बनकर रह गया है। हमारे ठेकेदार सड़कों पर काला पोंछा लगाकर बजट तो हड़प लेते हैं, परिणाम यह होता है कि सड़क एक महीने में ही गड्ढों में तबदील हो जाती है और बार-बार बजट लगाया जाता है। सरकार के पास स्वयं ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने का हौसला नहीं है, जिससे सड़क पर हो रहा हर कार्य जांचा जा सके।

आज हालात ये हैं कि हमारे चौराहों पर सिग्नल नहीं, पैदल चलने वालों के लिए जेबरा क्रॉसिंग नहीं, स्कूलों और कालेजों के साथ स्पीड ब्रेकर नहीं। यह सरकार, प्रशासन और जनता की लापरवाही का नतीजा है कि आज हिमाचल की सभी सड़कें मौत के गलियारे बन चुकी हैं। आज सैकड़ों लोग फर्जी लाइसेंस लेकर घूमते हैं। नियमों को ताक पर रखकर जानबूझकर सिग्नल तोड़े जाते हैं, क्योंकि आज के रईसजादों को तो बस इतना ध्यान है कि सरकार नियम तोड़ने पर उससे कितना हर्जाना वसूलेगी। यातायात नियमों को तोड़ने पर सरकार द्वारा मात्र 500 से 2000 तक चालान काटने का अधिनिमय है।

आज सरकारी नियमों का उल्लंघन चलन बन गया है। सरकार हर किसी को बिना योग्यता के ड्राइविंग लाइसेंस बांट रही है। आज अधिकतर चालक ऐसे हैं, जिनके पास ड्राइविंग लाइसेंस तो हैं, परंतु प्रशिक्षण का प्रमाण पत्र नहीं। हिमाचल प्रदेश में सरकार द्वारा निजी क्षेत्र में कुल 112 प्रशिक्षण केंद्र चिन्हित किए गए हैं। केवल प्रदेश में एक ही संस्थान आईटीआई ऊना ऐसा प्रशिक्षण संस्थान है, जो सरकारी है। निजी संस्थानों का व्यवसाय पल रहा है। निजी संस्थानों में शुल्क की प्रविष्टियां तो बहुत हैं, परंतु इनके अध्ययन कक्ष खाली हैं। नियमों को जेब में डालकर लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं। अनभिज्ञ व अप्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा ही सड़क हादसों को अंजाम दिया जाता है। हिमाचल में सड़कों पर गति संबंधी निर्देश न होना भी सड़क हादसों का कारण बना है। 2016 में शिमला जिला के कोटखाई में एक मासूम की गाड़ी के नीचे आने से मौत हो गई थी। ऐसी कई मौतें भविष्य में लिख दी जाएंगी, यदि इससे निजात पाने के लिए इंतजाम पुख्ता न हुए तो।

सरकार द्वारा सड़कों के रखरखाव व मरम्मत हेतु उचित नीति व प्रबंधकीय सुधार लाने की आवश्यकता है। सड़कों पर हो रहे कार्यों को बार-बार निरीक्षण की महत्ता पर बल देना आवश्यक है, क्योंकि यदि हमें यथार्थ में अपने पूर्व निर्धारित मानकों पर खतरा उतरना है, तो सड़कों के उचित रखरखाव के लिए एक ऐसे निकाय की आवश्यकता है, जो सड़कों पर हो रहे कार्यों का निरीक्षण करे, पार्किंग की व्यवस्था व रखरखाव करें। पहाड़ी रास्तों पर वाहन के चलने की गति निर्देशित होनी आवश्यक है। दूसरा कारण, बसों में ओवरलोडिंग को भी दुर्घटनाओं का मुख्य कारण माना जाता हैं। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने में हो रहे गोरखधंधे को समाप्त करके ड्राइविंग प्रशिक्षण के क्षेत्र में सरकार को आगे आने की आवश्यकता है। यदि हम नियमों का पालन करना सीखेंगे तो ही व्यवस्था का विकास होगा और जीवन का नवनिर्माण होगा। यह हादसों का सफर हिमाचल में रोकना होगा, तभी हम बेखौफ प्रदेश की सड़कों पर वाहनों से निडर होकर प्रदेश की स्वच्छ सांसों के साथ आनंद से घूम पाएंगे। प्रयास सरकार के साथ जनमानस के भी हों।