प्राचीन धनुर्विद्या का प्रतीक है ठोडो खेल

मेले के ऐतिहासिक महत्त्व को कायम रखने के उद्देश्य से प्राचीन धनुर्विद्या का प्रतीक ठोडो खेल का भी आयोजन किया जाता है। इस खेल का इतिहास महाभारत कालीन युग से जुड़ा है। शिमला-सिरमौर जनपद में ठोडो खेल का काफी प्रचलन है…

शूलिनी मेला- यह मेला प्राचीन व आधुनिक संस्कृति का एक अनोखा संगम बनकर उभरा है। मेले का शुभारंभ हर वर्ष माता शूलिनी देवी की झांकी से प्रारंभ होता है। माता की पालकी सजधज कर मेले में लोगों के दर्शनार्थ निकाली जाती है। हजारों की संख्या में लोग माता शूलिनी को मनौती अर्पित करके सुख-समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। पारंपरिक लोक वाद्यांे एवं लोक धुनों के बीच जब माता की पालकी शहर से गुजरती है, तो मनमोहक दृश्य देखते ही बनता है, जो हर व्यक्ति को भक्ति व आनंद सागर में डूबने को मजबूर करता है। झांकी संपन्न होने के पश्चात माता की पालकी शहर के मध्य माता के एक अन्य मंदिर में तीन दिन तक लोगों के दर्शनार्थ रखी जाती है। मेले को आकर्षक बनाने के उद्देश्य से मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद प्रतियोगिताओं व कुश्ती का आयोजन किया जाता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रदेश के विभिन्न जिलों से लोक नर्तक दलों के अलावा पड़ोसी राज्यों व फिल्मी दुनिया के मशहूर पार्श्व गायकों को आमंत्रित किया जाता है, ताकि मेले में आए लोगों का भरपूर मनोरंजन हो सके। इन कार्यक्रमों के माध्यम से युवा प्रतिभाओं को उभर कर सामने आने का भरपूर अवसर मिलता है। मेले के ऐतिहासिक महत्त्व को कायम रखने के उद्देश्य से प्राचीन धनुर्विद्या का प्रतीक ठोडो खेल का भी आयोजन किया जाता है। इस खेल का इतिहास महाभारत कालीन युग से जुड़ा है। शिमला-सिरमौर जनपद में ठोडो खेल का काफी प्रचलन है। इस क्षेत्र के लोग आज भी अपने आपको कौरव-पाडंव अर्थात पहाड़ी भाषा में शाठा-पांशा कहते हैं। कौरवों-पांडवों के वंशज मानकर ठोडो खेल खेला जाता है। इसके अतिरिक्त मेले का मुख्य आकर्षण कुश्ती खेल होता है, जिसमें उत्तरी भारत के नामी पहलवान भाग लेते हैं।

सिरमौर का रेणुका मेला- अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त पहाड़ों, नदी, तालाब, झरने, मंदिरों और जप-तप स्थलों को अपने आंचल में समेटे रेणुका जी का यह सुदर रूप और यहां का प्रसिद्ध राज्य स्तरीय रेणुका जी मेला लाखों श्रद्धालुओं को अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करता है। रेणुका जी स्थल के विविध प्राकृतिक सौंदर्य की मूल्यवान धरोहर और यह ऐतिहासिक पवित्र स्थल किसी को भी विवश कर देता है यहां पर बार-बार आने, यह सब देखने और इसका भरपूर आनंद उठाने के लिए। हर वर्ष पारंपरिक तरीके और धूमधाम से लगने वाला रेणुका जी मेला तब इसकी छटा और सुदरता और बढ़ा देता है, जब मां और बेटे का मिलन होता है।