बाल मन की थाह लेती पुस्तक

‘जुगनू को दिन के वक्त परखने की जिद करें,

बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए’

परवीन शाकिर का यह शे’र पवन चौहान द्वारा रचित पुस्तक ‘भोलू भालू सुधर गया’ पर पूरी तरह से सामंजस्य बिठाता है। बाल मन बड़ा निश्छल और भोला होता है, जो बड़ों को भी सीख दे जाता है। ‘भोलू भालू सुधर गया’ पुस्तक में ऐसे ही भोलेपन, मासूमियत और बच्चों के निश्छल भाव से सजी कहानियां पढ़ने को मिलती हैं। पवन चौहान की इस पुस्तक का कथा शिल्प सरल व सरस है, जिसके कारण बच्चे कहानियों को आसानी से समझ पाएंगे। संग्रह में कुल 15 कहानियां हैं और भूमिका वरिष्ठ बाल साहित्यकार परशुराम शुक्ल जी ने लिखी है। ‘जंगल का राजा’ में हरिशंकर परसाई की कहानी ‘भेड़ और भेडि़ए’ की याद ताजा हो जाती है जिसमें भेडि़या भेड़ों को बरगलाता है, परंतु जानवर शेर के झांसे में नहीं आते। शेर को सबक सिखाने के बाद उसे जंगल में रहने देते हैं। ‘नए अंदाज में होली’ बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी यह संदेश देती है कि बुजुर्ग जो कभी हरे-भरे पेड़ की तरह थे, परंतु अब सूख गए हैं, तो उनके जीवन में हम प्यार का रंग भरकर उन्हें हरा-भरा रख सकते हैं। ‘समझ आ गई बात’, ‘बदल गया अंतरिक्ष’, ‘बेबो को मिल गई सीख’, ‘भोलू भालू सुधर गया’, ‘कालिख ने बिखेर दिए दोस्ती के रंग’ आदि कहानियों ने बच्चों का शरारती व ईर्ष्यालु स्वभाव तो दिखाया है, परंतु जब उन्हें अपनी गलती का भान होता है तो दुश्मनी दोस्ती में बदल जाती है। जब स्वयं को दर्द होता है तो अपनी गलती पर पछताते हुए दूसरों को न सताने की शपथ ली जाती है। बाल मन के स्वभाव में परिवर्तन इन कहानियों का राग है। ‘भोलू भालू सुधर गया’ बाल कहानी संग्रह अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल रहा है। संग्रह का कथा शिल्प बहुत ही सराहनीय है। हर पाठक वर्ग कहानी की हर बात को आसानी से और पूरा-पूरा समझेगा, यह मेरा मानना है। संग्रह में बच्चों के हर पक्ष को उकेरने का प्रयास कहानीकार द्वारा किया गया है। बचपन की मौजमस्ती, मेलजोल, दोस्ती-दुश्मनी, दयाभाव, ईर्ष्यालु स्वभाव, सहकारिता भाव, लालच का त्याग, ईमानदार होना, बड़ों को इज्जत देना आदि संस्कार पवन चौहान के संग्रह की खास बात हैं। इस संग्रह को पढ़ते हुए कहानियां हमें अपने मोहपाश में बांधे रखती हैं। अन्य कहानियों की पड़ताल में ‘रानी मछली की सूझबूझ’ कहानी इस बात को आसानी से समझा देती है कि अपने परिवार को छोड़कर दूसरी जगह पर वह प्यार और सम्मान नहीं मिलता जो अपने परिवार में होता है। अपने परिवार के दुख-सुख में हमेशा साथ रहना चाहिए। ‘गरीब लकड़हारा और शेर’ कहानी में गरीब लकड़हारा अपनी ईमानदारी के बल पर राज्य में एक उच्च पद प्राप्त करता है और अपने परिवार को गरीबी के चंगुल से मुक्ति दिलाता है। ‘ऐसे मिला सबक’ में सुनील को अपनी लापरवाही का परिणाम भुगतना पड़ता है। ‘आई एम सॉरी पापा’ कहानी में छोटे बच्चे का अपने पापा के प्रति प्यार और उसकी संभाल, पिता को अभिभूत कर देती है। असली बात का पता चलने पर पिता बेटे को प्यार से कसकर गले से लगा लेते हैं। ‘ऐसे बदली तकदीर’ कहानी जहां मेहनत का पाठ पढ़ाती है, वहीं ‘योजना काम कर गई’ में बच्चे मिस्टर पटेल और उनके परिवार के सफाई के प्रति ढीठपन को अपनी योजना के माध्यम से सुधार देते हैं। ‘और ऐसे हुआ पंडित का सपना पूरा’ कहानी भोलानाथ पंडित के माध्यम से पढ़ाई के महत्त्व पर बात करती है। ‘ऐसे बदला लिया छोटी ने’ कहानी में सौतेली मां के अत्याचारों का बदला लिया गया बताया है जो ‘शठे शाठयं समाचरेत’ कहावत को चरितार्थ करती है। लोक कथा से प्रेरित इस अंतिम कहानी में स्थानीय बोली के शब्दों के कारण कहानी पूरी तरह से अपने परिवेश से जुड़ जाती है। आजकल बच्चों को पहले की तरह नाना-नानी और दादा-दादी की वे कहानियां सुनने को नहीं मिलती जो बच्चों में मनोरंजन के साथ अच्छे संस्कार भी पैदा करती थीं। वर्तमान में बच्चों के दिलो-दिमाग पर विभिन्न कार्टून चैनलों का कब्जा है जो बच्चों के मानसिक विकास को किसी और तरह की ट्रीटमेंट देकर उन्हें हिंसा और आक्रामकता की तरफ  धकेल रहा है। लेकिन ‘भोलू भालू सुधर गया’ इस कमी को पूरा करते हुए बच्चों में सकारात्मक पक्ष को मजबूती देता है। माता-पिता को इस संग्रह को बच्चों को जरूर पढ़वाना चाहिए। बड़ों के लिए भी यह बाल कहानी संग्रह संग्रहणीय है। पवन चौहान को मेरी ओर से एक पाठक के नाते बधाई और शुभकामनाएं।

— हीरा सिंह कौशल, महादेव, सुंदरनगर

पुस्तक समीक्षा

* पुस्तक का नाम : भोलू भालू सुधर गया

* लेखक का नाम : पवन चौहान

* मूल्य : 100 रुपए

* प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर (राजस्थान)