भावातीत ध्यान के योगी

महेश योगी

चेतना की इस भावातीत अवस्था की प्राप्ति शब्दों (मंत्रों) की सहजावस्था में मानसिक आवृत्ति से ही की जाती है। इसमें चेतना के कई स्तरों की चर्चा की जाती है। जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति के बाद की चेतना की अवस्था भावातीत चेतना और इसके आगे पांचवीं अवस्था ब्रह्मांडी चेतना की है…

भावातीत ध्यान क्या है? भावातीत ध्यान एक सरल, सहज, प्रयासरहित एवं अद्वितीय वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित ध्यान की तकनीक है, जो मन को शुद्ध चेतना अनुभव करने एवं एकात्म होने के लिए स्थिर करती है एवं स्वाभाविक रूप से विचार के स्रोत, मन की शांत अवस्था, भावातीत चेतना, शुद्ध चेतना, आत्म परक चेतना तक पहुंचाती है, जो समस्त रचनात्मक प्रक्रियाओं का स्रोत है। महर्षि महेश योगी ट्रांसडेंटल मेडिटेशन का सिद्धांत क्या है? भारत के उत्तर काशी में जन्में महर्षि महेश योगी पदार्थ विज्ञान में स्नातक होने के बाद स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के सान्निध्य में आए और तत्पश्चात योग को एक तकनीक के रूप में विकसित करने के लिए क्रियाशील रहे। अपने इस योग तकनीकी का नाम इन्होंने ट्रांसडेंटल मेडिटेशन अर्थात भावातीत ध्यान रखा है, जो देश-विदेश में आज काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। यह भावातीत ध्यान मंत्रयोग या जप योग का ही एक रूप है। शांत चित्त से बैठकर साधक किसी गुरु प्रदत्त शब्द का मानसिक रूप से जप करता हुआ आंखें बंद करके विचार को आंतरिक करता रहता है। इस प्रक्रिया में मस्तिष्क पर किसी प्रकार का जोर नहीं दिया जाता है। विचार बहिर्मुखी होते रहते हैं, मगर मंत्र की आवृत्ति जारी रहती है, होंठ और जिह्वा प्रायः बंद ही रहते हैं। इस तरह इस साधन में सिर्फ  शब्दों (मंत्रों) की सहज रूप में मानसिक स्तर पर आवृत्ति के सिवाय मन पर किसी अन्य प्रकार का नियंत्रण या दबाव अपेक्षित नहीं है। भावातीत ध्यान में गुरु द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को उनकी प्रकृति के अनुकूल एक विशेष मंत्र दिया जाता है। यह मंत्र कुछ भी हो सकता है। यह शब्द विशेष संस्कृत का भी हो सकता है या कोई निरर्थक शब्द भी हो सकता है। मगर महेश योगी का दावा है कि प्रत्येक मनुष्य के स्नायु मंडल को एक विशेष शब्द के स्वर कंपन्न से प्रभावित किया जा सकता है। उसी शब्द विशेष को ठीक से समझ कर साधक को दीक्षा देना गुरु का काम है। साधक इस मंत्र को बिना किसी अन्य प्रयास के मानसिक स्तर पर दोहराता रहता है और उसे अन्य किसी प्रकार का नियंत्रण या ध्यान प्रक्रिया से मुक्त रहने के लिए कहा जाता है। इस तरह मन सामान्य रूप से आनंद चेतना की ओर जाने लगता है और अंततः साधक उस आनंद से तदाकर हो जाता है। इसमें भी यह मान्यता है कि तब तक ब्रह्म अनुभूति नहीं हो पाती, तक इंद्रियां अनुभव करती रहती हैं। मगर जब अनुभव करने वाला ही अपने अस्तित्व को भूल जाता है, तब चेतना की उस अवस्था में ब्रह्म अनुभूति होती है। चेतना की इस भावातीत अवस्था की प्राप्ति शब्दों (मंत्रों) की सहजावस्था में मानसिक आवृत्ति से ही की जाती है। इसमें चेतना के कई स्तरों की चर्चा की जाती है। जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति के बाद की चेतना की अवस्था भावातीत चेतना और इसके आगे पांचवीं अवस्था ब्रह्मांडी चेतना की है। इस तरह साधना की इस सामान्य प्रक्रिया के द्वारा ब्रह्मांडी चेतना तक पहुंचाने का दावा किया जाता है। इस भावातीत ध्यान करने वाले साधकों पर विदेशों में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग भी किए जाते रहे हैं। साथ ही इस साधन प्रक्रिया को बतलाने के लिए विदेशियों से अत्यधिक मुद्राएं भी अर्जित की जाती हैं। ज्ञान योग में अनेक सिद्धियों एवं चमत्कारों का भी समावेश होता जा रहा है, जो अब धीरे-धीरे विशेष आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।