मुसीबत बन सकता नेपाल

-अक्षित, आदित्य, तिलक, रादौर, हरियाणा

अपने पड़ोसी देशों में हमारे विरोधी शासनों को स्थापित होने देना हमारी बड़ी कूटनीतिक विफलता मानी जा सकती है। पाकिस्तान-श्रीलंका और मालदीव में तो भारत विरोधी शासन पहले से ही काम कर रहे हैं, अब इनमें एक और नाम नेपाल का जुड़ गया है। विश्व के एकमात्र हिंदू राष्ट्र के रूप में नेपाल का टूटना और वहां हिंदू राजशाही का खात्मा भारत के लिए एक बड़ा आघात था, मगर तब देश की सत्ता में विराजमान कांग्रेस ने नेपाल के भारत विरोधी होते रुख को रोकने की कोई कोशिश नहीं की और सब कुछ सहज रूप से होने दिया। उधर, चीन ने नेपाल में वामपंथियों को सत्तारूढ़ कराने में पूरी ताकत झोंक दी और आज हालात ये हैं कि भारत विरोधी वामपंथी नेपाल में किंगमेकर बन चुके हैं। अर्थात नेपाल में कोई सरकार न उनके बिना बन सकती है और न चल सकती है। गत सात फरवरी को हुए चुनावों में भी सीपीएन (यूएमएल) और प्रचंड की सीपीएन (एमसी) ने क्रमशः 27 सीटें और 12 सीटें जीत लीं और नेपाली कांग्रेस को 12 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। इन चुनाव परिणामों से नेपाल में भारत विरोधी शक्तियां और मजबूत हो गई हैं और चीन समर्थक ये तत्त्व आने वाले समय में भारत के लिए मुसीबत बन सकते हैं। अपने अस्तित्व पर मंडराते खतरे को देखते हुए भारत को अब अपने पड़ोसी देशों में अपने विरोधियों को कमजोर करने और अपने समर्थकों को मजबूत करने के कदम उठाने चाहिएं।