याद भी हैं भगत सिंह!

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

भारत को अंग्रेजों से आजाद करवाने में बहुत से देशभक्तों ने हंसते-हंसते अपनी जान तक कुर्बान कर दी। देशभक्तों की बदौलत ही आज हम सब आजाद देश में पूरी आजादी से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। देश को आजाद करवाने के लिए बहुत से नौजवान देशभक्तों ने अपनी हंसने-खेलने की उम्र में ही बलिदान दे दिए। देश को आजाद करवाने के लिए अंग्रेजों के कई जुल्म-सितम सहे थे। इन्हीं नौजवानों में थे शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह, उनके साथी सुखदेव और राजगुरु। आज के ही दिन 23 मार्च को शहीद भगत सिंह उनके साथी सुखदेव और राजगुरु ने 1931 में देश के लिए बलिदान दे दिया था अर्थात अंग्रेजों ने इनको फांसी दे दी थी। उस समय नौजवानों के दिल में अपने देश को आजाद करवाने के लिए कितना जोश था, लेकिन अफसोस की बात यह है कि आज भारत को हर तरफ से निचोड़ कर रख दिया है। बहुत से लोग इनकी कुर्बानियों को भूलकर ऐसे काम भी कर रहे हैं, जो देशहित के लिए जरा भी उचित नहीं है। देशभक्तों के जन्मदिन या शहीदी दिन पर सबको उनकी कुर्बानियों को याद करते हुए यह प्रण लेना चाहिए कि कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जो देशहित के लिए उचित न हो। जनता को तो क्या राजनेताओं और सत्ताधारियों को भी इनकी कुर्बानी की कद्र नहीं है। देश को उन्नति के मार्ग पर ले जाने की बजाय हंगामे करने पर बल देते हैं। राजनेताओं और सत्ताधारियों को भी महान देशभक्तों की कुर्बानियों को याद करते हुए घटिया राजनीति से परहेज करना चाहिए और हर वक्त न सही कभी तो अपने सवार्थ के बजाय देशहित और जनहित के बारे में सोचना चाहिए।