राम के नाम सांप्रदायिक हिंसा

भगवान श्रीराम के नाम पर और उनके ही देश के कुछ महत्त्वपूर्ण हिस्सों में सांप्रदायिक नफरत, तनाव और हिंसा फैलाई जाए, यह हैरान भी करता है और क्षुब्ध भी करता है। रामनवमी के मौके पर देश भर में शोभा-यात्राएं निकाली जाती रही हैं। बंगाल के कुछ हिस्सों में पलट-हिंसा देखने को मिली थी, लेकिन वह शांत नहीं हो सकी या जानबूझ कर उसे फैलाव दिया गया। नतीजा आज सामने है कि पश्चिम बंगाल के आसनसोल, मुर्शिदाबाद, रानीगंज, पुरुलिया आदि शहर-दर-शहर हिंसा की चपेट में हैं। वे सुलग रहे हैं, धधक रहे हैं और नफरत की आग बढ़ती जा रही है। हिंसा यहां तक बढ़ गई है कि बम फेंके जा रहे हैं। ऐसे ही एक हमले में दुर्गापुर के एक डीसीपी का हाथ ही उड़ गया। कुछ मौतें भी हो चुकी हैं। घायलों की संख्या अस्पष्ट है। ये सांप्रदायिक लपटें बंगाल तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि बिहार के औरंगाबाद, मुंगेर, आरा, भागलपुर, नालंदा और समस्तीपुर आदि शहर-जिलों तक भी फैल गई हैं। बेशक सांप्रदायिक दंगों की स्थिति नहीं है, लेकिन नफरत, तनाव और हिंसा के जो दृश्य देखने-पढ़ने में आए हैं, वे कभी भी दंगों में तबदील हो सकते हैं। सांप्रदायिक दंगों का बिहार का अपना इतिहास रहा है। बीते साल 2017 में ही 11,698 दंगे हुए, जबकि इस साल 2018 में अभी तक 614 दंगे तो हो चुके हैं। यह सांप्रदायिक तनाव और हिंसा रामनवमी की शोभा-यात्राओं की प्रतिक्रिया में भड़के हैं। कुछ राजनेता दलीलें दे रहे हैं कि बंगाल और बिहार में हर साल यह हिंसा भड़कती रही है। आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? राम नाम हम भारतीयों के लिए विराट है और मर्यादा का प्रतीक भी है। क्या हमने भगवान राम से यही सीख हासिल की है? आखिर सांप्रदायिक तनाव की वजह क्या है? क्या राम की शोभा-यात्रा के जरिए हिंदू, मुसलमानों के वजूद पर, हमले करते हैं? क्या हथियारों का प्रदर्शन इसका एक बुनियादी कारण है? तो मुहर्रम के मौके पर मुसलमानों के हाथों में भी हथियार होते हैं। बेशक वे सांकेतिक होते हैं। हिंदुओं ने तो कभी भी आपत्ति नहीं की। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह सांप्रदायिक हिंसा राम नवमी के बाद ही क्यों भड़कती है? बहरहाल इस सांप्रदायिक विभाजन का सरलीकरण इस तरह किया जा रहा है कि सांप्रदायिकता का विस्तार तो संघ और भाजपा ही करते रहे हैं। आश्चर्य है कि बिहार में जद-यू के साथ भाजपा सत्ता में है। वह अपने राज्य का माहौल क्यों बिगाड़ेगी? बंगाल के हालात ऐसे हैं कि शहर-दर-शहर सांप्रदायिक लपटों में घिरे हैं और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिल्ली में राजनीतिक मुलाकातों में व्यस्त हैं। 2019 में केंद्र की सत्ता का सपना अभी से संजोना शुरू कर दिया है। तो जलते, दरकते, घृणास्पद बंगाल की हिफाजत कौन करेगा? केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने ममता सरकार से बीते दो-तीन दिनों की हिंसा पर रपट मांगी है। बंगाल में अर्द्धसैन्य बल भेजने की पेशकश भी दी है। एसएसबी, सीआरपीएफ  और आरएएफ  पहले से ही तैनात हैं। कई जगहों पर धारा 144 लागू है। इंटरनेट सेवाएं बंद हैं, जबकि कुछ जगहों पर चालू रखी गई हैं। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। फिर भी बिहार में 150 से ज्यादा लोगों और दंगाइयों को गिरफ्तार किया गया है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का बड़ा सरलीकृत-सा बयान है ‘कि कुछ गुंडे राम का नाम बदनाम कर रहे हैं। यह सब कुछ साजिश के तहत कराया जा रहा है।’ यदि वाकई ऐसा है, तो ममता साफ तौर पर नाम लें कि हमारे सभ्य, सुसंस्कृत, सहनशील समाज को बांटने और हिंसा में धकेलने का काम कौन कर रहे हैं? उन पर कानूनन कार्रवाई की जाए। ऐसे संदर्भों में भाजपा को निशाना बनाना ही पर्याप्त नहीं है। हर बार हिंदू बनाम मुसलमान का सरलीकरण करना भी उचित नहीं है। यह हिंदुओं का ही भाईचारा है, जो 20 करोड़ मुस्लिम आज भारत में रह पा रहे हैं। पाकिस्तान में ऐसे हालात और भाईचारा हिंदुओं के साथ क्यों नहीं है?