शिक्षा प्रणाली बदलो

कर्म सिंह ठाकुर, सुंदरनगर, मंडी

शिक्षा का उद्देश्य केवल उसे पाना या डिग्री लेकर उपलब्धि हासिल करना नहीं, बल्कि सर्वांगीण विकास व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्ति करके सभ्य समाज का निर्माण होना चाहिए। 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा शिक्षा में बदलाव लाकर नवीन शिक्षा नीति के जरिए शिक्षा को सूचना प्रौद्योगिकी से जोड़कर रोजगारोन्मुख बनाने की पहल की गई। वर्ष 2019 में शिक्षा का अधिकार लागू किया गया। शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया। सबको उम्मीद थी कि अब शिक्षा द्वारा सभ्य समाज का निर्माण होगा और वह हर आदमी तक पहुंच जाएगी, लेकिन इस अधिनियम के जरिए तो गुणवत्ता व कौशल इतना गिर गया कि पांचवीं का विद्यार्थी दूसरी की किताबों को पढ़ने में भी असमर्थ है। पिछले आठ वर्षों का विश्लेषण किया जाए तो शिक्षा का स्तर इतना गिर गया है कि कागजी लिखा-पढ़ी में ही शिक्षक की दिनचर्या व्यतीत हो जाती है। प्रारंभिक कमजोरियां व विसंगतियां आगे की शिक्षा पर भी भारी पड़ती हैं और विद्यार्थी के जीवन को अंधकार में धकेल देती हैं। ऐसी शिक्षा प्रणाली सभ्य समाज के निर्माण में सबसे बड़ा रोड़ा बनी हुई है। शिक्षा की इस बुझती लौ को जगाना होगा, ताकि शिक्षा गरीब से गरीब बच्चे को भी मिल सके तथा रइसों व गरीब की शिक्षा में समता स्थापित हो सके। जब तक आम जनमानस शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझेगा, तब तक शिक्षा की सुध कोई नहीं लेगा। सरकारें आती-जाती रहेंगी। शिक्षा पर भी राजनीति होती रहेगी और व्यवसायी शिक्षा को बेचकर खूब मुनाफा कमाते रहेंगे। आम आदमी की आगामी पीढ़ी भी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर बनेगी। शिक्षा पर हर व्यक्ति को सजगता व सूझबूझ दिखानी होगी, ताकि शिक्षा का पुनरुत्थान किया जा सके।