‘सुनील’ तुम क्यों चले गए

सुरेश कुमार, योल

‘दिव्य हिमाचल’ के कारवां को मझधार में छोड़कर ‘सुनील’ तुम क्यों चले गए। क्या सफर मुश्किल था या मंजिल मिलने का यकीन नहीं था।  ‘सुनील’ एक ऐसी शख्सियत जो सरकार की आंखें खोलती थी, आज खुद आंखें मींच गई। जो लोगों की आवाज बनती थी, आज खुद खामोश हो गई । यकीन नहीं होता कि आज यह शून्य सुनील  से बना है। जुदा शख्सियत, जुदा अंदाज, इतनी कम उम्र के पड़ाव पर पत्रकारिता के पहाड़ पर पहुंचना सुनील को कतार से अलग खड़ा करता है। खबर बनाने वाला अब खुद खबर बन गया। जाना तो सभी को है, पर जिनके जाने का यकीन नहीं होता, जाना असल में उन्हीं का होता है। अपनी कलम से जनता की बात सरकार तक पहुंचाने का जो काम सुनील ने किया, उसकी वजह से वह लोगों के जहन में जिंदा रहेंगे। हम भी दम रखेंगे, खुदा ने छीन लिया तो क्या उन्हें ख्यालों में जिंदा रखेंगे। शिमला की फिजाएं अब मौन हैं, पर इस मौन में भी एक गूंज है कि सुनील तुम यहीं हो, यहीं कहीं हो।