1905 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हुआ था कांगड़ा किला

कांगड़ा किला में स्थित लक्ष्मी नारायण और आदिनाथ के मंदिर जैन धर्म को समर्पित हैं। किले के भीतर दो तालाब हैं, उनमें से एक को कपूर सागर कहा जाता है। इस समय किला भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के अधीन है। यह 1905 ई. के भूचाल में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था…

कांगड़ा किला

कांगड़ा का किला कटोच वंश के संस्थापक भूमा चंद द्वारा बनाया गया था। लंबे समय तक यह किला उत्तरी भारत के शासकों के आकर्षण का केंद्र रहा। इस किले पर पहला आक्रमण कश्मीर के राजा श्रेष्ठ द्वारा 470 ई. में किया गया। 1009 ई. में मोहम्मद गजनी ने कांगड़ा किला को लूटा। वह अपने साथ 7 लाख सोने के सिक्के, 700 मन सोने चांदी के बने बरतन, 20 मन हीरे और मोती ले गया। 1337 ई. में मोहम्मद तुगलक और 1357 ई. में फिरोज शाह ने कांगड़ा किले को अपने कब्जे में लिया। 1540 ई. में  शेर शाह सूरी के एक कमांडर ने इसे कब्जे में लिया। 1620 ई. में जहांगीर ने कांगड़ा के किले पर अधिकार किया। 1622 ई. में वह इसे देखने आया था। 1780-81 ई. में यह जस्सा सिंह कन्हैया के नियंत्रण में आया और 1786 ई. में महाराजा संसार चंद द्वितीय के नियंत्रण में। 1846 ई.में कांगड़ा किला ब्रिटिश के हाथों में चला गया। कांगड़ा का किला बाणगंगा नदी के किनारे 350 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। कांगड़ा किला में किले के अगले आंगन में  लक्ष्मी नारायण और आदिनाथ के मंदिर जैन धर्म को समर्पित हैं। किले के भीतर दो तालाब हैं, उनमें से एक को कपूर सागर कहा जाता है। इस समय किला भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के अधीन है। यह 1905 ई. के भूचाल में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। इस पहाड़ी राज्य में  40 स्थान पुरातत्त्व से संबद्ध हैं, जिन में से चार- ताबो का बौद्ध मठ, मसरूर के चट्टान से कटे मंदिर, कांगड़ा किला और मनाली में हिडिंबा देवी के मंदिर को 2012 ई. में विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। यह प्रदेश के लिए गर्व की बात है।

कसौली

यह एक मनोहर पहाड़ी स्थान है तथा पक्षियों का निरीक्षण करने वालों के लिए अति लोलुप स्थान है। गड़खल में सत्य साई बाबा के आश्रम के समीप मंकी प्वाइंट है। कसौली में पाश्चर संस्थान भी है, जो कुत्ते के काटे का वैक्सीन भी तैयार करता है। सामने की पहाड़ी पर सनावर में प्रसिद्ध लॉरेंस स्कूल स्थित है। कसौली में दूरदर्शन रिले स्टेशन भी है।

केलांग

यह भागा नदी के ऊपरी खंड में स्थित है। यह लाहुल- स्पीति का जिला मुख्यालय है। इसे हरे खेतों, सरपत पेड़ों का जल मार्ग, भूरी पहाडि़यां और बर्फानी चोटियों का मरूद्यान कहा जाता है। केलांग मोरेवियन  मिशनरियों का घर है। उनके प्रसिद्ध मठ ‘तायुल’, ‘खरदोंग’ और ‘शशुर’ कुछ ही किलोमीटर की परिधि में हैं।