आप श्रद्धा दें, पितर शक्ति देंगे

गतांक से आगे…

अति प्रचंड संकल्प वाली ऐसी कितनी ही आत्माओं का परिचय समय-समय पर मिलता रहता है। लोग इन्हें ‘पितर’ नाम से देव स्तर की संज्ञा देकर पूजते पाए जाते हैं। वे अपने अस्तित्व का प्रमाण जब तब इस प्रकार देते रहते हैं कि आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। इतने पुराने समय में उत्पन्न हुई वे आत्माएं अभी तक अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं, यह प्रेत विद्या के लोगों के लिए भी अचंभे की बात है, क्योंकि वे भी प्रेतयोनि को स्वल्पकालीन मानते हैं। अब उन्हें भी एक नए ‘पितर’ वर्ग को मान्यता देनी पड़ी है। जो मात्र भूत-प्रेत नहीं होते, वरन् अपनी प्रचंड शक्ति का दीर्घकाल तक परिचय देते रहते हैं। हजारों वर्ष पूर्व उत्पन्न आत्माएं अभी तक प्रेतावस्था में ही हों, यह मानना असंगत और असमीचीन है? वे अभी तक निश्चय ही नए जन्म लेकर नई गतिविधियों में जुट चुकी होंगी। ऐसी स्थिति में यही स्पष्ट होता है कि प्रचंड संकल्प-सत्ता जीवात्मा की प्राण-शक्ति का एक अंश लेकर एक नई ही शक्तिशाली इकाई बना डालती है। यह प्राणवेग से भरपूर सत्संकल्पात्मक इकाई अपने आवेग की सामर्थ्य के अनुसार ही एक निश्चित समय तक सक्रिय रहती है। वह समय उस प्राण सत्ता के लिए कुछ अधिक न होते हुए भी हमारे लिए हजारों वर्षों का होने से हमें चमत्कारिक लग सकता है। संकल्प सत्ता के साक्षात विग्रह स्वरूप ये पितर इकाइयां अपनी संरचना में सन्निहित तत्त्वों के अनुरूप ही गतिविधियां करती हैं, अन्य नहीं। अर्थात् ये कुछ सीमित प्रयोजनों में ही मददगार हो सकती हैं। प्रयोजनों के जिन ढांचों से इन संकल्प सत्ताओं का अधिक परिचय-लगाव होता है, उनकी पूर्ति में वे विशेष सहायक सिद्ध हो सकती हैं। प्रार्थना-उपासना, ईश्वर-आराधना, सामाजिक कर्त्तव्य विशेष आदि में आकस्मिक सहायता के रूप में ऐसी ही पितर-सत्ताओं का अनायास अनुग्रह बरसा करता है। पितरों के ऐसे अनुग्रह-अनुदान संकल्प की प्रखरता, सत्प्रवृत्तियों से अनुराग और विराट करुणा के परिणाम होते हैं। ये दैवी तत्त्व न केवल पितरों की विशेषताएं होती हैं, अपितु मनुष्य की भी वास्तविक विभूतियां हैं।   -क्रमशः

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