एक था हिमाचल!

सुरेश कुमार, योल

अगर यह हिमाचल रहता तो इसे फिर से हिमाचल बनाने की जरूरत न होती। अब यह हिमाचल नहीं रहा। अब यह कंकरीट का जंगल और अपराध का अखाड़ा बन चुका है। नेता इसे स्विट्जरलैंड बनाने की बात कर रहे हैं, पर हकीकत का हिमाचल विलुप्त होता जा रहा है। फोरलेन बनने से सुविधाएं तो जरूर हो जाएंगी पर हरा-भरा हिमाचल कहां बचेगा? मनुष्य ने अपनी सुविधा के लिए प्रकृति से खिलवाड़ ही किया है और बदले में उसे खामियाजा भी भुगतना पड़ा है। नदियों पर बांध बना दिए, बिजली के प्रोजेक्ट लगा दिए।  दूसरों को रोशन करने के प्रयास में हिमाचल खुद अंधेरा हो गया। प्रकृति की बात छोड़ो। अब मानवता भी हिमाचली नहीं रही। कहीं छः साल की बच्ची से दुष्कर्म तो कहीं दो माह की बच्ची को ठंड में कपड़ों में लपेट कर झाडि़यों में फेंक दिया जाता है। देवभूमि अब सिर्फ नाम की रह गई है। नशा भी यहां अपने पैर पसारता जा रहा है। महिलाएं भी नशा तस्करी में संलिप्त हैं। हिमाचल शक्तिपीठों के लिए जाना जाता है, पर यहां मंदिरों में चोरी आम बात बन गई है। हमने एक स्वच्छ और सुंदर हिमाचल को विकास के चिथड़े ओढ़ा दिए हैं। 47 साल का हिमाचल बदरंग हो गया है। अब कैसे फिर से वैसा हिमाचल बनाएंगे, जिसकी सुबह मंदिर की घंटियों से होती थी, पर आज अपराध की अखबारी सुर्खियों से होती है। हिमाचल कह रहा है कि मुझे मेरा पहले वाला रूप लौटा दो, इस रूप में तो मैं ज्यादा देर नहीं चल पाऊंगा।