कंस की कहानी में है रहस्य व रोमांच

केवल वैदिक साहित्य में ही नहीं, अपितु बौद्ध एवं जैन साहित्य में भी ब्रज संबंधी विविध उल्लेख मिलते हैं। बौद्ध साहित्य के अंतर्गत घट जातक में वासुदेव कान्हा और कंस की कथा है। बौद्ध अवदान साहित्य में दिव्यावदान मुख्य है। इस ग्रंथ में मथुरा में भगवान बुद्ध का आगमन तथा शिष्यों के साथ उनका विविध विषयों पर विचार-विमर्श वर्णित है…

-गतांक से आगे…

उसी क्रूर अत्याचारी कंस ने अपनी चचेरी बहन देवकी तथा उसके पति वासुदेव को किसी आकाशवाणी को सुनकर अपने को निर्भय रखने के विचार से जेल में डाल दिया था। कंस तथा उसके क्रूर शासन को समाप्त करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने देवकी के गर्भ से कारागृह में जन्म लिया और अद्भुत लीलाओं के क्रमों का विकास करते हुए अपने मामा कंस का वध करके ब्रजवासियों के कष्टों को दूर किया। अपने माता-पिता तथा नाना उग्रसेन को कारागृह से मुक्त कराया तथा उन्हें पुनः सिंहासन पर बिठाया। श्रीकृष्ण ने कंस के अत्याचार से त्रस्त गोपों में जागृति उत्पन्न की तथा वयस्क होने पर कंस को मार डाला तथा उग्रसेन का पुनः राज्याभिषेक कर दिया। जरासंध को यह सब विदित हुआ तो उसने पुनः युद्ध कर उग्रसेन को परास्त कर दिया तथा कंस के पुत्र को शूरसेन का राजा बनाया।

विविध उल्लेख

केवल वैदिक साहित्य में ही नहीं, अपितु बौद्ध एवं जैन साहित्य में भी ब्रज संबंधी विविध उल्लेख मिलते हैं। बौद्ध साहित्य के अंतर्गत घट जातक में वासुदेव कान्हा और कंस की कथा है। बौद्ध अवदान साहित्य में दिव्यावदान मुख्य है। इस ग्रंथ में मथुरा में भगवान बुद्ध का आगमन तथा शिष्यों के साथ उनका विविध विषयों पर विचार-विमर्श वर्णित है। इसके अतिरिक्त ललितविस्तर, मज्झिमनिकाय, महावत्थु, पेतवत्थु, विमानवत्थु, अट्ठकथा आदि ग्रंथों एवं उनकी टीकाओं में जो विविध उल्लेख मिलते हैं उनसे मथुरा की राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति पर बहुत-कुछ प्रकाश पड़ता है।

कंस के समय मथुरा

कंस के समय में मथुरा का क्या स्वरूप था, इसकी कुछ झलक पौराणिक वर्णनों में देखी जा सकती है। जब श्रीकृष्ण ने पहली बार इस नगरी को देखा तो भागवतकार के शब्दों में उसकी शोभा इस प्रकार थी-‘उस नगरी के प्रवेश-द्वार ऊंचे थे और स्फटिक पत्थर के बने हुए थे। उनके बड़े-बड़े सिरदल और किवाड़ सोने के थे। नगरी के चारों ओर की दीवाल (परकोटा) तांबे और पीतल की बनी थी तथा उसके नीचे की खाई दुर्लभ थी। नगरी अनेक उद्यानों व सुंदर उपवनों से शोभित थी। सुवर्णमय चौराहों, महलों, बगीचियों, सार्वजनिक स्थानों एवं विविध भवनों से वह नगरी युक्त थी। वैदूर्य, बज्र, नीलम, मोती, हीरा आदि रत्नों से अलंकृत छज्जे, वेदियां तथा फर्श जगमगा रहे थे और उन पर बैठे हुए कबूतर और मोर अनेक प्रकार के मधुर शब्द कर रहे थे। गलियों और बाज़ारों में, सड़कों तथा चौराहों पर छिड़काव किया गया था और उन पर जहां-तहां फूल-मालाएं, दूर्वा-दल, लाई और चावल बिखरे हुए थे। मकानों के दरवाजों पर दही और चंदन से अनुलेपित तथा जल से भरे हुए मंडल-घट रखे हुए थे, फूलों, दीपावलियों, बंदनवारों तथा फलयुक्त केले और सुपारी के वृक्षों से द्वार सजाए गए थे और उन पर पताके और झडि़यां फहरा रही थीं।’ उपर्युक्त वर्णन कंस या कृष्ण कालीन मथुरा से कहां तक मेल खाता है, यह बताना कठिन है। परंतु इससे तथा अन्य पुराणों में प्राप्त वर्णनों से इतना अवश्य ज्ञात होता है कि तत्कालीन मथुरा एक समृद्ध पुरी थी।

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