-गतांक से आगे…
रत्न-द्वीप-स्पुसरद्-रक्त-सिंहासन-विलासिनी।। 111।।
षट्-चक्र-भेदन-करी परमानंद-रूपिणी।
सहस्र-दल – पद्यांतश्चंद्र – मंडल-वर्तिनी।। 112।।
ब्रह्म-रूप-शिव-क्रोड-नाना-सुख-विलासिनी।
हर-विष्णु-विरंचींद्र-ग्रह – नायक-सेविता।। 113।।
शिवा शैवा च रुद्राणी तथैव शिव-वादिनी।
मातंगिनी श्रीमती च तथैवानंद-मेखला।। 114।।
डाकिनी योगिनी चैव तथोपयोगिनी मता।
माहेश्वरी वैष्णवी च भ्रामरी शिव-रूपिणी।। 115।।
अल बुषा वेग-वती क्रोध-रूपा सु-मेखला।
गांधारी हस्ति-जिह्वा च इडा चैव शुभर्जी।। 116।।
पिंगला ब्रह्म-सूत्री च सुषुणा चैव गंधिनी।
आत्म-योनिर्ब्रह्म-योनिर्जगद-योनिरयोनिजा।। 117।।
भग-रूपा भग-स्थात्री भगनी भग-रूपिणी।
भगात्मिका भगाधार-रूपिणी भग-मालिनी।। 118।।
लिंगा या चैव लिंगेशी त्रिपुरा-भैरवी तथा।
लिंग-गीतिः सुगीतिश्च लिंगस्था लिंग-रूप-धृव्।। 119।।
लिंग-माना लिंग-भवा लिंग-लिंगा च पार्वती।
भगवती कौशिकी च प्रेमा चैव प्रियंवदा।। 120।। -क्रमशः
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