आखिरकार वृंदावन कृष्ण के बिना सूना-सूना हो गया, न कोई चहल-पहल थी और न ही कृष्ण की लीलाओं की कोई झलक। बस सभी कृष्ण के जाने के गम में डूबे हुए थे। दूसरी ओर राधा को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, क्योंकि उनकी दृष्टि में कृष्ण कभी उनसे अलग हुए ही नहीं थे…
-गतांक से आगे…
कहा अलविदा
अंततः कृष्ण, राधा को अलविदा कह वहां से लौट आए और आकर गोपियों को भी वृंदावन से उन्हें जाने की अनुमति देने के लिए मना लिया।
चले गए कृष्ण
आखिरकार वृंदावन कृष्ण के बिना सूना-सूना हो गया, न कोई चहल-पहल थी और न ही कृष्ण की लीलाओं की कोई झलक। बस सभी कृष्ण के जाने के गम में डूबे हुए थे। परंतु दूसरी ओर राधा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, लेकिन क्यों! क्योंकि उनकी दृष्टि में कृष्ण कभी उनसे अलग हुए ही नहीं थे।
कृष्ण को याद करती थी राधा
शारीरिक रूप से जुदाई मिलना उनके लिए कोई महत्त्व नहीं रखता था, यदि कुछ महत्त्वपूर्ण था तो राधा-कृष्ण का भावनात्मक रूप से हमेशा जुड़ा रहना। कृष्ण के जाने के बाद राधा पूरा दिन उन्हीं के बारे में सोचती रहती और ऐसे ही कई दिन बीत गए। लेकिन आने वाले समय में राधा की जिंदगी क्या मोड़ लेने वाली थी, उन्हें इसका अंदाजा भी नहीं था।
राधा का विवाह
माता-पिता के दबाव में आकार राधा को विवाह करना पड़ा और विवाह के बाद अपना जीवन संतान तथा घर-गृहस्थी के नाम करना पड़ा। लेकिन दिल के किसी कोने में अब भी वे कृष्ण का ही नाम लेती थी। दिन बीत गए, वर्ष बीत गए और समय आ गया था जब राधा काफी वृद्ध हो गई थी। फिर एक रात वे चुपके से घर से निकल गई और घूमते-घूमते कृष्ण की द्वारिका नगरी में जा पहुंची।
राधा पहुंची द्वारिका नगरी
वहां पहुंचते ही उसने कृष्ण से मिलने के लिए निवेदन किया, लेकिन पहली बार में उन्हें वह मौका प्राप्त न हुआ। परंतु फिर आखिरकार उन्होंने काफी सारे लोगों के बीच खड़े कृष्ण को खोज निकाला। राधा को देखते ही कृष्ण की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन तब भी कोई वार्तालाप नहीं हुआ।
मिली कृष्ण से
क्योंकि वह मानसिक संकेत अभी भी उपस्थित थे, उन्हें शब्दों की आवश्यकता नहीं थी। कहते हैं राधा कौन थी, यह द्वारिका नगरी में कोई नहीं जानता था। राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त करा दिया, वे दिन भर महल में रहती, महल से संबंधित कार्यों को देखती और जब भी मौका मिलता, दूर से ही कृष्ण के दर्शन कर लेती।
राधा का डर
लेकिन फिर भी न जाने क्यों राधा में धीरे-धीरे एक भय पैदा हो रहा था, जो बीतते समय के साथ बढ़ता जा रहा था। उन्हें फिर से कृष्ण से दूर हो जाने का डर सताता रहता, उनकी यह भावनाएं उन्हें कृष्ण के पास रहने न देतीं। साथ ही बढ़ती उम्र ने भी उन्हें कृष्ण से दूर चले जाने को मजबूर कर दिया। अंततः एक शाम वे महल से चुपके से निकल गई और न जाने किस ओर चल पड़ी।
निकल गई महल से
वे नहीं जानती थी कि वे कहां जा रही हैं, आगे मार्ग पर क्या मिलेगा, बस चलती जा रही थी। परंतु कृष्ण तो भगवान हैं, वे सब जानते थे, इसलिए अपने अंतर्मन वे जानते थे कि राधा कहां जा रही है। फिर वह समय आया जब राधा को कृष्ण की आवश्यकता पड़ी, वह अकेली थी और बस किसी भी तरह से कृष्ण को देखना चाहती थी और यह तमन्ना उत्पन्न होते ही कृष्ण उनके सामने आ गए।
कृष्ण प्रकट हुए
कृष्ण को अपने सामने देख राधा अति प्रसन्न हो गई। परंतु दूसरी ओर वह समय निकट था जब राधा पाने प्राण त्याग कर दुनिया को अलविदा कहना चाहती थी। कृष्ण ने राधा से प्रश्न किया और कहा कि वे उनसे कुछ मांगे, लेकिन राधा ने मना कर दिया।
कृष्ण ने बजाई बांसुरी
कृष्ण ने फिर से कहा कि जीवन भर राधा ने कभी उनसे कुछ नहीं मांगा, इसलिए राधा ने एक ही मांग की और वह यह कि ‘वे आखिरी बार कृष्ण को बांसुरी बजाते देखना चाहती थी’। कृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद मधुर धुन में उसे बजाया, बांसुरी बजाते-बजाते राधा ने अपने शरीर का त्याग किया और दुनिया से चली गई। उनके जाते ही कृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी और कोसों दूर फेंक दी। -समाप्त
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