गाय का महत्त्व

भारतीय संस्कृति में गऊ का महत्त्व सबसे अधिक है। सनातन काल से इतिहास को देखने पर पता चलता है कि गऊ का पूजनीय होने के साथ-साथ भारत की आर्थिक समृद्धि में भी बड़ा योगदान रहा है। गऊ का दूध जहां मानव शरीर के लिए सर्वोत्तम है वहीं इसका गोबर इर्ंंधन और खाद के रूप में उपयोग में लाया जाता था। गऊ एक पर्यावरण मित्र के रूप में पूरे भारतवर्ष में प्रचलित थी। भारतीय गऊ के दूध को शरीर और दिमाग के विकास के लिए सर्वोत्तम माना गया है। जिसका उल्लेख भारतीय पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। गऊ के दूध में पाए जाने वाले औषधीय गुण मां के दूध से मिलते हैं इसलिए गऊ को गौ माता का दर्जा दिया गया। हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे से राज्य में लगभग 30 से 35 वर्ष पूर्व प्राय हर घर में देसी गऊ बैल या अन्य पशुधन हुआ करता था। परंतु अंग्रेजों ने भारत की देसी गऊ को बूचड़खानों में भेज दिया और उसके स्थान पर जर्सी गाय को ले आए। अंग्रेजों के इस कृत्य का और भौतिकवाद का ऐसा असर हम पर हावी होता गया कि हमने अपनी देशी गाय को डंडे मार कर सड़कों पर छोड़ दिया और उनकी जगह क्रॉस ब्रीड वाली जर्सी गाय पालनी शुरू कर दी। हमने अपनी पुरानी परंपराओं को भूला दिया और आजादी के 70 वर्षों बाद अपनी गऊ माता को सड़कों पर छोड़ दिया। हमें यह सोचना होगा कि गाय की इस बेकद्री के लिए कहीं न कहीं हम स्वयं जिम्मेदार हैं। जब तक गाय दूध देती रहती है, तब तक इसे पालते हैं। जब दूध देना बंद कर देती है, सड़क पर छोड़ देते हैं। यदि हम मां मानी जाने वाली गऊ माता को सड़क पर छोड़ सकते हैं, तो वह दिन दूर नहीं कि हम अपने माता- पिता को भी सड़कों पर छोड़ देंगे और कहीं-कहीं तो बुजुर्गों को छोड़ने का कार्य शुरू भी हो चुका है। यहां पर मैं हिमाचल प्रदेश की नवनिर्वाचित सरकार को बधाई दूंगा कि प्रदेश सरकार ने आते ही बुजुर्गों और गाय का दर्द समझा है। उनकी पीड़ा को महसूस किया है इसलिए गाय और बुजुर्गों के लिए जो निर्णय लिए हैं, वह काबिले तारीफ  हैं। मंदिरों के नजदीक गऊ सदनो का निर्माण प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। मंदिरों में इस दिशा में दान देने वालों की कमी नहीं है, कमी है तो हमारी इच्छाशक्ति की। गउओं के लिए चारा या अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं की उचित व्यवस्था की जाए और सारा खर्च सरकार या बोर्ड के माध्यम से किया जाए। गऊ संवर्धन के क्षेत्र में काम कर रही संस्थाओं को अधिमान दिया जाए और इस क्षेत्र में वर्षों से कार्य कर रही संस्थाओं का सहयोग लिया जाए। सरकारी भूमि को आसान शर्तों पर गऊ सदनों के निर्माण के लिए उपलब्ध करवाया जाए। इसकी सारी निगरानी मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा स्वयं की जाए। आवारा गाय की वृद्धि को रोकने के लिए सरकार को कुछ सख्त कदम उठाने होंगे। गऊ संवर्धन को जब तक पंचायती राज से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक गौ संवर्धन में कामयाबी मिलना कठिन होगा।

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