यमुनोत्री धाम के दरवाजे भक्तों के लिए अक्षय तृतीया के दिन खोल दिए गए हैं, लेकिन इस साल कुछ ऐसा संयोग बना है कि केदारनाथ के कपाट अक्षय तृतीया के 11 दिन बाद 29 अप्रैल को और बद्रीनाथ के कपाट अक्षय तृतीया के 12 दिन बाद 30 अप्रैल को खुल रहे हैं। जबकि आमतौर पर अक्षय तृतीया के दो-तीन दिन बाद केदारनाथ और इसके अगले दिन बद्रीनाथ के कपाट खुल जाते हैं…
केदारनाथ मंदिर- भोलेनाथ के दर्शन के लिए बाबा केदारनाथ के इस धाम के कपाट 29 अप्रैल को सुबह 6ः15 मिनट पर खोले जाएंगे। भगवान भोलेशंकर के इस धाम में पहुंचने के लिए आपको हरिद्वार या ऋषिकेश वाहन तो मिल जाते हैं, लेकिन वाहन केवल गौरीकुंड तक ही जाते हैं। यहां से करीब 21 किमी. की चढ़ाई के बाद आप बाबा के धाम तक पहुंच पाएंगे। उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हंै। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह प्राचीन है, जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड। केदारनाथ मंदिर न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है। केदारनाथ धाम के इतिहास के अनुसार ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। केदारनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जनमेजय ने कराया था, लेकिन ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते है। श्री केदारनाथ मंदिर में शंकर बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में पूजे जाते हैं। शिव की भूजा तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को ‘पंचकेदार’ कहा जाता है।
बद्रीनाथ धाम- बद्रीनाथ धाम के कपाट 30 अप्रैल को प्रातः 4ः30 बजे खोले जाएंगे। बद्रीनाथ धाम में 9 मई, 2018 को हीरों और रत्नों से जडि़त स्वर्ण छतर बदरीनाथ गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। वर्तमान में बद्रीनाथ गर्भगृह में वर्षों पुराना सोने का छतर मौजूद है। सोने का यह छतर करीब दो किलोग्राम का है, जिसे मध्य प्रदेश की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने चढ़ाया था। बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच में स्थित है। ये पंच बद्री में से एक हैं। उत्तराखंड में पंच बद्री, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिंदू धर्म की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है। ऋषिकेश से यह 214 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर शहर में मुख्य आकर्षण है। प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बेहद विशाल है। इसकी ऊंचाई करीब 15 मीटर है। माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था। शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है। यहां भगवान विष्णु का विशाल मंदिर है और पूरा मंदिर प्रकृति की गोद में स्थित है। यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है। बद्रीनाथ जी के मंदिर के अंदर 15 मूर्तिया स्थापित हंै। साथ ही साथ मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा है। इस मंदिर को धरती का वैकुंठ भी कहा जाता है। बद्रीनाथ मंदिर में वन तुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिसरी आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। नारायण के इस धाम में सीधे बस या अपने वाहन से पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको कोई चढ़ाई नहीं चढ़नी होती है। बद्रीनाथ जाने के लिए आपको हरिद्वार या ऋषिकेश से बस मिल जाती है।
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