परमज्ञान का सूचक

बाबा हरदेव

हर मनुष्य को जीवित रहने के लिए गर्मी या तपिश की भी जरूरत है। दूसरा अग्नि का सहज स्वभाव है कि जो चीज भी अग्नि में डाली जाती है ये उस चीज की सब अशुद्धता को जलाकर इसे शुद्ध बना देती है, जैसे साधारण सोने को जब अग्नि में डाला जाता है, तो इसमें से सब नकली चीजें जलकर राख हो जाती हैं और बाकी केवल कुंदन रह जाता है। तीसरा जब अग्नि को जलाया जाता है, तो इसकी लपट सदा ऊपर की ओर जाती है…

ब्रह्मज्ञानी का धीरज एक, ज्यों वसुधा कउ खोदे कउ चंदन लेप।’ धरती को महामाता का दर्जा भी दिया गया है, क्योंकि ये मां से भी बढ़कर सबको अपनी गोद में बगैर किसी भेदभाव के संभाले हुए है। चुनांचे मनुष्य में धैर्य का गुण कायम रखने के लिए इसे सदा धैर्यवान बने रहने के लिए इसके शरीर को धरती का तत्त्व लगाया गया है।

जल (पानी)

पानी का प्राकृतिक स्वभाव शीतल और सरल है। दूसरा पानी हर उस चीज में अपने आपको समतल ढाल लेता है, जिसमें पानी को डाल दिया जाए। तीसरा पानी को चाहे कितना ही ऊंचा रखा जाए ये सदा नीचे की तरफ बहने लगता है। मानो जल (पानी) शीतलता, सरलता, एडजस्टमेंट और नम्रता का प्रतीक है। मनुष्य देह में जल का तत्त्व इसलिए लगाया गया है कि मनुष्य हर समय जीवन में शीतल, सरल, हालात से समझौता करने वाला और विनम्र बना रहे।

अग्नि (आग)

हर मनुष्य को जीवित रहने के लिए गर्मी या तपिश की भी जरूरत है। दूसरा अग्नि का सहज स्वभाव है कि जो चीज भी अग्नि में डाली जाती है ये उस चीज की सब अशुद्धता को जलाकर इसे शुद्ध बना देती है, जैसे साधारण सोने को जब अग्नि में डाला जाता है, तो इसमें से सब नकली चीजें जलकर राख हो जाती हैं और बाकी केवल कुंदन रह जाता है। तीसरे जब अग्नि को जलाया जाता है, तो इसकी लपट सदा ऊपर की ओर जाती है। अग्नि का ये गुण परमज्ञान का सूचक है। उदाहरण के तौर पर दीये में जो लपट (लौ) होती है, वो सदा ऊपर की तरफ जाती है। दीये को कैसे भी रखा जाए चाहे दीये को तिरछा चाहे उल्टा रखा जाए, दीये की लौ में फर्क नहीं पड़ता। ये सदा ऊपर की तरफ जाती है। मानो शरीर की बेशक कोई अवस्था हो दुख की, सुख की, सफलता की, असफलता की, जीवन की हो, मृत्यु की हो, चेतना रूपी अग्नि ऊपर की तरफ जानी चाहिए, परमात्मा की तरफ जानी चाहिए। मनुष्य देह में अग्नि का तत्त्व मनुष्य को समग्रता से जीवन गुजारने, शुद्ध अवस्था में रहने और संसार से ऊपर उठकर त्याग भावना अपनाने का संकेत देता है।

वायु (हवा)

जैसे वायु वातावरण को स्वच्छ रखने में सहायता करती है कूड़ा-कर्कट, दुर्गंध आदि को उड़ाकर ले जाती है, इसी प्रकार मनुष्य में से क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी भ्रष्टता उड़ती रहे और ये स्वच्छ रहे, दूसरा सांस मनुष्य का साथ नहीं छोड़ती आखिरी दम  तक। सांस मनुष्य की वफादार सेवक है, इसी प्रकार मनुष्य भी परमात्मा और इसकी सृष्टि के प्रति वफादार रहे। हवा का तत्त्व मनुष्य शरीर के लिए इस लिहाज से भी अनिवार्य है कि ये तत्त्व हमारे शरीर का गुरु माना गया है।

पवन गुरु पानी पित, माता धरत महत

(आदि ग्रंथ)

क्योंकि मनुष्य हवा के बिना जिंदा नहीं रह सकता, क्योंकि हवा सुप्राण है।

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