पर्याप्त डाक्टर दो

देव गुलेरिया, योल कैंप, धर्मशाला

केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान ‘स्वच्छ-स्वस्थ भारत’ के सपने को हम शायद ही साकार कर पाएंगे। कितने ही गांवों के शौचालयों का असली ब्यौरा जब सामने आता है, तो पता चलता है कि किसी की छत नहीं है, किसी की दीवार नहीं है, तो किसी की सीट ही नहीं है, लेकिन पैसा जिसके लिए दिया गया था, क्या खर्च भी किया गया है? पंचायतों को इसकी प्रक्रिया पर उचित कार्रवाई करनी चाहिए। इसी तरह स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में हर रोज सुनने-पढ़ने या दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले समाचारों से ज्ञात हो रहा है कि हमारी स्वास्थ्य सेवाएं कितनी विकराल स्थिति में हैं। आज जब सरकार इसके सुधार में कई अहम कदम उठा रही है, हैल्थ कार्ड, हैल्थ इंश्योरेंस जैसी स्कीमें लाने में प्रयासरत है, वहीं अस्पतालों की चरमराती दशा के कई शर्मनाक उदाहरण देखने में आ रहे हैं। जैसे एक पति अपनी पत्नी के मृत शरीर को कंधों पर घर ले जाने के लिए मजबूर है, वहीं एक मरीज को एंबुलेंस उपलब्ध न होने पर मरीज को बैलगाड़ी-बग्घी पर ले जाना पड़ रहा है। इसी तरह एक सफाई कर्मचारी मरीज को इंजेक्शन देते देखा जा सकता है, डाक्टर उपलब्ध न होने पर एक अस्पताल कर्मचारी बिना लाइट के मरीज का उपचार कर रहा है, डाक्टर की शर्मनाक घटना में सर्जरी के पश्चात मरीज की टांग काट कर उसके सिर के नीचे रख तकिया बना दिया, बच्चे को दूसरे अस्पताल रैफर कर दिया और कहा कि आक्सीजन सिलेंडर और मास्क के साथ दूसरे अस्पताल पैदल ले जाने पर मजबूर कर दिया जबकि एंबुलेंस अस्पताल में उपलब्ध थी। क्या गरीबों के लिए यह सुविधाएं अभिशाप बन रह गई हैं? सरकार द्वारा लोगों की सहूलियत के लिए कई कदम भी उठाए जा रहे हैं, परंतु कुछ जगहों पर अभी भी उचित नियोजन करने की आवश्यकता है और साथ में सरकारी कर्मचारियों को भी निष्पक्ष भाव से काम करने की आदत बनानी चाहिए। किसी भी सरकारी कर्मचारी को लोगों और देश हित के लिए भी कार्यरत होना सीखना चाहिए। क्या सरकार, स्वास्थ्य विभाग की ऐसी चरमराती दशा को सुधारने हेतु कोई उत्कृष्ट कदम उठा पाएगी? क्या डाक्टर-कर्मचारियों के लिए कोई दिशा-निर्देश तथा सजा का प्रावधान संभव हो पाएंगे? सरकार को अस्पतालों में डाक्टरों का प्रबंध करवाना चाहिए।