सबको मिलकर नशे पर लगानी होगी नकेल

सतपाल

लेखक,  सीनियर रिसर्च फेलो, अर्थशास्त्र विभाग एचपीयू से हैं

नशाखोरी की बीमारी से हिमाचल भी अछूता नहीं रहा है। नशा कोई भी हो, समाज के किसी भी पहलू में हो, इसके परिणाम न तो मनुष्य के हित में हुए हैं और न ही समाज के हित में हैं। अगर हम वर्तमान समय में नशाखोरी की स्थिति को देखते हैं, तो तस्वीर बदतर नजर आती है। आज हमारे समाज में युवावर्ग नशाखोरी की चपेट में है…

आज नशाखोरी एक गंभीर समस्या उभर कर सामने आ रही है। विश्व की अनेक सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं युवाओं को नशा उन्मूलन के प्रति सचेत करने का काम कर रही हैं। जहां एक ओर पूरा विश्व व भारत आतंकवाद,  पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, वहीं नशाखोरी भी एक चुनौती बनकर सामने आई है, जिससे हिमाचल भी अछूता नहीं रहा है। हालांकि नशाखोरी की समस्या एक लंबे अरसे से हमारे समाज में प्रचलित है। परंतु वर्तमान समय में अधिकतर युवा पीढ़ी व स्कूली बच्चे इसकी चपेट में आ रहे हैं, जो एक गंभीर चिंता का विषय है। आज के समय में हिमाचल जैसे शांतिप्रिय प्रदेश में नशे से संबंधित कई घटनाएं देखने को मिल रही हैं। हालांकि हिमाचल प्रदेश सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान वर्जित है।  दुकानों में खुले में बीड़ी-सिगरेट बेचने पर प्रतिबंध है,  इसके बावजूद ऐसी घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। आदिकाल से ही नशाप्रथा हिमाचल में प्रचलित रही है, परंतु उस समय इसके इतने भयानक परिणाम देखने को नहीं मिलते थे। प्राचीन समय में प्रचलित नशाप्रथा में सुरासोम व अन्य मादक पदार्थ नशे के प्रकार थे। इन मादक पदार्थों का सेवन खुशी अथवा गम दोनों अवसरों में किया जाता था। वहीं दूसरी ओर गम के अवसर जैसे पत्नीवियोग या युद्ध में हार इत्यादि अनेक अवसरों पर किया जाता था।

इसका मतलब यह हुआ कि इन मादक पदार्थों का सेवन केवल खास अवसरों में ही होता होगा। ये मादक पदार्थ अकसर अपने-अपने घरों में ही तैयार किए जाते थे, जो बचे हुए अन्न से बनते थे। इनका स्वास्थ्य पर कुप्रभाव उतना अधिक नहीं होता था, क्योंकि इसमें अन्य नशीली चीजों का प्रयोग नहीं होता था। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मादक पदार्थों का सेवन एक निश्चित आयु सीमा के लोग ही किया करते थे। प्रदेश का समाज अपनी सभ्यता एवं संस्कृति के लिए पूरे भारतवर्ष में माना जाता है। इसलिए परिवार का कोई भी सदस्य किसी बड़े बुजुर्ग के सामने मादक पदार्थों का सेवन करने में शर्म महसूस करता था। परंतु उस समय भी नशे की लत लग जाने के कारण कई परिवार नष्ट हुए हैं। नशा कोई भी हो, समाज के किसी भी पहलू में हो, इसके परिणाम न तो मनुष्य के हित में हुए हैं और न ही समाज के हित में हैं। अगर हम वर्तमान समय में नशाखोरी की स्थिति को देखते हैं तो तस्वीर बदतर नजर आती है। आज हमारे समाज में युवावर्ग नशाखोरी की चपेट में है। आज का युवा कल का वह नागरिक है, जिसके कंधों पर देश का भविष्य निर्भर करता है।

वर्तमान समय में जहां एक ओर हमें विश्व के सबसे युवा देश होने का गौरव हासिल है, दूसरी ओर वह युवा नशे की चपेट में लिपटता चला जा रहा है। क्या ऐसे में वह देश का संचालन करने में सक्षम हो पाएगा? आज के समय में नशा केवल सुरासोम तक सीमित नहीं रहा है। इसका स्थान ऐसे मादक पदार्थों ने ले लिया है, जिनका जिक्र करने मात्र से ही आत्मा कांप जाती है। हमारा समाज तार्किक आधार पर चलता है। यहां हर अच्छे-बुरे कार्य के पीछे कोई न कोई तर्क जरूर दिया जाता है, चाहे उसका आधार काल्पनिक ही क्यों न हो। हमारे समाज में नशा करने के पीछे प्राचीन एवं वर्तमान समय में अलग-अलग तर्क दिए जाते आ रहे हैं। प्राचीन समाज में सुरासोम रस के सेवन को देवताओं के पेय मानते थे, वहीं भांग व धतूरे के सेवन के पीछे भगवान शिव की छवि को पेश किया जाता रहा है। आज के समय में अधिकतर स्कूली बच्चे व युवा पीढ़ी इस चंगुल में फंस रहे हैं। किशोरावस्था मनुष्य के जीवन में ऐसी अवस्था होती है, जब वह बुरी आदतों के प्रति बहुत जल्दी ही आकर्षित हो जाता है। पहले तो नशा शौक के लिए किया जाता है, परंतु यह शौक कब आदत और फिर मजबूरी बन जाती है, कोई पता नहीं चलता। नशाखोरी ऐसी समस्या है जो दिन-प्रतिदिन पूरे राष्ट्र के लिए चुनौती बनती जा रही है। वर्तमान में नशा करना केवल शराब, बीड़ी, सिगरेट तक सीमित नहीं है, बल्कि चरस, अफीम, गांजा, नशीले इंजेक्शन व दवाइयां, यहां तक की बूट पोलिश तक आकर पहुंच गया है। ऐसे और भी कई पदार्थ हैं, जिनका आम आदमी को नाम तक पता नहीं है, फिर भी उनका  सेवन नशे के लिए किया जाता है। इन नशीली चीजों से आज का युवा सबसे ज्यादा परिचित है। यहां तक कि दफ्तरों में प्रयोग में लाई जाने वाली फ्लयूड का प्रयोग भी आज का युवा नशे के लिए कर रहा है। ऐसी दैनिक प्रयोग की वस्तुओं की खरीददारी करने में भी कोई ज्यादा मुश्किल नहीं होती है। अतः यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वर्तमान समय में जहां नशे के दो प्रकार हैं, वहीं नशे करने वालों की भी दो श्रेणियां हैं। शराब, बीड़ी, सिगरेट व गुटखा इत्यादि नशे की पहली श्रेणी में आते हैं और चरस, अफीम, फ्लयूड, नशीले इंजेक्शन व बूट पोलिश ऐसे नशे हैं, जो नशे की दूसरी श्रेणी में आते हैं। ठीक इसी प्रकार इन नशों को करने वालों को भी दो ही श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पहली श्रेणी में वे लोग आते हैं, जो समाज के उम्रदराज व सुलझे हुए समझे जाते हैं। ये वे लोग हैं जो सब कुछ जानते हुए भी नशा करने से पीछे नहीं हटते। नशा करने वालों की दूसरी श्रेणी में आने वाले अधिकतर लोग या तो स्कूल, कालेज में पढ़ने वाले बच्चे हैं या तो युवा वर्ग जो केवल शौक पूरा करने के लिए इन नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं।

यहां यह कहना उपयुक्त होगा कि नशा चाहे किसी भी श्रेणी में आता हो, उसका नतीजा सदैव ही हानिकारक होता है। नशा उन्मूलन के लिए समय-समय पर तरह-तरह के कानून बनाए जाते रहे हैं। जहां एक ओर नशा उन्मूलन को लेकर समाज में जागरूकता फैलाई जाती है, वहीं दूसरी ओर बाजार में ये नशीले पदार्थ धड़ल्ले से बिकते हैं। अतः इन पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना समय की मांग है। नीतिकारों को इस ओर सार्थक कदम उठाने की जरूरत है, जिससे कि हमारे समाज को इस बुराई से निजात मिल सके और एक बेहतर समाज का निर्माण संभव हो सके।

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