सिकुड़ता पर्यटन

हिमाचल को ईश्वर ने प्राकृतिक सौंदर्य देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पर यह दुखद है कि आज तक प्रदेश की सरकारें इस सौंदर्य को निखार पाने में कामयाब नहीं हो पाई हैं, नए टूरिस्ट प्लेस विकसित न होने से सैलानियों का भी देवभूमि से मोहभंग होने लगा। सैलानियों के घटने के कारण गिना रहे हैं….

शकील कुरैशी अमन अग्निहोत्री आशीष शर्मा नरेन कुमार

पहाड़ की आबोहवा बेशक सभी को आकर्षित करती है, जिसके लिए हिमाचल जाना भी जाता है। मगर समय के साथ इसकी ये पहचान धूमिल होती जा रही है क्योंकि आज हिमाचल से कहीं अधिक कई दूसरे पर्यटक स्थल उभर चुके हैं। इसमें हिमाचल लगातार पिछड़ता जा रहा है जिसके बहुत से कारण हैं। सरकार इन कारणों को भली प्रकार जानती भी है, लेकिन फिर भी टूरिज्म, सरकार के फोकस बिदु में नहीं रहा। वर्तमान सरकार ने टूरिज्म को लेकर अपनी गंभीरता दिखाई है और बजट में इसे विशेष तौर पर इंगित भी किया है, जो ेकि पहले नहीं होता था परंतु सरकार की थोड़ी सी गंभीरता से हिमाचल का पर्यटन निखरने वाला नहीं है ये भी तय है। इसके लिए बड़े प्रयास करने जरूरी हैं। हिमाचल प्रदेश में पर्यटन गतिविधियों के लिए अपार संभावनाएं हैं, जिन पर पूरी तरह से फोकस करने की जरूरत है। तभी यहां पर पर्यटक रुकेंगे भी वरना यहां पर्यटक आते तो हैं मगर उनका ठहराव नहीं है। हिमाचल में पर्यटकों का स्टे बढ़ नहीं पा रहा है। देशी पर्यटक बमुश्किल एक दिन, जबकि विदेशियों का औसतन दो दिन का ठहराव रहता है। हालांकि प्रदेश सरकार के आंकड़ों में पर्यटकों की संख्या पहले के मुकाबले ठीक है, लेकिन इस बार कमोबेश इसमें कमी भी दिखाई देगी क्योंकि जहां बर्फ पड़ती थी वहां बर्फ नहीं पड़ी, जिसके लिए बड़ी संख्या में यहां बाहर से पर्यटक पहुंचते हैं।  पर्यटन आकर्षण के लिए कोई बड़े स्थल विकसित नहीं हो पाए हैं, जो यहां की सबसे बड़ी कमी है, जो स्थान हैं ,वहां पर सुविधाओं का टोटा है। यहां टूरिज्म सेक्टर के लिए जरूरी रेल व एयर नेटवर्क नहीं है  जिस कारण यहां पर हाई एंड टूरिज्म विकसित नहीं हो पा रहा है। इन्हीं कारणों से स्तरीय पर्यटन अभी भी निखर नहीं पाया है। प्रदेश में पर्यटकों की आमद और उनके ठहराव की बात करें तो देशी सैलानी हर दिन औसतन 8230 रुपए खर्च कर रहा है, जबकि विदेशी 17564 रुपए खर्च करता है। देश के 80 फीसदी सैलानी छुट्टियां मनाने के लिए हिमाचल आते हैं, विदेशियों में यह दर 97 फीसदी है, जिसका खुलासा पर्यटन सर्वेक्षण में हुआ है। हर दिन आने वाले पर्यटकों की फेहरिस्त में से 48 फीसदी ऐसे हैं, जो धार्मिक स्थलों में शीश नवाकर लौट जाते हैं। सरकारी आंकड़ों में पर्यटन की आमदनी और रोजगार की बात करें तो हिमाचल प्रदेश सकल राज्य घरेलू उत्पाद में पर्यटन से 7.82 फीसदी हासिल कर रहा है, जबकि इस क्षेत्र से 5.59 फीसदी ही रोजगार मिल पा रहा है। प्रदेश में रोड कनेक्टिविटी की बात करें तो राज्य के मुख्य मार्गों को छोड़कर अंदरुनी क्षेत्रों के मार्गों पर पर्यटक नहीं पहुंचते क्योंकि उनकी स्थिति उतनी अधिक सही नहीं है। यहां पर टैक्सी सेवा की माकूल व्यवस्था जरूर है परंतु बेहतर वाहन सेवा उपलब्ध नहीं है। यहां छोटे वाहनों का चलन अधिक है, जिसे बाहर के पर्यटक उतना पसंद नहीं करते।

पर्यटकों की जुबानी, हिमाचल की कहानी

बिना गाइडेंस कहां जाएं

धर्मशाला- मकलोडगंज घूमने के लिए पहुंचे मंजीत सिंह और अमिता का कहना है कि क्षेत्र काफी खूबसूरत है, लेकिन सुविधाओं की कमी के कारण अधिक समय तक रूक नहीं पाए।   पर्यटक स्थलों में पहुंचने के लिए सही प्रकार से गाइडेंस नहीं मिल पाती हैं।  पर्यटक स्थल कुछ ही क्षेत्र तक सिमट कर रहे गए हैं, लेकिन अन्य स्थानों पर घूमने के लिए कोई अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक शौचालय की दशा भी सही नहीं है।

इन सड़कों से तो भगवान ही बचाए

मध्य प्रदेश से कुल्लू-मनाली घूमने आए सैलानी योगेश का कहना है कि उन्हें पहले पता होता कि यहां की सड़कों की हालत इतनी खराब है कि गाडि़यों में सफर करना सैलानियों को सजा बन गया है, तो वे कभी यहां नहीं आते।  इसी तरह नीतिका, गिरिश का कहना है कि दूसरी बार मनाली आने के बारे में वे दस बार सोचेंगे।

पर्यटन से रोजगार की स्थिति

* एकोमोडेशन यूनिट्स में 21328

* ट्रैवल एंड टूअर यूनिट्स में 7127

* रेस्तरां में 3934

* सोविनियर शॉप्स में 266

अभी न संभले तो पीछे रह जाएगा हिमाचल

शिमला के प्रमुख होटल व्यवसायी महेंद्र सेठ का कहना है कि यदि हिमाचल ने अब बड़ी योजनाओं की तरफ कदम नहीं बढ़ाया तो आने वाले वर्षों में हिमाचल इस प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकता है। सबसे बड़ी पार्किंग दिक्कत बन चुकी है, जिसे प्राथमिकता के आधार पर सुलझाया जाना चाहिए। पर्यटक सीजन के दौरान यातायात अवरुद्ध न हो, इसे भी सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है।  पर्यटक अभी तक वीकेंड मनाने ही शिमला या अन्य पर्यटक स्थलों में पहुंचते हैं। उनके लिए इन स्थलों पर रोप वे की बेहद जरूरत है।

साहसिक खेल नहीं चढ़ पाए परवान

शिमला जिला अपनी खूबसूरती के लिए बेहद प्रसिद्ध है। सेब के बागीचों से हटकर यहां के ऊंचे पहाड़ बर्फ से लंबे समय तक ढके रहते हैं। कई वर्षों के ऐलानों के बावजूद रोहड़ू के चांशल में स्कीइंग व अन्य साहसिक खेल परवान नहीं चढ़ सके। जरूरत इस बात की है कि हिमाचल में अब ऐसे क्षेत्रों को खोला जाए, जहां प्राकृतिक सौंदर्य भरपूर है व शहरों के कोलाहल से दूर हों। पर्यटक सही मायने में वहां सुकून का अनुभव कर सकें। ऐसे ही क्षेत्रों में न तो यातायात समस्या होगी, न ही पार्किंग की दिक्कतें। मगर अभी तक भी हिमाचल में इसे लेकर गंभीर प्रयास नहीं हो सके हैं।  प्रदेश में कबायली क्षेत्रों में भी पर्यटक की अपार संभावना हैं। इनका दोहन तभी होगा, जब वहां आधारभूत ढांचा विकसित किया जाए। शिमला जिला के विभिन्न क्षेत्रों में पैराग्लाइडिंग के लिए बड़ी संभावनाएं मौजूद हैं मगर इस ओर कभी भी गंभीरता से ध्यान ही नहीं दिया गया।

पार्किंग की किचकिच से रूठे पर्यटक

शिमला, सोलन, सिरमौर और किन्नौर की बात करें तो पर्यटन की दृष्टि से इस सेक्टर में शिमला व किनौर ही मुख्य हैं। इन दोनों क्षेत्रों में पर्यटक बर्फ की चाह को लेकर ही पहुंचते हैं। शिमला क्योंकि हिल्सक्वीन है ,लिहाजा यहां बर्फ की चांदी देखने लोग पहुंचते हैं जो कि अब नहीं मिल पा रही। इसके साथ  ऐतिहासिक महत्त्व को लेकर भी लोग शिमला पहुंचते हैं। पर्यटन विभाग ने यहां सेब के बागीचों तक पर्यटकों को पहुंचाने के लिए योजना बनाई थी मगर कारगर साबित नहीं हो सकी। यहां पार्किंग की समस्या, बेतरतीब निर्माण एक बड़ी वजह है कि टूरिस्ट आते हैं तो ठहरते नहीं। साथ ही एक बड़ी समस्या शिमला में पानी की है। पर्यटन सीजन के दौरान यहां होटलों में पानी ही नहीं मिल पाता, जिससे लोगों को दिक्कतें आती हैं।

सीजन की शुरुआत में रो पड़ा मनाली

सैलानियों के गिरते ग्राफ से कारोबारी झेल रहे मंदी की मार

पर्यटन नगरी मनाली में समर सीजन की फीकी शुरुआत ने होटल कारोबारियों को झटका दे डाला है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब मनाली का मालरोड समर सीजन में खाली देखा गया है। हालात ये हैं कि मनाली घूमने आने वाले सैलानी सभी अपनी बुकिंग को कैंसिल करवा रहे हैं। कारण साफ है कुल्लू-मनाली की सड़कों की खस्ताहाल का होना। घाटी में चल रहे फोरलेन के कार्य ने सड़कों की तस्वीर ही बदल दी है, वहीं वैकल्पिक मार्ग भी गड्ढ़ों से भरा पड़ा है।  दूसरा सबसे बड़ा कारण इस बार रोहतांग की सैलानियों के लिए अब तक बहाली न होना बना है। मनाली अधिकतर सैलानी रोहतांग को देखने के लिए पहुंचते हैं, लेकिन इस बार अप्रैल माह के अंतिम दौर में भी सैलानियों को रोहतांग जाने नहीं दिया जा रहा है।   ऐसे में इन सब की मार यहां के होटलियर्ज पर पड़ रही है। पर्यटन कारोबार को समर सीजन में ही सिमटता देखकर यहां के कारोबारी भी हैरान हैं।

रोहतांग के दीदार को तरसे सैलानी

मनाली टैक्सी यूनियन के प्रधान राज कुमार डोगरा का कहना है कि सैलानी कुल्लू-मनाली में यहां की हसीन वादियों को देखने के लिए तो आते ही हैं, लेकिन रोहतांग पर घूमना उनकी तमन्ना होती है। प्रशासन ने इस बार अभी तक रोहतांग सैलानियों के लिए बहाल  नहीं किया है, लिहाजा सैलानियों को गुलाबा तक ले जाया जा रहा है, लेकिन यहां पर न तो उन्हें बर्फ के दीदार हो रहे हैं और न ही वे यहां मौजमस्ती कर पा रह हैं। ऐसे में सैलानियों का गुस्सा प्रशासन के साथ-साथ यहां के टैक्सी आपरेटरों पर भी निकल रहा है।  ऐसे में इस का असर यहां के पर्यटन कारोबार पर पड़ा है।

कारोबार पर पड़ रही मार 

होटल एसोसिएशन के प्रधान गजेंद्र ठाकुर का कहना है कि प्रशासन को पहले ही पता था कि अप्रैल माह से कुल्लू-मनाली में समर सीजन की शुरुआत हो जाती, लेकिन उसके बावजूद सड़कों की हालत को सुधारा नहीं गया, लिहाजा इस का असर मनाली के पर्यटन कारोबार पर पड़ा है। रोहतांग को देखने की चाह लिए बाहरी राज्यों व विदेशों से आने वाले सैलानियों को अभी तक रोहतांग जाने की अनुमति प्रशासन ने नहीं दी गई है, लिहाजा इस का असर  पर्यटन कारोबार पर पड़ रहा है।

छोटी काशी में कुछ नया नहीं

कुल्लू शिमला व धर्मशाला की तरह मंडी जिला के पर्यटन स्थलों को ईश्वर ने प्राकृतिक सौंदर्य देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पर यह दुखद है कि हिमाचल प्रदेश में आज तक की सरकारें मंडी जिला के पर्यटन स्थलों को न तो निखार सकी और न ही इन्हें पर्यटकों से जोड़ सकी। मंडी जिला के लिए पर्यटन स्थल कैलेंडर बन कर ही रह गए हैं। हालांकि अब मंडी से मुख्यमंत्री बनने के बाद मंडी जिला के पर्यटन को नई उम्मीदें जगी हैं, लेकिन पांच वर्ष में यह उम्मीदें कहां तक पूरी होती हैं, यह कहना है कि मुश्किल है। मंडी जिला के पर्यटन स्थलों की बात करें तो शिकारी देवी, जंजैहली, कमरूनाग घाटी, पराशर, बरोट, रिवालसर, प्राचीन मंडी शहर, करसोग वैली, देवीदड़ सहित कुछ अन्य पर्यटक स्थल हैं, जो कि पर्यटकों व सरकार की नजर में तो हैं, लेकिन यह स्थल पर्यटन की दृष्टि से विकसित नहीं हो सके हैं, जिसकी वजह से मंडी के पर्यटन स्थलों पर चंद घंटों के सिवा पर्यटक रुकना नहीं चाहते हैं, क्योंकि इन पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों के लिए सुविधाएं ही नहीं है।  बरोट, पराशर व शिकारी में आज तक सरकार पर्यटकों को रात गुजारने के लिए पर्याप्त बंदोबस्त तक नहीं कर सकी है।  है। विंटर टूरिज्म की दृष्टि से भी मंडी के पर्यटन स्थलों को निखारा जा सकता है, लेकिन इस दिशा में भी कोई प्रयास नहीं हुआ है।

आखिर क्या देखें सैलानी

होटल एसोसिएशन मंडी के अध्यक्ष मुनीष सूद कहते हैं कि प्राकतिक सौंदर्य मंडी में भरपूर है, लेकिन इसके बाद सरकार ने पर्यटकों के लिए क्या किया है। 3 घंटे पराशर या शिकारी माता में रुकने के बाद पर्यटकों को कुछ और भी चाहिए। अगर रात को ठहरना है तो बेहतर होटल या सरकारी व्यवस्था होनी चाहिए। बेहतर सड़कें, पार्किंग, मनोरंजन के अन्य साधन और अन्य जरूरी सुविधाएं होनी चाहिए, लेकिन मंडी में ऐसा कुछ नहीं है। श्री सूद कहते हैं कि सरकार को ऐसे साधन व सुविधाएं अन्य देशों की तरह पैदा करनी चाहिए जो कि पर्यटकों को खींच सके।

नए टूरिज्म सर्टिक विकसित हों तो बनेगी बात

पर्यटन की दृष्टि से हिमाचल एक ऐसा प्रदेश है, जहां चिकित्सा, पर्यटन, साहसिक पर्यटन व धार्मिक पर्यटन का असीम भंडार हैं।  हिमाचल के धार्मिक स्थल दुर्लभ शिल्पकारिता के अनुपम उदाहरण हैं।  यहां के देवस्थल अद्भुत छटा बिखेरते हैं, जो अतुलनीय हैं। कांगड़ा-चंबा क्षेत्र में तीन शक्तिपीठों सहित हिंदू मंदिर भी हैं और बौद्ध मठ भी हैं। इतना ही नहीं ईसाइयों के गिरिजाघर भी हैं, और सिखों के गुरुद्वारे भी है। बौद्ध नगरी मकलोडगंज और खेल नगरी धर्मशाला स्टेडियम बनने से भी पर्यटकों की संख्या में ईजाफा हुआ है।  जिला चंबा में भी लक्ष्मी नारायण मंदिर जिसे शिल्पकारिता का अनूठा नमूना माना जाता है। इसके अलावा चौरासी मंदिर चंबा घाटी के पुराने मंदिरों में से एक भरमौर में स्थित यह अद्भुत मंदिर है।  कांगड़ा-चंबा सर्किल में महत्त्वपूर्ण पर्यटक स्थल होने के बावजूद देश-विदेश के पर्यटक रुठे हुए से नजर आ रहे हैं। इसका सबसे अहम कारण कांगड़ा-चंबा में नए टूरिस्ट सर्किट को विकसित न किया जाना है। कांगड़ा-चंबा में हर वर्ष लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं, लेकिन अनछुए पर्यटक स्थलों तक पर्यटकों को पहुंचाने के लिए कोई भी उचित व्यवस्था ही जमीनी स्तर पर नहीं की गई है। इतना ही नहीं टूरिस्ट को घूमने के लिए सही प्रकार से गाइड भी नहीं किया जाता है।

ट्रैफिक जाम लेता इम्तिहान

मकलोडगंज भागसू टैक्सी आपरेटर यूनियन के अध्यक्ष कर्मचंद का कहना है कि बाहरी राज्य के पर्यटक ट्रैफिक जाम की समस्या से परेशान होते हैं। सैलानियों को सड़क की सही जानकारी न होने से जाम की अधिक समस्या बन जाती है। ऐसे में पर्यटकों को सुरक्षित स्थान में पार्किंग सुविधा उपलब्ध करवाने के बाद स्थानीय युवाओं की टैक्सियों को सही मूल्य निर्धारित कर उपलब्ध करवानी चाहिए, जिससे पर्यटकों को असुविधाएं न झेलनी पड़े, साथ ही अधिक पर्यटक स्थलों में घुमाने के लिए भी चालक मददगार हो सकते हैं, लेकिन अभी तक ऐसी कोई पहल नहीं दिख रही है।

अनछुए पर्यटक स्थलों को विकसित करना जरूरी

होटल एसोसिएशन मकलोडगंज के अध्यक्ष अश्वनी बांबा का कहना है कि पर्यटकों की संख्या बढ़ाने और अधिक समय तक रोकने के लिए नए अनछुए पर्यटक स्थलों को विकसित करना होगा। उन्होंने कहा कि पर्यटक अधिक समय तक क्षेत्र में रुक नहीं पाते हैं, लेकिन नए टूरिस्ट स्थल विकसित करके पर्यटकों को रोक सकते हैं। उन्होंने कहा कि टूरिस्टों को क्षेत्र में अच्छे एयर कनेक्टिविटी, अच्छे सड़क मार्ग और सही व्यवहार भी चाहिए।  सांस्कृतिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित किए जाने चाहिए।

धरोहरों को सहेजने को नहीं हो पाई पहल

प्रदेश की लोक संस्कृति भी पर्यटकों को आकर्षित करती है परंतु इस धरोहर से पर्यटन को सहेजने की कसरत आज तक नहीं हो सकी। राज्य का भाषा एवं संस्कृति विभाग लेखकों के ही चरण छूने तक सीमित है जबकि इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए ये विभाग भी अलग से बहुत कुछ कर सकता है। यहां गेयटी थियेटर में कुछ आयोजन इस विभाग के माध्यम से होते हैं लेकिन वहां लोक संस्कृति की झलक पाने को पर्यटकों को गेयटी थियेटर के अंदर तक ले जाने के सकारात्मक प्रयास नहीं हो पाते। नतीजतन आयोजन केवल इससे जुड़े लोगों तक ही सीमित हो चुके हैं।

मौसम की बेरुखी से सैलानी निराश

प्रदेश में मौसम का मिजाज भी बड़ा कारण है कि यहां पर पर्यटक उतनी तादाद में नहीं आ रहे। गलोबल वार्मिंग के कारण यहां पहाड़ों पर बर्फ देखने को नहीं मिल रही। शिमला, कुल्लू, मनाली, धर्मशाला जहां ठंड का मौसम रहता था वहां तापमान बढ़ चुका है ऐसे में पर्यटक मौसम की बेरुखी के कारण भी आने से गुरेज करने लगे हैं।

सरकार की तैयारी

जयराम सरकार ने प्रदेश में पर्यटन क्षेत्र को विकसित करने की सोच को अपनाया है जिसके लिए नई योजनाएं शुरू करने की सोची है। अनछुए पर्यटक स्थलों को विकसित कर यहां पर बाहर से लोगों को पहुंचाने की सोची गई है, जो बेहतरीन पहल तो है परंतु इसके लिए काफी कुछ करना शेष है। हमीरपुर, किन्नौर, लाहुल-स्पीति में साहसिक पर्यटन व व्हाइट वाटर और रिवर राफ्टिंग की व्यापक संभावनाएं हैं। ये स्थल शिमला, कांगड़ा, कुल्लू-मनाली से नजदीक हैं। पर्यटन विकास की व्यापक संभावनाओं के मद्देनजर इन्हें विकसित किया जाना चाहिए, जिसे सरकार भी सोच रही है।

पेयजल की दिक्कत बरकरार

हिमाचल के पर्यटक स्थलों में स्वच्छ पेयजल व टॉयलेट्स की सुविधा तो होनी बेहद जरूरी है, जिसका अभाव आज भी नजर आता है। साथ ही पार्किंग सुविधा भी बड़े स्तर पर मिलनी चाहिए, जिसके लिए कुछ प्रयास शुरू हुए हैं जो कि नाकाफी हैं। शिमला का ही उदाहरण लें तो यहां पर टूरिस्ट को अपना वाहन खड़ा करने के लिए जगह नहीं मिल पाती। जिन जगहों जैसे मालरोड, रिज पर पर्यटक आसानी से पहुंचना चाहता है,वहां पर वाहन नहीं आ सकते। यहां जाखू रोपवे के निर्माण के बाद पर्यटकों को एक सुविधाजनक सवारी मिली है इसी तरह से टूटीकंडी क्रॉसिंग से लिफ्ट व वहां से माल रोड तक रोप वे की योजना है, जिसे शीघ्र अंजाम तक पहुंचाना जरूरी है। ऐसी ही रोप वे की कनेक्टिवीटी और पर्यटक स्थल पर भी जरूरी है।

ईको टूरिज्म का ख्वाब अधूरा

ईको टूरिज्म की बड़ी योजनाएं अभी तक शुरू नहीं हो सकी हैं। मनोरंजन पार्क के कई बार ऐलान हुए। वर्ष 1977 से इसकी तैयारियां चल रही हैं, मगर यह सिरे नहीं चढ़ पाया। साहसिक पर्यटन को दिशा देने के लिए हिमाचल ने जरूर बीड़-बिलिंग को चुना है। कुल्लू-मनाली, बिलासपुर में भी ऐसे बड़े आयोजनों की जरूरत है। ये क्षेत्र अभी भी ऐसे आयोजनों के लिए तरस रहे हैं, जबकि इनमें पर्याप्त संभावनाएं मौजूद है।

कुफरी, नारकंडा व नालदेहरा में दोबारा आने की नहीं सोचते मेहमान

इसके अलावा शिमला जिला के अंदरुनी क्षेत्रों तक भी पर्यटक नहीं पहुंच पाते। शिमला में शहर के अलावा कुफरी, नारकंडा व नालदेहरा कुछ पर्यटक स्थल हैं जहां पर घोड़ों की सवारी लोगों को पसंद आती है परंतु यहां की सफाई व्यवस्था बदतर होने के कारण जो एक बार जाता है, वह दूसरी दफा नहीं जाता। इसी तरह से सोलन व सिरमौर में पर्यटक सर्किट विकसित करने पर कोई काम ही नहीं हो सके हैं।

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