हरित विकास की विरासत

सुनीता नारायण

पर्यावरणविद और राजनीतिक कार्यकर्ता सुनीता नारायण समाज की हरित विकास की समर्थक हैं। सुनीता नारायण का जन्म 1961 में हुआ। सुनीता नारायण सन् 1982 से भारत स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र से जुड़ी रही हैं। वह पर्यावरण संचार समाज  की निदेशक भी हैं। इसके अलावा वह ‘डाउन टू अर्थ’ नामक एक अंग्रेजी पाक्षिक पत्रिका भी प्रकाशित करती हैं, जो पर्यावरण पर केंद्रित पत्रिका है। प्रकृति से प्यार करने वाली सुनीता नारायण को इंग्लैंड की पत्रिका ने दुनिया भर में मौजूद सर्वश्रेष्ठ 100 बुद्धिजीवियों की श्रेणी में शामिल किया है। वह मानती हैं कि वातावरण में फैलती अशुद्धता प्रकृति और वातावरण की होती दुर्दशा से सब से ज्यादा नुकसान महिलाओं, बच्चों और गरीबों को होता है। दशकों से वह पर्यावरण और समाज की मूलभूत समस्याओं के लिए जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं। 1990 के शुरुआती दिनों में उन्होंने कई वैश्विक पर्यावरण मुद्दों पर गहन शोध और वकालत करना शुरू कर दिया। उनके बेहतरीन कार्यों के प्रतिफल में वर्ष 2005 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसी वर्ष उन्हें स्टाकहोम वाटर प्राइज और वर्ष 2004 में मीडिया फाउंडेशन चमेली देवी अवार्ड प्रदान किया गया। अपने कार्र्यों से मिले इन अवार्डों से संतुष्ट होकर उन्होंने इस ओर काम करना छोड़ा नहीं। वह पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के अलावा नक्सलवाद, राजनीतिक भ्रष्टाचार, बाघ व पेड़ संरक्षण और अन्य सामाजिक विषयों पर अपने विचार व्यक्त करने लगीं। इतनी खास होने पर भी जब आप सुनीता को सामने से देखेंगे तो उन्हें सादे विचार और व्यवहार के साथ शालीन कपड़ों और चेहरे पर तेज आभा के साथ पाएंगे। उन का व्यक्तित्व न केवल उन के लगभग 100 कर्मचारियों वाले संस्थान सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट के लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है बल्कि युवा पीढ़ी और महिलाओं के लिए उन का संपूर्ण अस्तित्व प्रेरणादायक है।

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