हिंदू राष्ट्र या अखंड भारत नहीं, महासंघ से बनेगी बात

भानु धमीजा

सीएमडी, ‘दिव्य हिमाचल’

लेखक, चर्चित किताब ‘व्हाई इंडिया नीड्ज दि प्रेजिडेंशियल सिस्टम’ के रचनाकार हैं

हिंदू राष्ट्र व अखंड भारत, दोनों अभियान असफल होने की आशंका है। अखंड भारत का पुनर्निर्माण पहुंच से परे, और हिंदू राष्ट्र अंततः आत्मघाती लगता है। एक वृहद् भारत के निर्माण की अभिलाषा सफल होने के यदि अवसर हैं तो वे समान विचार वाले देशों का एक संघ, भारत महासंघ, बनाकर यथार्थ किए जा सकते हैं…

हिंदू राष्ट्रवादी लंबे समय से एक वृहद् भारत का सपना देखते आए हैं। वे पुरातन भारत के वैभव और आकार के अनुरूप – अखंड भारत या हिंदू राष्ट्र – के पुनर्निर्माण की महत्त्वाकांक्षा रखते हैं। आरएसएस और भाजपा नेता भारत के धर्मनिरपेक्ष लोगों को खिझाते हुए अकसर इन उद्देश्यों को बढ़ावा देते हैं। निसंदेह दोनों ही परियोजनाएं साहसिक हैं और कई हिंदुओं को उत्तेजित करती हैं।

परंतु हिंदू राष्ट्र व अखंड भारत, दोनों अभियान असफल होने की आशंका है। अखंड भारत का पुनर्निर्माण पहुंच से परे, और हिंदू राष्ट्र अंततः आत्मघाती लगता है। एक वृहद् भारत के निर्माण की अभिलाषा सफल होने के यदि अवसर हैं तो वे समान विचार वाले देशों का एक संघ, भारत महासंघ, बनाकर यथार्थ किए जा सकते हैं।

अखंड भारत के सर्वाधिक उन्मुक्त रूप में चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य के क्षेत्रों को सम्मिलित करने की कल्पना की गई है। इसमें वर्तमान देश अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, बर्मा, तिब्बत, भूटान और बांग्लादेश शामिल होंगे। ऐसी महत्त्वाकांक्षी परियोजना एक मिथ्या परिकल्पना ही दिखती है।

परंतु आरएसएस और भाजपा नेता भारत को पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ फिर से जोड़ने की बात अकसर करते रहे हैं। वर्ष 1965 में जनसंघ ने एक संकल्प पारित किया कि ‘‘भारत और पाकिस्तान को एकीकृत कर, अखंड भारत एक वास्तविकता बनेगा।’’ वर्ष 2012 में प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने उनकी पार्टी की विचारधारा स्पष्ट की थी कि अखंड भारत का ‘‘यह अर्थ नहीं है कि हम किसी देश के खिलाफ युद्ध छेड़ दें। बिना युद्ध, आम सहमति के जरिए, यह हो सकता है। हम इसे सांस्कृतिक भारत कहते हैं।’’

कुछ समय पहले दिसंबर 2015 में मुद्दा एक भारी विवाद में बदल गया। मोदी के आकस्मिक पाकिस्तान दौरे के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री राम माधव ने स्पष्ट कहा कि ‘‘आरएसएस को अभी भी विश्वास है कि एक दिन आम सद्भावना के तहत पाकिस्तान और बांग्लादेश फिर साथ आएंगे और अखंड भारत का निर्माण होगा।’’ भाजपा ने तुरंत स्वयं को माधव के बयान से अलग कर लिया।

आज आश्चर्यजनक रूप से भाजपा और आरएसएस दोनों ने यह लक्ष्य पूरी तरह छोड़ दिया है। इनके ग्रुप मिशन वक्तव्यों में अखंड भारत का कोई जिक्र नहीं मिलता। ऐसा क्यों है, इसका सुराग मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले अपने 2012 के इंटरव्यू में दे चुके हैंः ‘‘अखंड भारत केवल पाकिस्तान के लिए अच्छा होगा। अगर पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और हिंदुस्तान एक होते हैं, तो मुस्लिम बहुमत बढ़ जाएगा और हिंदुस्तान के लिए एक इस्लामिक राष्ट्र बनना आसान हो जाएगा।’’

अब भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना राष्ट्रवादियों का सीमित नया उद्देश्य है। ताजा आरएसएस मिशन वक्तव्य यह कहता है कि ‘‘हमारा एक सर्वोच्च लक्ष्य हिंदू राष्ट्र के बहुमुखी वैभव को जीवंत करना है।’’ यही नहीं वर्ष 2023 तक हिंदू राष्ट्र बनाने की योजना पर चर्चा के लिए पिछले वर्ष गोवा में 150 हिंदू संगठन एकत्रित भी हुए।

हिंदू राष्ट्र की घोषणा करना आसान है परंतु इसके पेंच खतरनाक हैं। मुख्य खतरा है कि यह भारत को पाकिस्तान की तरह एक धर्मशासित देश में बदल देगा। यह हमारी राष्ट्रीय एकता को कमजोर करेगा, पृथकतावादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देगा, आंतरिक कलह का कारण बनेगा, और भारत की साख को नुकसान पहुंचाएगा। विडंबना यह भी कि यह स्वयं हिंदुत्व – जिसे इस कदम के समर्थक सबसे अधिक प्रदर्शित करना चाहते हैं – की भावना, परंपरा और प्रतिष्ठा को सबसे अधिक क्षति पहुंचाएगा।

इससे भी अधिक क्षतिपूर्ण, हिंदू राष्ट्र भारत का विश्वगुरु के रूप में एक वैश्विक नेता बनने का सपना हमेशा के लिए खत्म कर देगा। कोई भी संप्रभु देश विशुद्ध धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के अलावा भारत के साथ न किसी संघ में शामिल होगा न ही उसका अनुसरण करेगा।

हिंदू राष्ट्र की कामना के पीछे हिंदू राष्ट्रवादियों के दो सिद्धांत हैं। पहला यह कि हिंदुत्व स्वाभाविक रूप से धर्मनिरपेक्ष है, इसलिए भारत दूसरा पाकिस्तान नहीं बनेगा। और दूसरा, जब भारतीय मुस्लिमों को यह एहसास होगा कि उन्हें बहुमत की इच्छाओं के समक्ष झुक जाना चाहिए, सांप्रदायिक संघर्ष खत्म हो जाएंगे। परंतु धार्मिक जोश एक अत्यंत फिसलन भरी डगर है, जैसा कि हमने हाल ही में गोरक्षकों द्वारा जान लेने और लव जेहाद के नाम पर खुलेआम हत्याएं करने के मामलों में देखा। हमें याद रखना चाहिए कि देश के बंटवारे के दौरान धार्मिक घृणा ने किस प्रकार भारतीयों के विवेक को नष्ट कर दिया था।

निसंदेह हिंदू राष्ट्रवादी ऐसा भारत नहीं बनाना चाहते जहां जनसंख्या का एक भाग निरंतर भय में अथवा विदेशी बनकर रहे। एक मुस्लिम, या पारसी, या ईसाई के लिए हिंदू राष्ट्र कभी उसका अपना देश नहीं होगा। इसी प्रकार, क्या हम भारतीय विविधता और सहिष्णुता के लिए विख्यात सदियों पुरानी सभ्यता के लिए अब यह चाहेंगे कि दुनिया को स्पष्टीकरण दें कि हम अन्य धर्म आधारित देशों – जैसे कि पाकिस्तान, ईरान, या सऊदी अरब – से भिन्न हैं?

हिंदू राष्ट्रवादी दुनिया को यह बताने की लाख कोशिश करें कि हिंदू राष्ट्र हिंदू धर्म नहीं अपितु हिंदुत्व पर आधारित है, इसलिए यह सांप्रदायिक देश नहीं बनेगा, परंतु इस बात से कोई सहमत नहीं होगा। हिंदुत्व बहुसंख्यक हिंदुओं के धर्म के साथ अत्यधिक गुंथा हुआ है। इस आधार पर यह अन्य धर्मों की ही तरह कट्टर बन चुका है।

आज एक वृहद् भारत बनाने के लिए नवीन दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसकी कल्पना यूरोपियन यूनियन या संयुक्त राज्य अमरीका के अनुरूप संप्रभु देशों के ऐसे एक संघ के रूप में होनी चाहिए। यह संघ साझा कल्याण के लिए स्वेच्छा से बने।

ऐसा एक ‘भारत महासंघ’ बन सकता है। परंतु यह स्वतंत्रता, समतावाद, व्यक्तिवाद और हस्तक्षेप न करने के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। इसका ढांचा स्थानीय स्वायत्तता मुहैया करवाए, साथ ही सीमित अधिकारों का संघीय प्रशासन हो, जिसमें सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल हों।

भारत महासंघ को विशुद्ध धर्मनिरपेक्षता पर आधारित होना होगा। मौजूदा नकली प्रकार की धर्मनिरपेक्षता पर नहीं जो सरकारों को धर्मों में दखल देने और उनसे जुड़ने की स्वतंत्रता देती है। परंतु एक ऐसी धर्मनिरपेक्षता जो धर्म और सरकार के बीच कड़े पृथक्करण के साथ धर्म की संपूर्ण स्वतंत्रता देती हो।

संभवतया आरंभ में भारत महासंघ केवल हिंदू-विचारधारा के देशों, नेपाल व भूटान को ही आकर्षित कर पाएगा। परंतु यदि उचित ढांचा हो और प्रयास किए जाएं तो यह पड़ोसी बौद्ध-विचारधारा के देशों श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम को भी रास आ सकता है। अपने परम स्वरूप में यह महासंघ अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश को भी आकर्षित कर पाएगा। अगर वृहद् भारत हमारा सपना है तो हमें इसकी ओर यथार्थवादी कदम उठाने होंगे।

-भानु धमीजा

अंग्रेजी में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित (20 मार्च, 2018)

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