आतंकियों के बाद पत्थरबाज!

भारतीय सेना के ‘आपरेशन आल आउट’ के तहत अंततः बड़ी कामयाबी हासिल हुई है, तब हिजबुल मुजाहिदीन के ‘पोस्टर ब्वाय’ आतंकी बुरहान वानी का लगभग पूरा गिरोह ही ढेर कर दिया गया है। इस गिरोह का मौजूदा ‘पोस्टर ब्वाय’ एवं कश्मीर में हिजबुल का शीर्ष कमांडर सद्दाम पैडर भी मारा गया। कश्मीर विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का सहायक प्रोफेसर मुहम्मद रफी भट भी पथभ्रष्ट होकर आतंकी बन गया था, लेकिन वह सिर्फ  36 घंटे ही आतंकवाद की राह पर रह सका। उसकी जिंदगी में आतंकवाद शुक्रवार 4 मई की शाम से रविवार 6 मई, 2018 की सुबह तक ही रह सका। उसे मनाने के लिए उसकी मां, पत्नी, भाई का इस्तेमाल किया गया। रफी ने खुद आखिरी बार अपने पिता को फोन किया और माफी मांगी, लेकिन उसके पांव लौट नहीं सके। सद्दाम के अलावा समीर टाइगर, बिलाल, तौसीफ शेख, सबजार भट आदि आतंकी भी मारे जा चुके हैं। 2015 में जिन 11 आतंकियों की तस्वीर वायरल हुई थी और जिसे बुरहान वानी का गिरोह करार दिया गया, अब पूरी तरह समाप्त हो चुका है। इस दौर में पीएचडी का शोधार्थी, एमटेक, बीटेक तक की पढ़ाई करने वाले और सेना के जवान तक ऐसे भटकते रहे कि आतंकियों के चंगुल में फंसते रहे। एक रपट के मुताबिक, सिर्फ अप्रैल महीने में ही 30 पढ़े-लिखे युवा लापता हुए। उनमें से 14 नौजवान आतंकी गुटों में शामिल हो गए। यानी एक खास रुझान पक रहा है कि पढ़े-लिखे नौजवान पथभ्रष्ट होकर आतंकी बन रहे हैं। सेना के आपरेशन या घरवालों की सीख-सुझाव का उन पर कोई असर नहीं दिखा है, लेकिन अभी यह अस्पष्ट है कि आखिर ऐसे नौजवान ‘आतंकी’ क्यों बन रहे हैं? आखिर पाकिस्तान की नापाक ताकतें, अलगाववादी नेता और आतंकी बने स्थानीय नौजवान ऐसे पढ़े-लिखे युवाओं को किस लालच में फांसने में कामयाब होते रहे हैं? राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने एक रपट तैयार की है, जिसमें 2016-17 के दौरान पाकिस्तान ने 200 करोड़ रुपए की ‘टेरर फंडिंग’ की है, उसका खुलासा भी किया गया है। यह राशि हवाला के जरिए आती है और अलगाववादी नेताओं की भी भूमिका होती है। आतंक का यह पैसा पत्थरबाजों में भी बांटा जाता है। वे भी एक खास किस्म के ‘आतंकवादी’ हैं, लेकिन कश्मीर की महबूबा सरकार उनके प्रति बेहद नरम है, लिहाजा करीब 9700 पत्थरबाजों की रिहाई हो चुकी है। सेना ने शोपियां में अपनी ताजा मुठभेड़ के दौरान कुल 8 आतंकियों को ढेर किया था, तब भी पत्थरबाजों ने सैनिकों पर पथराव किया था। सेना और सुरक्षा बल इस साल अभी तक घाटी में 171 आतंकियों को ढेर कर चुके हैं। उनमें हिजबुल के साथ-साथ लश्करे तैयबा के भी आतंकी थे, लेकिन अब सेना और सुरक्षा बल अपनी रणनीति बदलने का संकेत दे चुके हैं। बेशक बुरहान वानी का गिरोह समाप्त कर दिया गया, लेकिन कश्मीर घाटी में आतंकवाद अब भी जिंदा है। खुफिया एजेंसियों की रपट है कि इस बार पाकिस्तान के घुसपैठिए पंजाब सीमा की ओर से कश्मीर में घुस सकते हैं। उस सीमा के आसपास संदिग्ध लोगों की सक्रियता देखी गई है। खुफिया सूत्रों ने पूरी वीडियोग्राफी की है। बहरहाल उन सीमाओं पर तो चौकसी बढ़ेगी ही, लेकिन रणनीति यह बदली जा रही है कि आखिर पत्थरबाजों से कैसे निपटा जाए? उन्हें ‘गोली का शिकार’ एकदम बनाना भी उचित नहीं है, क्योंकि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती हर बार राग अलापती रही हैं कि हिंसा से कोई समाधान नहीं मिलेगा। बातचीत से ही समाधान निकल सकता है। कश्मीर में पत्थरबाज महबूबा की पार्टी पीडीपी का वोट बैंक भी रहे हैं, जो जाहिर है कि फिलहाल उनसे नाराज होंगे। लेकिन सेना और सुरक्षा बलों की रणनीति में पत्थरबाज शामिल हैं। वे ऐसा कुछ करने पर विचार कर रहे हैं कि कश्मीर में आपरेशन और मुठभेड़ के दौरान पत्थरबाज रोड़ा न बन सकें। पत्थरबाजों के सरपरस्त हैं-अलगाववादी नेता। सेना और सुरक्षा बलों ने एक पूरे गिरोह को समाप्त करने की सफलता हासिल की है, लेकिन अलगाववादी नेताओं ने घाटी में हड़ताल का आह्वान किया है, क्योंकि वे मानते हैं कि उनके ‘अपनों’ के कत्ल किए जा रहे हैं। आखिर इस विरोधाभास का हल क्या है? एनआईए की रपट में 12 अलगाववादी नेताओं की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। आखिर उनके खिलाफ कार्रवाई कब होगी? बेशक कश्मीर में सेना और सुरक्षा बलों के आपरेशनों को कामयाबी मिल रही है, एक गिरोह का सूपड़ा साफ  हो गया है, लेकिन आतंकवाद अब भी जिंदा और सक्रिय है। उसे समूल नाश करने के मद्देनजर पत्थरबाजों पर लगाम लगाना जरूरी है। वह कैसे होगा, शायद आने वाले दिनों में सेना और सुरक्षा बलों के आपरेशन स्पष्ट कर देंगे!

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