आप श्रद्धा दें, पितर शक्ति देंगे

-गतांक से आगे…

लेखिका शेला आस्ट्रेंडर को एक बार उनकी एक सहेली मृत्यु के तत्काल बाद दिखी। वह सहेली कई मील दूर दूसरे शहर में उसी समय मरी थी। मृत्यु की खबर दूसरे दिन मिली। इससे चेतना की निस्सीमता का परिचय मिलता है। ऐसा नहीं है कि मृत्यु के उपरांत ही, मानवीय चेतना इस प्रकार निर्बंध होती है। वरन् यदि संकीर्णता के मानसिक बंधन दूर कर दिए जाएं, तो जीवित अवस्था में भी चेतना की इन शक्तियों का अनुभव किया जा सकता है और लाभ उठाया जा सकता है। ये घटनाएं विरल या अपवाद नहीं हैं। ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो दूरस्थ परिजनों की तीव्र संवेदना से, याद करने पर, उनके पास आभास रूप में देखे जाते हैं। ऐसे भी लोग हैं, जो भावाकुल होकर जब किसी प्रियजन का स्मरण करते हैं, तो वह उन्हें अपने सामने उस स्थिति में दिखता है, जिसमें वह उस समय होता है। बाद में पत्र मिलने पर या प्रत्यक्ष भेंट होने पर इस तथ्य की पुष्टि होती है। विशेषकर नारियों को दूराभास और दूरानुभूति प्रायः होती रहती है। परामनोविज्ञानी हैराल्ड ने ऐसे अनेक वृत्तांतों का संकलन किया है, जिनमें महिलाओं को दूरस्थ भाई या पति की बीमारी या मृत्यु का आभास हुआ और वह सत्य निकला। मनःशास्त्री हेनब्रुक ने भी यही कहा है कि यों ये क्षमताएं होती मनुष्य मात्र में हैं। नारियों में सौम्यता, मृदुता और सहृदयता के आधिक्य के कारण यह सामर्थ्य अधिक विकसित पाई जाती है। बीज रूप में यह सामर्थ्य प्रत्येक व्यक्ति में सन्निहित है।                         -क्रमशः

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